समयसूचक AM और PM का उद्गम स्थल भारत ही था

समयसूचक AM और PM का उद्गम स्थल भारत ही था

समयसूचक AM और PM का उद्गम स्थल भारत ही था – हम बचपन से ही घड़ी में समय देखने के लिए AM (Ante Meridiem) और PM (Post Meridiem) का उपयोग करते आ रहे हैं। हमें यही बताया गया कि AM का अर्थ “पूर्वाह्न” (मध्यान्ह से पहले) और PM का अर्थ “अपराह्न” (मध्यान्ह के बाद) होता है। लेकिन क्या कभी हमने यह विचार किया कि यह समय प्रणाली आखिरकार आई कहां से?

अगर हम गहराई से अध्ययन करें, तो पाएंगे कि AM और PM का वास्तविक आधार भारतीय संस्कृति और प्राचीन संस्कृत भाषा में छिपा हुआ है। यह अवधारणा मूल रूप से भारतीय थी, जिसे पश्चिमी दुनिया ने अपनाया और अपनी भाषा में ढाल लिया।

संस्कृत में AM और PM का वास्तविक अर्थ

संस्कृत भाषा में समय को बहुत ही वैज्ञानिक और प्रकृति-आधारित तरीके से परिभाषित किया गया है। भारतीय कालगणना सूर्य के आधार पर होती थी, और समय को “मार्तण्ड” यानी सूर्य के आरोहण और पतन से जोड़ा गया था।

संस्कृत में AM और PM का सही अर्थ है:

AM = आरोहनम् मार्तण्डस्य (Arohanam Martandasya) – यानी सूर्य का उदय और चढ़ाव
PM = पतनम् मार्तण्डस्य (Patanam Martandasya) – यानी सूर्य का ढलाव और अस्त होना

AM (Arohanam Martandasya) – दिन के पहले भाग में सूर्य निरंतर ऊपर की ओर चढ़ता है।
PM (Patanam Martandasya) – दोपहर के बाद सूर्य ढलान की ओर बढ़ता है।

यह पद्धति न केवल तार्किक थी, बल्कि प्रकृति और खगोल विज्ञान के अनुसार भी थी। लेकिन जब पश्चिमी सभ्यता ने समय गणना की प्रणाली विकसित की, तो उन्होंने हमारे ही ज्ञान को अपनाया और इसे अपने तरीके से परिभाषित कर दिया।

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भारतीय समय गणना और पश्चिमी परिवर्तन

प्राचीन भारत में समय को मापने के लिए कई उच्च स्तरीय प्रणालियां थीं। उदाहरण के लिए, दिन को आठ प्रहरों (याम) में बांटा गया था, और प्रत्येक प्रहर की गणना सूर्य की स्थिति के आधार पर की जाती थी।

लेकिन पश्चिमी सभ्यता ने जब समय मापन को एक निश्चित रूप दिया, तो उन्होंने “मेरिडियन” (Meridian) यानी मध्याह्न को केंद्र में रखकर इसे “Ante Meridiem (AM)” और “Post Meridiem (PM)” नाम दिया। यह नामकरण भारतीय कालगणना के मूल सिद्धांत को प्रतिबिंबित नहीं करता, बल्कि उसे अधूरा और संशोधित रूप में प्रस्तुत करता है।

भारतीय खगोलविदों का योगदान

भारत के प्राचीन गणितज्ञ और खगोलविद समय की सटीक गणना में माहिर थे। आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, वराहमिहिर जैसे विद्वानों ने सूर्य की गति के आधार पर समय की गिनती की थी।

इन विद्वानों ने स्पष्ट रूप से बताया कि:

  • सूर्य का उदय और चढ़ाव (आरोहण) सुबह से दोपहर 12 बजे तक होता है।
  • सूर्य का ढलाव और अस्त (पतन) दोपहर 12 बजे के बाद से सूर्यास्त तक होता है।

यही अवधारणा आगे चलकर AM और PM के रूप में सामने आई, लेकिन दुर्भाग्य से इसका मूल संस्कृत से हटाकर लैटिन भाषा में प्रस्तुत कर दिया गया।

AM और PM के पीछे छिपी सच्चाई

यदि हम इतिहास की गहराई में जाएं, तो हमें पता चलेगा कि भारत में समय मापन और खगोलशास्त्र की परंपरा हजारों वर्षों पुरानी है। पश्चिमी देशों ने इसे अपने तरीके से अपनाया और हमारे मूल ज्ञान को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया।

AM और PM सिर्फ समय सूचक शब्द नहीं हैं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और विज्ञान की एक ऐसी देन है जिसे पूरी दुनिया ने स्वीकार किया, परंतु इसका श्रेय भारत को नहीं दिया गया।

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आज, जब हम अपने दैनिक जीवन में AM और PM का उपयोग करते हैं, तो हमें इस तथ्य को याद रखना चाहिए कि इसका मूल आधार हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा में निहित है।

निष्कर्ष

AM और PM की अवधारणा भारतीय ज्ञान परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे पश्चिमी सभ्यता ने अपनाकर अपनी भाषा में परिभाषित कर दिया। लेकिन इसके मूल में आरोहनम् मार्तण्डस्य (Arohanam Martandasya) और पतनम् मार्तण्डस्य (Patanam Martandasya) का सिद्धांत निहित है, जो सूर्य के उदय और अवसान पर आधारित है।

हमें गर्व होना चाहिए कि हमारी संस्कृति और परंपरा इतनी समृद्ध और वैज्ञानिक थी कि पूरी दुनिया ने इससे प्रेरणा ली। अब समय आ गया है कि हम अपनी जड़ों को पहचानें और अपने महान ज्ञान-विज्ञान को पुनः स्थापित करें।

प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।