हिंदु धर्म में कितने देवी देवता है ? 33 कोटि या 33 करोड़ ?

हिंदु धर्म में कितने देवी देवता है ? 33 कोटि या 33 करोड़ ?

भारत का धार्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य बहुत ही समृद्ध और विविधतापूर्ण है। भारतीय धर्मशास्त्रों और पुराणों में अनेक देवी-देवताओं का वर्णन मिलता है, जो विभिन्न रूपों और शक्तियों के प्रतीक हैं। भारतीय धार्मिक परंपरा में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी, काली) का महत्वपूर्ण स्थान है। इसके साथ ही, 33 प्रमुख देवताओं के अलावा अनेकों देवगण, ग्रह देवता, स्थानीय देवता और विशिष्ट देवियों का भी उल्लेख मिलता है। यह देवगण और देवियाँ भारतीय धार्मिक ग्रंथों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनकी पूजा-अर्चना से जुड़ी अनेक परंपराएँ और मान्यताएँ हैं। आइये जानते हैं हिंदु धर्म में कितने देवी देवता है ?

इस आलेख में, हम भारतीय धर्मशास्त्रों में उल्लिखित विभिन्न देवताओं का विस्तृत परिचय प्राप्त करेंगे और समझेंगे कि वे किस प्रकार से भारतीय संस्कृति और धार्मिक विश्वासों में समाहित हैं। यह जानकारी न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की गहराई और समृद्धि को भी उजागर करती है।

हिंदु धर्म में कितने देवी देवता है ?

त्रिदेव और त्रिदेवी

  • ब्रह्मा: सृष्टि के निर्माता और वेदों के रचयिता।
  • विष्णु: संरक्षक और पालनकर्ता, जिन्हें सृजन और विनाश के बीच संतुलन बनाए रखने का उत्तरदायित्व है।
  • महेश (शिव): विनाशक और परिवर्तक, जो पुनर्निर्माण के लिए विनाश करते हैं।
  • सरस्वती: ज्ञान, संगीत, कला और विद्या की देवी।
  • लक्ष्मी: धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी।
  • काली: शक्ति और विनाश की देवी, जो बुराई का नाश करती हैं।

33 प्रमुख देवता

12 आदित्य:

  • अंशुमान: सूर्य की एक अन्य नाम।
  • आर्यमन: मित्रता और सहयोग के देवता।
  • इंद्र: देवताओं के राजा और वर्षा के देवता।
  • त्वष्टा: शिल्पकार देवता और निर्माण के संरक्षक।
  • धातु: सृष्टि के तत्वों के देवता।
  • परजंन्य: वर्षा और उर्वरता के देवता।
  • पूषा: यात्रा और संरक्षण के देवता।
  • भगा: समृद्धि और अच्छी भाग्य के देवता।
  • मित्रा: मित्रता और अनुशासन के देवता।
  • वरुण: जल और समुद्र के देवता।
  • विवस्वान: सूर्य देवता और प्रकाश के प्रतीक।
  • विष्णु: त्रिदेवों में से एक, संरक्षक।
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8 वसु:

  • आप: जल के देवता।
  • ध्रुव: ध्रुव तारा के प्रतीक।
  • सोम: अमृत और आनंद के देवता।
  • धार: धारण करने की शक्ति के देवता।
  • अनिल: वायु के देवता।
  • अनल: अग्नि के देवता।
  • प्रत्यूष: प्रातःकाल के देवता।
  • प्रभास: प्रकाश के देवता।

11 रुद्र:

  • शंभू: शिव का एक रूप।
  • पिनाकी: धनुर्धारी शिव।
  • गिरीश: पर्वतों के स्वामी।
  • स्थानु: स्थिरता के देवता।
  • भरगा: प्रकाश और सौंदर्य के देवता।
  • भाव: भावना और भावुकता के प्रतीक।
  • सदाशिव: सदा शिव, शाश्वत और शुभ।
  • शिव: त्रिदेवों में विनाशक।
  • हर: हरने वाले, दुखों को समाप्त करने वाले।
  • शर्वाः: सर्वव्यापी शिव।
  • कपाली: खोपड़ी धारण करने वाले।

ये 11 रुद्र, यक्षों और दस्युजन के भी देवता हैं तथा कल्प बदलने पर रुद्र और उनके नाम भी बदल जाते हैं। कल्प परिवर्तन पर रुद्रों के नाम बदल जाते हैं, जैसे अन्य कल्प में रुद्र के नाम:

मनु, मन्यु, शिव, महत, ऋतुध्वज, महिनस, उमतेरस, काल, वामदेव, भव और धृतध्वज।

2 अश्विनी कुमार:

  • ये आयुर्वेद के आद्याचार्य और सूर्य देव के पुत्र माने जाते हैं। इनके नाम हैं:
    1. नस्तास्य
    2. दस्ता

1 इंद्र और 1 प्रजापति:

  • इंद्र स्वर्ग के राजा और देवताओं के नेता हैं।
  • प्रजापति सृष्टि के रक्षक और मार्गदर्शक हैं। (कुछ ग्रंथों में इनके स्थान पर अश्विनी कुमारों का उल्लेख होता है।)

विष्णु के 24 रूप: अनंत ऊर्जा के प्रतीक

भगवान विष्णु के 24 रूप उनकी अनंतता और ब्रह्मांडीय संरचना का वर्णन करते हैं। ये रूप भौतिक और आध्यात्मिक दोनों लोकों में पूजनीय हैं:

  1. वासुदेव
  2. केशव
  3. नारायण
  4. माधव
  5. पुरुषोत्तम
  6. अधोक्षजा
  7. संकर्षण
  8. गोविंदा
  9. विष्णु
  10. मधुसूदन
  11. अच्युत
  12. उपेंद्र
  13. प्रद्युम्न
  14. त्रिविक्रम
  15. नरसिंह
  16. जनार्दन
  17. वामन
  18. श्रीधर
  19. अनिरुद्ध
  20. हृषिकेश
  21. पद्मनाभ
  22. दामोदर
  23. हरि
  24. कृष्ण
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अन्य महत्वपूर्ण देवता और देवगण

भारतीय शास्त्रों में वर्णित अन्य देवताओं और देवगणों की गणना व्यापक है। इनमें शामिल हैं:

  1. 36 तुषित:
    • ये देवता विभिन्न मन्वंतर में जन्म लेते हैं और इनके स्वर्ग का अलग अस्तित्व है।
  2. 10 विश्वदेव:
    • इनमें वासु, सत्य, क्रतु, दक्ष, कला, काम, धृति, कुरु, पुरुरवा, मद्राव जैसे देवता शामिल हैं।
  3. 64 आभास्वर:
    • इनका कार्य भूत, इंद्रियों और बुद्धि को नियंत्रित करना है।
  4. 49 मारुतगण:
    • ये देवता वायु और रुद्र के पुत्र माने जाते हैं।
  5. 9 ग्रह देवता:
    • ये ग्रहों के अधिपति हैं: सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु।

गण समुदाय और उनके नेता

भारतीय धर्म में देवताओं के सेवकों का उल्लेख भी मिलता है। इन्हें “गण” कहा जाता है।

  • शिवगण: भगवान शिव के सेवक।
  • गणपति गणेश: सभी गणों के नेता।
  • इंद्रगण: इंद्र के सेवक।

स्थानीय देवता और अन्य वर्गीकरण

भारतीय धर्म में स्थानीय और क्षेत्रीय देवताओं का भी बड़ा महत्व है। इनमें शामिल हैं:

  1. द्यु-स्थानीय (आकाश के देवता):
    • सूर्य, वरुण, मित्र, उषा।
  2. मध्य-स्थानीय (अंतरिक्ष के देवता):
    • पर्जन्य, वायु, रुद्र।
  3. पृथ्वी-स्थानीय:
    • अग्नि, सोम, नदियाँ।
  4. पाताल-स्थानीय:
    • शेषनाग और वासुकी।

भारतीय धर्म में देवताओं की विविधता ब्रह्मांड की संरचना, ऊर्जा और तत्वों का प्रतीक है। यह हमें प्रकृति, आत्मा और ब्रह्मांड के गहन संबंधों को समझने में सहायता करता है।

इसके अलावा, हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की अन्य असंख्य श्रेणियाँ और रूप भी हैं। देवताओं की यह संख्या धार्मिक दृष्टिकोण से प्रतीकात्मक है और यह ब्रह्मांडीय शक्तियों के विविध रूपों का प्रतिनिधित्व करती है।

कुछ लोग “33 करोड़ देवता” का उल्लेख करते हैं, जो एक सांकेतिक अभिव्यक्ति हो सकती है, जो यह दर्शाती है कि देवी-देवताओं की कोई सीमित संख्या नहीं है। हिंदू धर्म में अनंत देवी-देवता हैं, जिनकी पूजा विभिन्न रूपों और आस्थाओं में की जाती है।

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तो, संक्षेप में, हिंदू धर्म में 33 कोटि देवता होते हैं, जो प्रकारों को दर्शाते हैं, और “33 करोड़” शब्द केवल प्रतीकात्मक रूप से हर देवी-देवता की अनंतता को व्यक्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

इस ब्लॉग के माध्यम से, हमने भारतीय धर्म के देवताओं की समृद्ध परंपरा और उनकी संरचना को समझने का प्रयास किया। यह एक ऐसा विषय है, जो आध्यात्मिकता और विज्ञान के अद्भुत संगम को प्रस्तुत करता है।

हिंदू धर्म में भगवान के दो मुख्य रूप माने जाते हैं — सगुण और निरगुण। सगुण रूप में भगवान के रूप, आकार और गुण होते हैं, जबकि निरगुण रूप में भगवान निराकार, निराकार, और गुणहीन होते हैं। निरगुण रूप को निर्गुण ब्रह्म के रूप में जाना जाता है, जो सर्वोच्च, निराकार और अद्वितीय सत्ता का प्रतीक है। इस रूप में भगवान के कोई भौतिक रूप या गुण नहीं होते, वे केवल शुद्ध चेतना और ब्रह्म हैं।

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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