हिंदू धर्म क्या है? – हिंदू धर्म, जिसे सनातन धर्म के नाम से भी जाना जाता है, विश्व का सबसे धर्म है, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई है। यह धर्म अपनी समृद्ध और विस्तृत परंपराओं के साथ-साथ गहन आध्यात्मिक दर्शन के लिए भी प्रसिद्ध है। सनातन हिंदू धर्म सृष्टि के आदि से आया हुआ भूमंडल मे विख्यात धर्म है। इसकी नींव में गहन और प्राचीन शास्त्रों का ज्ञान निहित है, जिन्हें समझना अत्यंत आवश्यक है। यहां इस धर्म के मूल सिद्धांतों और आधारभूत शास्त्रों का संक्षेप में पूजनीय गुरुदेव श्रीराम शर्मा (1911–1990) द्वारा प्रस्तुत वर्णन, गायत्री परिवार के माध्यम से जानेंगे ।
सनातन हिंदू धर्म: सृष्टि के आदिकाल से वर्तमान तक
सनातन हिंदू धर्म सृष्टि के आदिकाल से ही मानव समाज में प्रचलित और सम्मानित धर्म है। इसका आधार बहुत प्राचीन और गहन है। हिंदू धर्म के आधारभूत शास्त्रों का ज्ञान रखना आवश्यक है। यहाँ हम संक्षेप में हिंदू धर्म के मुख्य शास्त्रों का निरूपण करेंगे।
हिंदू धर्म की जड़ें प्राचीन काल से जुड़ी हैं। इसकी मान्यताएँ और सिद्धांत न केवल धार्मिक हैं, बल्कि जीवन जीने की एक गहन और व्यापक दृष्टि प्रदान करते हैं। यह धर्म विविधता में एकता का उदाहरण है और सभी जीवों के कल्याण के प्रति समर्पित है।
हिंदू धर्म न तो किसी एक समय पर आरंभ हुआ, न ही इसका कोई एक संस्थापक है , जैसे यीशु मसीह, गौतम बुद्ध, हजरत मोहम्मद, या अब्राहम ,यह धर्म आदिकाल से है । इसी कारण, इसकी उत्पत्ति की कोई निश्चित तिथि नहीं दी जा सकती। हिंदू धर्म के प्राचीनतम ग्रंथ वेद हैं, जिन्हें 3000 ईसा पूर्व से भी पुराना माना जाता है। कुछ विद्वान इन्हें 8000-6000 ईसा पूर्व तक प्राचीन मानते हैं। वहीं, हिंदू वेदों को ईश्वरीय और अनादि (कालातीत) मानते हैं।
हिंदू धर्म का मूल स्रोत: वेद
वेद हिंदु धर्म का मुल आधार हैं । वेदों के बाद उपवेद, वेद के अंग और उपांग आते हैं। वेदों के दो मुख्य भाग होते हैं – एक मंत्रभाग और दूसरा ब्राह्मणभाग। मंत्रभाग में संहिताएँ होती हैं और ब्राह्मणभाग में ब्राह्मणग्रंथ, आरण्यक और उपनिषदें होती हैं।
मंत्रभाग के चार वेद
- ऋग्वेद: ऋग्वेद में 21 संहिताएँ होती हैं, जिनमें से आज केवल दो संहिताएँ मिलती हैं – बाष्कल और शाकल। ऋग्वेद की शेष संहिताएँ लुप्त हो चुकी हैं।
- यजुर्वेद: यजुर्वेद के दो भेद होते हैं – शुक्ल और कृष्ण। शुक्ल यजुर्वेद की 15 संहिताएँ हैं, जिनमें से केवल दो संहिताएँ मिलती हैं – वाजसनेयी और काण्व। कृष्ण यजुर्वेद की 86 संहिताएँ होती हैं, जिनमें से चार मिलती हैं – तैत्तिरीय संहिता, मैत्रायणी, काठक और कठकपिष्ठल। शेष संहिताएँ इसकी भी लुप्त हो चुकी हैं।
- सामवेद: सामवेद की 1000 संहिताएँ होती हैं, जिनमें से आज केवल दो संहिताएँ मिलती हैं – कौथुम और जैमिनी। कुछ भाग राणायनीय संहिता का भी मिलता है।
- अथर्ववेद: अथर्ववेद की 9 संहिताएँ होती हैं, जिनमें से आज केवल दो संहिताएँ मिलती हैं – शौनक और पैप्पलाद।
मंत्रभाग की जितनी संहिताएँ होती हैं, ब्राह्मणभाग भी उतना ही होता है, क्योंकि शब्द और अर्थ का संबंध होता है। आरण्यक और उपनिषदें भी उतनी ही होती हैं। श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और प्रातिशाख्य भी उतने ही होते हैं।
ब्राह्मण भाग के ग्रंथ
- ऋग्वेद: ऋग्वेद के ऐतरेय और कौशीतक ब्राह्मण मिलते हैं। ऐतरेय उपनिषद आदि 10 उपनिषदें मिलती हैं। आश्वलायन और शान्ख्यान दो श्रौतसूत्र और दो गृह्यसूत्र हैं।
- यजुर्वेद: शुक्ल यजुर्वेद के माध्यंदिन शतपथ ब्राह्मण और कण्व शतपथ ब्राह्मण मिलते हैं। कण्व संहिता का बृहदारण्यक आरण्यक मिलता है। कात्यायन श्रौतसूत्र और पारस्कर गृह्यसूत्र मिलते हैं। तैत्तिरीय ब्राह्मण और आरण्यक मिलते हैं।
- सामवेद: तांडय, षड्विन्श, मंत्र-ब्राह्मण आदि 9 ब्राह्मण हैं। छांदोग्य आदि 16 उपनिषदें हैं। द्राह्ययण, लाट्यायन और मशकसूत्र आदि 3 श्रौतसूत्र और गोभिल, खादिर और जैमिनीय 3 गृह्यसूत्र हैं।
- अथर्ववेद: गोपथ ब्राह्मण मिलता है। प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य आदि 31 उपनिषदें हैं। वैखानस और वाराह गृह्यसूत्र मिलते हैं।
हिंदू धर्म के मुख्य सिद्धांत
हिंदू धर्म में व्यापक मान्यताएँ हैं, लेकिन इसके कुछ मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
- वेदों को ईश्वरीय और दिव्य ज्ञान मानना
हिंदू धर्म के आधारभूत ग्रंथ वेद हैं, जो ज्ञान का सर्वोच्च स्रोत और ईश्वर की रचना हैं । - सर्वव्यापक और सर्वोच्च शक्ति में विश्वास
यह माना जाता है कि एक अनंत और सर्वव्यापी शक्ति है जो पूरे ब्रह्मांड का संचालन करती है। इसे “ब्रह्म” के रूप में जाना जाता है। - समय को चक्र के रूप में देखना
हिंदू धर्म में समय को रैखिक (सीधे) नहीं बल्कि चक्रीय (चक्र के रूप में) माना जाता है। इसे “सृष्टि, पालन, और विनाश” के अनवरत चक्र के रूप में देखा जाता है। - कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत
हर व्यक्ति के कार्य (कर्म) उसके वर्तमान और भविष्य के जीवन को प्रभावित करते हैं। पुनर्जन्म को कर्मों के फलस्वरूप माना जाता है। - अहिंसा का महत्व
हिंदू धर्म अहिंसा में विश्वास करता है, अर्थात किसी भी प्राणी को शारीरिक, मानसिक, या भावनात्मक रूप से हानि न पहुंचाना। - सर्व धर्म समभाव
यह मान्यता है कि सभी धर्म सत्य तक पहुँचने के विभिन्न मार्ग हैं। कोई भी धर्म श्रेष्ठ या हीन नहीं है। - अध्यात्म को जीवन का आधार मानना
हिंदू धर्म में आत्मा और परमात्मा के ज्ञान को जीवन का सबसे अहम उद्देश्य माना गया है। यह भौतिक सुखों से ऊपर आत्मिक शांति और मुक्ति की राह दिखाता है।
उपवेद और अंग
जैसे वेद चार प्रकार के होते हैं, वैसे ही उपवेद भी चार प्रकार के होते हैं:
- आयुर्वेद: इसका संबंध अथर्ववेद से है।
- धनुर्वेद: इसका संबंध यजुर्वेद से है।
- गान्धर्ववेद: इसका संबंध सामवेद से है।
- अर्थवेद: इसका संबंध ऋग्वेद से है।
आयुर्वेद की संहिताएँ जैसे सुश्रुत, चरक, भेल, काश्यप आदि होती हैं। वेद के अंग छः होते हैं – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष। इनमें ऋग्वेद की पाणिनि शिक्षा, कृष्ण यजुर्वेद की व्यासशिक्षा और शुक्ल यजुर्वेद की याज्ञवल्क्य शिक्षा प्रमुख हैं।
वेद के उपांग
वेद के चार उपांग होते हैं:
- पुराण: इसमें 18 पुराण होते हैं – ब्रह्म, पद्म, विष्णु, शिव, लिंग, गरुड़, नारद, भागवत, अग्नि, स्कंद, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, मार्कंडेय, वामन, वाराह, मत्स्य, कूर्म और ब्रह्मांड।
- न्याय: इसमें न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग दर्शन आते हैं।
- मीमांसा: इसमें पूर्वमीमांसा (कर्ममीमांसा) और उत्तरमीमांसा (वेदांत) आते हैं।
- धर्मशास्त्र: इसमें धर्मसूत्र और स्मृतियाँ आती हैं।
पुराण
पुराण 18 होते हैं: -पुराणों मे तन्त्रग्रंथो का भी समावेश हो जाता है। तंत्रशास्त्र मे भी वेदों के विषय विभिन्न अधिकारियो के लिए बतलाये गए है। इनमे आचार, उपासना, ज्ञान , मन्त्र, हठ, ले आदि योग, आयुर्वेद के वाजीकरण आदि के गुप्त योग, भूतविद्या, रसायन आदि सभी विद्याये और ज्योतिष के रहस्य स्पष्ट किये गए है।
तन्त्रो के परोक्षरूप से कहे गए कई तत्व अतिशयित गूढ़ है। परिभाषाये, मेरुमंत्र, महानिर्वाणतंत्र , आगमसार , हठयोग – प्रदीपिका आदि से जाने बिना वे अश्लील प्रतीत होते है। किन्तु उनकी परिभाषा जानने के बाद अत्यंत आनंद आता है। दत्तात्रे, कुलार्णव , कालीतंत्र आदि बहुत से तन्त्रग्रंथ होते है।
- ब्रह्म पुराण: ब्रह्म पुराण हिंदू धर्म का एक प्रमुख पुराण है, जिसमें सृष्टि, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की महिमा का वर्णन है।
- पद्म पुराण: पद्म पुराण में देवी-देवताओं की कथाएँ और धर्म के नियमों का विस्तृत विवरण है।
- विष्णु पुराण: विष्णु पुराण में भगवान विष्णु की महिमा, उनकी अवतार कथाएँ और विश्व के संचालन की प्रक्रिया का वर्णन है।
- शिव या वायु पुराण: शिव पुराण में भगवान शिव की आराधना और उनके विभिन्न रूपों का वर्णन है।
- लिंग पुराण: लिंग पुराण में शिवलिंग की महिमा और पूजा का महत्व बताया गया है।
- गरुड़ पुराण: गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद की यात्रा, यमलोक और पितरों का वर्णन है।
- नारद पुराण: नारद पुराण में भक्ति और संगीत का महत्व बताया गया है।
- भागवत पुराण: भागवत पुराण में भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है।
- अग्नि पुराण: अग्नि पुराण में विभिन्न यज्ञ और अनुष्ठानों का वर्णन है।
- स्कंद पुराण: स्कंद पुराण में कार्तिकेय की कथा और तीर्थयात्राओं का वर्णन है।
- भविष्य पुराण: भविष्य पुराण में भविष्य की घटनाओं और धार्मिक विधियों का वर्णन है।
- ब्रह्मवैवर्त पुराण: ब्रह्मवैवर्त पुराण में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की महिमा का वर्णन है।
- मार्कंडेय पुराण: मार्कंडेय पुराण में देवी दुर्गा की कथा और चंड-मुंड के वध का वर्णन है।
- वामन पुराण: वामन पुराण में वामन अवतार की कथा और बलि राजा की कथा का वर्णन है।
- वाराह पुराण: वाराह पुराण में वाराह अवतार की कथा और पृथ्वी की रचना का वर्णन है।
- मत्स्य पुराण: मत्स्य पुराण में मत्स्य अवतार की कथा और मन्वंतर की जानकारी है।
- कूर्म पुराण: कूर्म पुराण में कूर्म अवतार की कथा और सृष्टि के निर्माण का वर्णन है।
- ब्रह्मांड पुराण: ब्रह्मांड पुराण में ब्रह्मांड की रचना, विभिन्न युगों और महायुगों का वर्णन है।
उपपुराण
उपपुराण भी 18 होते हैं:
- आदि-पुराण
आदि-पुराण हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पुराणों में से एक है, जिसमें सृष्टि की उत्पत्ति, मनुष्यों के जीवन के उद्देश्य और धार्मिक कर्तव्यों का विस्तृत विवरण मिलता है। - नरसिंह पुराण
यह पुराण भगवान नरसिंह के अवतार से संबंधित है, जिसमें उनके जन्म, कार्य और भक्तों के लिए उपदेश दिए गए हैं। यह पुराण विशेष रूप से भक्तों को आध्यात्मिक उत्थान के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। - स्कन्द पुराण
स्कन्द पुराण भगवान शिव और उनके पुत्र, भगवान कार्तिकेय (स्कन्द) से संबंधित है। इसमें धर्म, दर्शन, योग और तपस्या के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। - शिवधर्म पुराण
इस पुराण में भगवान शिव की उपासना और उनके धार्मिक कर्तव्यों के बारे में बताया गया है। यह पुराण विशेष रूप से शिवभक्तों के लिए महत्वपूर्ण है। - दुर्वासा पुराण
यह पुराण संत दुर्वासा से संबंधित है, जो अपने कठोर तप और क्रोध के लिए प्रसिद्ध थे। इसमें उनके उपदेशों और जीवन के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं का वर्णन किया गया है। - नारदीय पुराण
इस पुराण का संबंध ऋषि नारद से है, जो देवताओं और ऋषियों के संदेशवाहक माने जाते हैं। इसमें भक्ति, धर्म और संगीत के महत्व पर विशेष रूप से चर्चा की गई है। - कपिल पुराण
यह पुराण मुनि कपिल के जीवन और उनके अद्वितीय ज्ञान पर आधारित है। इसमें सांख्य योग और आत्मा के वास्तविक रूप की पहचान पर बल दिया गया है। - वामन पुराण
वामन पुराण भगवान वामन के अवतार से संबंधित है, जिसमें उनके तीन चरणों से पृथ्वी को बचाने की कथा का विस्तार से वर्णन है। यह पुराण भी धर्म और पूजा के महत्व पर बल देता है। - महेश्वर पुराण
इस पुराण में भगवान शिव के महिमा और उनके विविध रूपों का वर्णन किया गया है। यह शिवभक्तों के लिए धार्मिक शिक्षा का महत्वपूर्ण स्रोत है। - औशनस पुराण
इस पुराण में औशनस ऋषि के उपदेश और जीवन से जुड़ी कथाएँ वर्णित हैं, जिसमें भक्ति और साधना के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। - ब्रह्माण्ड पुराण
ब्रह्माण्ड पुराण में सृष्टि की रचना, ब्रह्मा, विष्णु और शिव के कार्य, और विश्व के चक्र के बारे में बताया गया है। यह पुराण संसार के विस्तार और इसके संचालन के रहस्यों को उजागर करता है। - वरुण पुराण
वरुण पुराण में वरुण देवता, जल, समुद्र और अन्य जल तत्वों का वर्णन किया गया है। यह पुराण जल से संबंधित धार्मिक और आध्यात्मिक उपदेश प्रदान करता है। - कालिका पुराण
यह पुराण देवी कालिका के विभिन्न रूपों, उनकी उपासना और उनके शक्तिशाली मंत्रों के बारे में है। इसमें तंत्र साधना का भी विस्तृत विवरण मिलता है। - साम्ब पुराण
साम्ब पुराण भगवान शिव के पुत्र साम्ब के जीवन और उनके संघर्षों के बारे में है। इसमें शारीरिक और मानसिक साधना की महत्ता पर चर्चा की जाती है। - सौर पुराण
इस पुराण में सूर्य देवता की पूजा, उनके महत्व और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जाती है। यह पुराण सूर्य उपासकों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। - पाराशर पुराण
इस पुराण में ऋषि पाराशर के जीवन और उनके उपदेशों का वर्णन किया गया है। यह पुराण मुख्य रूप से विधि, संस्कार और धार्मिक आचार-व्यवहार पर केंद्रित है। - मारीच पुराण
मारीच पुराण में मारीच नामक राक्षस के जीवन और उसकी भूमिका का विवरण है। इसमें अच्छाई और बुराई के संघर्ष की कथा भी मिलती है। - भास्कर पुराण
यह पुराण सूर्य देवता के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है, और सूर्य की उपासना के महत्त्व को रेखांकित करता है।
औपपुराण
औपपुराण भी 18 होते है
- सनत्कुमार पुराण
इस पुराण में सनत्कुमार ऋषि के उपदेशों और उनके धार्मिक दृष्टिकोण का वर्णन किया गया है। यह पुराण ध्यान, साधना और तपस्या पर विशेष रूप से केंद्रित है। - बृहन्नारदीय पुराण
यह पुराण ऋषि नारद से संबंधित है और इसमें भक्ति, संगीत, और धार्मिक आचारधर्म के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। विशेष रूप से इसमें भगवान विष्णु के भक्तिपंथ का प्रचार किया गया है। - आदित्य पुराण
आदित्य पुराण सूर्य देवता और उनके 12 रूपों के बारे में बताता है। इसमें सूर्य उपासना और उनकी महिमा पर विशेष बल दिया गया है। - मानव पुराण
इस पुराण में मानव जीवन और धर्म, कर्म, और धर्म के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जाती है। यह पुराण जीवन के उद्देश्य और धार्मिक आस्थाओं पर मार्गदर्शन प्रदान करता है। - नन्दिकेश्वर पुराण
इस पुराण में भगवान शिव के पूजनीय रूप नन्दिकेश्वर के बारे में विस्तार से बताया गया है। यह पुराण विशेष रूप से शिव भक्ति और तंत्र साधना से जुड़ा हुआ है। - कौर्म पुराण
कौर्म पुराण में भगवान विष्णु के कुर्म अवतार का वर्णन है, जिसमें उन्होंने पृथ्वी को रक्षक के रूप में अपने कच्छप रूप में धारण किया था। इसमें धर्म, आचार और पूजा विधियों का भी विस्तार से उल्लेख है। - भागवत पुराण
भागवत पुराण भगवान विष्णु के अवतारों, विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण के जीवन और उपदेशों के बारे में है। इसमें भक्तिपंथ, धार्मिक शिक्षा और साधना का मार्ग बताया गया है। - वसिष्ठ पुराण
यह पुराण महान ऋषि वसिष्ठ के उपदेशों और उनके जीवन की कथाएँ प्रदान करता है। इसमें जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक पहलुओं पर बल दिया गया है। - भार्गव पुराण
इस पुराण में ऋषि भार्गव की जीवनगाथा और उनके योगदानों का विवरण है। यह पुराण विशेष रूप से वेदों और तपस्या के महत्व पर प्रकाश डालता है। - मुद्गल पुराण
मुद्गल पुराण में मुद्गल ऋषि के जीवन और उनके धार्मिक उपदेशों का विवरण दिया गया है। इसमें साधना, योग और आचार्य की शिक्षा पर बल दिया गया है। - कल्कि पुराण
कल्कि पुराण भविष्य में भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के आगमन और उनके कार्यों का वर्णन करता है। यह पुराण भविष्य के धर्म और समाज की स्थिति पर विचार करता है। - देवी पुराण
देवी पुराण में देवी शक्ति के विभिन्न रूपों की पूजा, उनके महात्म्य और उपासना विधियों का वर्णन किया गया है। यह पुराण विशेष रूप से मातृभक्ति और तंत्रशास्त्र से संबंधित है। - महाभागवत पुराण
महाभागवत पुराण भगवान श्री कृष्ण के जीवन के बारे में विस्तार से वर्णन करता है। इसमें उनके गीता के उपदेश, उनके कर्म और भक्ति का महत्व बताया गया है। - बृहद्धर्म पुराण
बृहद्धर्म पुराण में धर्म के व्यापक सिद्धांतों और जीवन के उद्देश्य पर चर्चा की गई है। यह पुराण विशेष रूप से धार्मिक आचार, संस्कारों और पूजा विधियों का विवरण देता है। - परानंद पुराण
यह पुराण आध्यात्मिक आनंद और जीवन के अंतिम उद्देश्य की प्राप्ति पर केंद्रित है। इसमें संतुष्टि और निर्वाण प्राप्ति के मार्गों पर विचार किया गया है। - पशुपति पुराण
पशुपति पुराण में भगवान शिव के पशुपति रूप की पूजा और उनके शरणागत वत्सलता का वर्णन किया गया है। यह पुराण विशेष रूप से पशुपति उपासना के महत्व पर जोर देता है। - वाहि पुराण
वाहि पुराण में जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक पहलुओं पर चर्चा की गई है। यह पुराण तात्त्विक और धार्मिक दृष्टिकोण से सजीव जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को उजागर करता है। - हरिवंश पुराण
हरिवंश पुराण महाभारत के एक भाग के रूप में माना जाता है और इसमें भगवान श्री कृष्ण के जन्म, जीवन और उनके कार्यों का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह पुराण विशेष रूप से कृष्ण भक्ति और उनके अवतार के महत्व को उजागर करता है।
वेद के उपांगो मे दूसरा भाग इतिहास है। इनमे मुख्यतः रामायण, महाभारत लिए जाते है। इनमे रामायण आदिकवि वाल्मीकि की आदिम मधुर रचना है। इसमे श्री राम अवतार का वर्णन है। इसकी पद्य संख्या २६ हज़ार है। दूसरा है महाभारत ये १ लाख पद्यो का है। इसमे १८ पर्व है। इसमे हिंदू धर्म के सभी विषय इतिहास द्वारा व्याख्यात कर दिए गए है।
न्याय दर्शन
न्याय दर्शन में तर्क और विश्लेषण पर आधारित है और यह हिंदू दर्शन के छह प्रमुख दर्शनों में से एक है। इसमें चार प्रमुख दर्शन आते हैं:
- न्याय दर्शन: महर्षि गौतम द्वारा रचित, इस दर्शन में पदार्थों के तत्वज्ञान से मोक्ष प्राप्ति का वर्णन है। यह दर्शन तर्क, प्रमाण और तत्त्वज्ञान पर आधारित है।
- वैशेषिक दर्शन: महर्षि कणाद द्वारा रचित, इस दर्शन में धर्म, द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय के तत्वज्ञान से मोक्ष प्राप्ति मानी जाती है।
- सांख्य दर्शन: महर्षि कपिल द्वारा रचित, यह दर्शन सृष्टि के उपादान कारण प्रकृति को मानता है और इसमें सत्कार्यवाद का सिद्धांत है।
- योग दर्शन: महर्षि पतंजलि द्वारा रचित, इस दर्शन में योग के माध्यम से चित्त की वृत्तियों के नियंत्रण और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया गया है।
मीमांसा
मीमांसा दर्शन वेदों के अध्ययन और व्याख्या पर केंद्रित है। इसमें दो प्रमुख धाराएँ हैं:
- पूर्वमीमांसा (कर्ममीमांसा): महर्षि जैमिनी द्वारा रचित, यह वेदों के यज्ञ और अनुष्ठानों की व्याख्या करता है। इसमें वेदों के मंत्रों और यज्ञों की प्रक्रियाओं का विवरण है।
- उत्तरमीमांसा (वेदांत): महर्षि वादरायण द्वारा रचित, यह वेदों के अंतिम सिद्धांतों और आत्मज्ञान पर केंद्रित है। इसमें ब्रह्म, आत्मा और मोक्ष की व्याख्या है।
धर्मशास्त्र
धर्मशास्त्र हिंदू धर्म के नैतिक और सामाजिक नियमों का संकलन है। इसमें धर्मसूत्र और स्मृतियाँ आती हैं:
- धर्मसूत्र: यह प्राचीन ग्रंथ हैं जो मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं और कर्तव्यों का वर्णन करते हैं। प्रमुख धर्मसूत्रों में गौतम धर्मसूत्र, वसिष्ठ धर्मसूत्र, आपस्तम्ब धर्मसूत्र और बोधायन धर्मसूत्र आते हैं।
- स्मृतियाँ: (१) मनुस्मृति (२) वृद्धमनु (३) आंगिर: स्मृति (४) अत्रि (५) आपस्तम्ब (६) औशनस (७) कात्यायन (८) गोभिल (प्रजापति) (९) यम (१०) बृहद्थम (११) लघुविष्णु (१२) वृहद्विष्णु (१३) नारद (१४) शातातप (१५) हारीत (१६) वृद्धहारीत (१७) लघुआश्वलायन (१८) शंख (१९) लिखित (२०) शंख – लिखित (२१) याज्ञवल्क्य (२२) व्यास (२३) संवर्त (२४) अत्रिसंहिता (२५) दक्षस्मृति (२६) देवल (२७) बृहस्पति (२८) पाराशर (२९) बृहत्पराशर (३०) कश्यपस्मृति (३१) गौतम स्मृति (३२) वृद्धगौतम (३३) वसिष्ठस्मृति (३४) पुलत्स्य (३५) योगिरुज्ञवल्क्य (३६) व्याघ्रपाद (३७) बोधायन (३८) कपिल (३९) विश्वामित्र (४०) शाण्डिल्य (४१) कण्व (४२) दाल्भ्य (४३) भारद्वाज (४४) मार्कण्डेय (४५) लौगाक्शी आदि ६० स्मृतियाँ है। प्रमुख स्मृतियों में मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति और पाराशर स्मृति हैं।
धर्मशास्त्र मानव जीवन के नैतिक, सामाजिक और धार्मिक आचारों का मार्गदर्शन करता है। यह व्यक्ति के कर्तव्यों, सामाजिक व्यवस्था और धार्मिक आचारों को निर्धारित करता है।
आशा है की यह जानकारी से आप सभी सनातनियों का कल्याण होगा ।
हिंदू धर्म क्या है? – मूल रूप से पूजनीय गुरुदेव श्रीराम शर्मा (1911–1990) द्वारा लिखित एवं आचार्य सियाराम शर्मा द्वारा संशोधित।
पूजनीय पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य (1911–1990) एक महान भारतीय चिंतक, समाज सुधारक, और आध्यात्मिक गुरु थे। वे गायत्री परिवार और अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक हैं। उनका जीवन और कार्य भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के उत्थान के प्रति समर्पित था।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने युग निर्माण योजना के तहत समाज में नैतिकता, स्वच्छता, और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संदेश दिया। उन्होंने गायत्री मंत्र के महत्व को प्रचारित किया और आत्म-सशक्तिकरण व व्यक्तिगत विकास के लिए साधना, स्वाध्याय, और सेवा को आवश्यक बताया।
उनके द्वारा रचित साहित्य अत्यंत व्यापक और गहन है, जिसमें 3,200 से अधिक पुस्तकें शामिल हैं। उनकी कृतियों में आध्यात्मिकता, योग, ध्यान, और मानवता के उत्थान के विषय प्रमुखता से मिलते हैं। हरिद्वार के शांतिकुंज को उन्होंने एक आध्यात्मिक और शैक्षिक केंद्र के रूप में स्थापित किया।
उनका जीवन दर्शन “हम बदलेंगे, युग बदलेगा” और “हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा” जैसे प्रेरणादायक नारों में झलकता है।
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नम्र निवेदन :-प्रभु की कथा से यह भारत वर्ष भरा परा है | अगर आपके पास भी हिन्दू धर्म से संबधित कोई कहानी है तो आप उसे प्रकाशन हेतु हमें भेज सकते हैं | अगर आपका लेख हमारे वैबसाइट के अनुकूल होगा तो हम उसे अवश्य आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे |अपनी कहानी यहाँ भेजें |Praysure को Twitter पर फॉलो, एवं Facebook पेज लाईक करें |