मनसा देवी पूजन : बनाये बिगड़े काम, मनोकामना करे पूरी

मनसा देवी पूजन : बनाये बिगड़े काम, मनोकामना करे पूरी

मनसा देवी पूजन : बनाये बिगड़े काम, मनोकामना करे पूरी -कहा जाता है कि ये भगवान शिव की  मानस पुत्री है. वहीं पुराने ग्रंथो में ये भी कहा गया है कि मनसा देवी का जन्म कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है. कुछ ग्रंथो की मानें तो उन्हें नागराज वासुकी की एक बहन पाने की इच्छा को पूर्ण करने के लिए, भगवान शिव ने उन्हें भेंट किया था.

वासुकी इनके तेज को संभाल ना सके और इनके पोषण की ज़िम्मेदारी नागलोक के तपस्वी हलाहल को दे दी .| इनकी रक्षा करते करते हलाहल ने अपने प्राण त्याग दिए. अपने माता पिता में भ्रम होने के कारण इन्हे देवों द्वारा उठाए गए आनंद से वांछित रखा गया,इसलिए, वह उन लोगों के लिए बेहद उग्र देवी है, जो पूजा करने से इनकार करते हैं, जबकि उनके लिए बेहद दयालु और करुणामयी जो भक्ति के साथ उनकी पूजा करते हैं.

मनसा देवी का पंथ मुख्यतः भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में केंद्रित है. मनसा देवी मुख्यत: सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं, सात नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं. इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता. ये इस प्रकार है:
जरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जगतकारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी.

देवी मनसा की आमतौर पर बरसात के दौरान पूजा की जाती है, क्योंकि साँप उस दौरान अधिक सक्रिय होते हैं.

वे प्रजनन के लिए एक महत्वपूर्ण देवी मानी जाती है, उनके पूजन से साँप का काटना ठीक हो जाता है और श्वासपटल, चिकन पॉक्स आदि जैसी बीमारियों से छुटकारा पाया जाता है. बंगाल कि लोक कथाओ में भी इनका नाम काफी प्रचलित है. माना जाता है, कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान् शिव ने जब हलाहल विष का पान किया था, तो इन्होने ही भगवान शिव कि हलाहल विष से रक्षा की थी .

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सर्वप्रथम देवी मनसा की पूजा अर्चना निम्न वर्ग के लोग करते थे और उनके मंदिर की पूजा आदिवासी समुदाय के लोग करते थे. फिर जैसे -जैसे समय बीतता गया, इनकी मान्यता फैलने लगी और इन्हे बाकि देवी – देवताओ के साथ स्थान दिया जाने लगा. देवी मनसा का मंदिर दो जगह स्तिथ है – एक हरिद्वार से ३ किलोमीटर दूर, जिसे सिद्धपीठ भी कहा गया है. दूसरा पंचकूला में जिसे महाराजा गोपाल सिंह ने शिवालिक पर्वत की गोद में बनवाया .

हरिद्वार स्तिथ माता के मंदिर में एक मनसा पूर्ण करने वाला पेड़ है, जिसपर लोग अपनी इच्छा पूर्ती के लिए धागे बांधते है. यहाँ चैत्र और आश्रि्वन मास के नवरात्रों में मेला लगता है. लोगों की माने, तो यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से ४० दिन निरंतर यहाँ मंदिर प्रांगण में भक्ति भाव से पूजा करे तो उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है.

मनसा देवी पूजन :- साधना विधि

  • साधना सामग्री-लाल चन्दन की लकड़ी, नीला व सफेद धागा जो 8-8 अंगुल का हो। कलश के लिए नारियल, सफेद व लाल वस्त्र, फल, पुष्प, दीप, धूप व पॅच मेवा समेत आदि सामग्री एकत्रित कर लेनी चाहिए।
  • प्रातःकाल स्नान ध्यान करके पूजा स्थान में एक बाजोट पर सफेद रंग का वस्त्र बिछा दे और उस पर एक पात्र में चन्दन के टुकड़े बिछाकर उस पर एक 7 मुख वाला नाग ऑटे का बनाकर स्थापित करें। दूसरे पात्र में एक शिवलिंग स्थापित करें।
  • पहले गणेश जी का पंचोपचार पूजन करें उसके बाद भगवान बिष्णु का फिर शिव जी का पंचोपचार पूजन करें। पूजन में धूप, दीप,फल, पुष्प, नैवेद्य आदि सभी को अर्पित करें। यह साधना रविवार को सांय 7 से 11 बजे के बीच करनी चाहिए। साधना करने के लिए रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए। साधना काल में अखण्ड ज्योति जलती रहनी चाहिए।
  • इस मन्त्र ‘‘ऊॅ हु मनसा अमुक हु फट”का सवा लाख बार जप करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।
  • मन्त्र में जहां पर अमुक शब्द लिखा वहां पर अपनी कोई भी मनोकामना का प्रयोग कर सकते है।
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माता मनसा देवी जी की आरती :-

जय मनसा माता श्री जय मनसा माता जो नर तुमको ध्याता,
जो नर मैया जी को ध्याता मन वांछित फल पाता| जय मनसा माता|

जरत्कारू मुनि पत्नी, तुम वासुकि भगिनी मैया तुम वासुकि भगिनी
कश्यप की तुम कन्या आस्तीक की माता|

सुरनर मुनिगण ध्यावत, सेवत नरनारी मैया सेवत नर नारी
गर्व धन्वन्तरी नाशिनी, हंस वाहिनी देवी जय नागेश्वरी माता| जय मनसा माता|

पर्वतवासिनी संकट नाशिनी, अक्षय धन दात्री|
मैया अक्षय धनदात्री
पुत्र पौत्रदायिनी माता, पुत्र पौत्रदायिनी माता
मन इच्छा फल दाता| जय मनसा माता|

मनसा जी की आरती जो कोई नर गाता
मैया जो नर नित गाता
कहत शिवानन्द स्वामी, रटत हरिहर स्वामी
सुख सम्पति पाता| जय मनसा माता|

Team Praysure ।। Mo:-+91 80517 02246 KEYWORD :- मनसा देवी पूजन

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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