शास्त्र कितने हैं, कौन-कौन से हैं और उनके नाम क्या हैं?

शास्त्र कितने हैं, कौन-कौन से हैं और उनके नाम क्या हैं?

शास्त्र कितने हैं कौन-कौन से हैं – जब भी धार्मिक सत्संग या अध्यात्म की चर्चा होती है, तो चार वेद, अठारह पुराण और छह शास्त्रों का उल्लेख अनिवार्य रूप से होता है। वेदों और पुराणों के नाम तो प्रायः सभी जानते हैं, लेकिन छह शास्त्रों की जानकारी अपेक्षाकृत कम होती है। इन छह शास्त्रों को “षड्दर्शन” भी कहा जाता है। प्रत्येक दर्शन का अपना महत्व और विशिष्टता है। आइए, इन छह शास्त्रों और उनके रचयिता ऋषियों की सरल भाषा में व्याख्या करें। आगे के लेखों में हम प्रत्येक ग्रंथों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

शास्त्र कितने हैं कौन-कौन से हैं

दर्शनरचयिताप्रमुख सिद्धांत
न्यायमहर्षि गौतमतत्वज्ञान से मोक्ष
वैशेषिकमहर्षि कणादधर्म और मोक्ष का विज्ञान
सांख्यमहर्षि कपिलप्रकृति और पुरुष का संयोग
योगमहर्षि पतंजलिचित्त की वृत्तियों का निरोध
मीमांसामहर्षि जैमिनियज्ञ और कर्मकांड
वेदांतमहर्षि बादरायणब्रह्म और जीव की एकता

1. न्याय दर्शन (महर्षि गौतम)

न्याय दर्शन के रचयिता महर्षि गौतम हैं। इस दर्शन में पदार्थों के तत्वज्ञान से मोक्ष प्राप्ति की विधि बताई गई है। महर्षि गौतम ने न्याय को सत्य और असत्य की परख का साधन माना है। उनके अनुसार पदार्थों के सही ज्ञान से मिथ्या ज्ञान का नाश होता है, और जब मिथ्या ज्ञान समाप्त हो जाता है, तो व्यक्ति अशुभ कर्मों से दूर हो जाता है।

न्याय दर्शन में परमात्मा को सृष्टि का कर्ता, निराकार, सर्वव्यापक और जीवात्मा को शरीर से भिन्न माना गया है। यह दर्शन त्रैतवाद (ईश्वर, जीव और प्रकृति के पृथक अस्तित्व) को स्वीकार करता है। न्याय की परिभाषा के अनुसार, सत्य तक पहुंचने का उपाय है प्रमाण। महर्षि गौतम ने चार प्रमाण बताए हैं:

  • प्रत्यक्ष (सीधा अनुभव)
  • अनुमान (तर्क से निष्कर्ष)
  • उपमान (तुलना के आधार पर ज्ञान)
  • शब्द (वेदों का प्रमाण)

2. वैशेषिक दर्शन (महर्षि कणाद)

वैशेषिक दर्शन के रचयिता महर्षि कणाद हैं। इस दर्शन में धर्म के सच्चे स्वरूप और मोक्ष प्राप्ति के साधनों का वर्णन किया गया है। वैशेषिक दर्शन के अनुसार, सृष्टि के मूल तत्व छः हैं:

  1. द्रव्य (पदार्थ)
  2. गुण (विशेषताएं)
  3. कर्म (क्रियाएं)
  4. सामान्य (सामान्यता)
  5. विशेष (विशिष्टता)
  6. समवाय (संबंध)

महर्षि कणाद ने कहा है कि इन तत्वों के सही ज्ञान से मोक्ष संभव है। वैशेषिक दर्शन का प्रमुख सिद्धांत यह है कि समानता के आधार पर कोई दो चीजें एक नहीं हो सकतीं। उदाहरण के लिए, चार पैर होने के कारण गाय और भैंस एक नहीं हो सकते। इसी प्रकार, जीव और ब्रह्म दोनों चेतन हैं, लेकिन दोनों एक नहीं हैं।

3. सांख्य दर्शन (महर्षि कपिल)

सांख्य दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कपिल हैं। इस दर्शन का मुख्य सिद्धांत है कि इस सृष्टि का उपादान कारण प्रकृति है। इसका अर्थ है कि सृष्टि का निर्माण किसी बाहरी तत्व से नहीं, बल्कि प्रकृति से हुआ है। महर्षि कपिल ने “सत्कार्यवाद” का समर्थन किया, जिसके अनुसार सृष्टि का हर कार्य पूर्व में उसके कारण में निहित होता है।

सांख्य दर्शन के दो प्रमुख तत्व हैं:

  1. प्रकृति: यह अचेतन और सृष्टि का कारण है।
  2. पुरुष: यह चेतन और साक्षी है।

महर्षि कपिल ने कहा है कि प्रकृति और पुरुष के संयोग से सृष्टि की उत्पत्ति होती है। पुरुष साक्षी है, भोक्ता है, जबकि प्रकृति कर्मशील है।

4. योग दर्शन (महर्षि पतंजलि)

योग दर्शन के रचयिता महर्षि पतंजलि हैं। यह दर्शन आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग दिखाता है। महर्षि पतंजलि ने योग को चित्त की वृत्तियों को नियंत्रित करने का साधन बताया है। उन्होंने आठ अंगों (अष्टांग योग) का वर्णन किया है:

  1. यम (सदाचार)
  2. नियम (आत्म-नियंत्रण)
  3. आसन (शारीरिक स्थिरता)
  4. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण)
  5. प्रत्याहार (इंद्रियों को नियंत्रित करना)
  6. धारणा (एकाग्रता)
  7. ध्यान (ध्यान लगाना)
  8. समाधि (आत्मा का परमात्मा में विलय)

योग दर्शन के अनुसार, ईश्वर का ध्यान तभी संभव है जब इंद्रियां अंतर्मुखी हों। महर्षि पतंजलि ने “ओं” को परमात्मा का मुख्य नाम माना है और उसकी उपासना पर विशेष बल दिया है।

5. मीमांसा दर्शन (महर्षि जैमिनि)

मीमांसा दर्शन के रचयिता महर्षि जैमिनि हैं। इसे “पूर्व मीमांसा” भी कहा जाता है। इस दर्शन में वैदिक यज्ञों और कर्मकांडों का विस्तार से वर्णन है। महर्षि जैमिनि ने वेदों को धर्म का परम प्रमाण माना है। उनके अनुसार, धर्म का पालन करने से व्यक्ति और समाज दोनों का कल्याण होता है।

मीमांसा दर्शन मुख्यतः यज्ञों और उनके मंत्रों के उपयोग पर आधारित है। इसमें छह आधार बताए गए हैं:

  1. श्रुति (जो सुनी गई है)
  2. वाक्य (वेदों का वाक्य विन्यास)
  3. प्रकरण (संदर्भ)
  4. स्थान (स्थान विशेष)
  5. समाख्या (नामकरण)

यह दर्शन बताता है कि प्रत्येक कर्म का उद्देश्य लोक कल्याण और आत्मा की शुद्धि है।

6. वेदांत दर्शन (महर्षि बादरायण)

वेदांत दर्शन को “उत्तर मीमांसा” भी कहा जाता है। इसके प्रवर्तक महर्षि बादरायण (वेद व्यास) हैं। ब्रह्मसूत्र इस दर्शन का मूल ग्रंथ है। वेदांत का अर्थ है “वेदों का अंतिम ज्ञान”।

इस दर्शन के अनुसार, ब्रह्म सृष्टि का निमित्त कारण है। यह सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, आनंदमय, नित्य और अनंत है। महर्षि बादरायण ने वेदांत दर्शन में अद्वैतवाद का प्रतिपादन किया है। उनके अनुसार, ब्रह्म और जीव अलग नहीं, बल्कि एक ही हैं।

वेदांत दर्शन के प्रमुख सिद्धांत:

  1. ब्रह्म निराकार और सर्वव्यापी है।
  2. जीवात्मा ब्रह्म का अंश है।
  3. मोक्ष आत्मा का ब्रह्म में विलय है।

महर्षि बादरायण ने वेदांत दर्शन के माध्यम से आत्मा और परमात्मा की एकता पर जोर दिया है।

निष्कर्ष – शास्त्र कितने हैं कौन-कौन से हैं

छह दर्शनों का भारतीय संस्कृति और धर्म में अद्वितीय स्थान है। ये दर्शन हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने और आत्मा की मुक्ति का मार्ग दिखाने में सहायता करते हैं।

इन दर्शनों का अध्ययन हमें भारतीय ज्ञान परंपरा की महानता का अनुभव कराता है और हमारे जीवन को नई दिशा देने में सहायक होता है।

Written By Professor Shiv Chandra Jha Mo:- 9631487357 M.A In Dharmashastra shiv.chandra@praysure.in शास्त्र कितने हैं कौन-कौन से हैं

नम्र निवेदन :- प्रभु की कथा से यह भारत वर्ष भरा परा है | अगर आपके पास भी हिन्दू धर्म से संबधित कोई कहानी है तो आप उसे प्रकाशन हेतु हमें भेज सकते हैं | अगर आपका लेख हमारे वैबसाइट के अनुकूल होगा तो हम उसे अवश्य आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे | अपनी कहानी यहाँ भेजें | Praysure को Twitter पर फॉलो, एवं Facebook पेज लाईक करें |

प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
See also  हमारे शास्त्र हमारा विज्ञान