सप्तर्षि कौन हैं? इनकी उत्पत्ति कैसे हुई?

सप्तर्षि कौन हैं? इनकी उत्पत्ति कैसे हुई?

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सप्तर्षियों की उत्पत्ति ब्रह्माजी के मस्तिष्क से हुई थी। भगवान महादेव को इनका गुरु माना जाता है, जिन्होंने इन्हें वेदों, ग्रंथों और पुराणों की शिक्षा दी। इनका मुख्य कार्य सृष्टि में संतुलन बनाए रखना, धर्म और मर्यादा की रक्षा करना तथा संसार में सुख-शांति की स्थापना करना है। सप्तर्षियों की तपस्या और ज्ञान की शक्ति इतनी अद्भुत मानी जाती है कि वे अपने योगबल से ब्रह्मांड के संतुलन को बनाए रखते हैं।

सप्तर्षियों का विस्तृत परिचय

1. ऋषि वशिष्ठ

ऋषि वशिष्ठ का विवाह दक्ष की पुत्री अरुंधती से हुआ था। वे राजा दशरथ के कुलगुरु थे और उन्होंने श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को शिक्षा दी थी। उन्होंने ही श्रीराम और लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ राक्षसों का वध करने के लिए भेजा था।

2. ऋषि विश्वामित्र

ऋषि विश्वामित्र पहले एक प्रतापी राजा थे, जिन्होंने संतत्व ग्रहण कर ऋषि का पद प्राप्त किया। उनकी पत्नी अप्सरा मेनका थीं। उन्होंने ही श्रीराम और लक्ष्मण को सीता के स्वयंवर में लेकर गए थे। ऋषि विश्वामित्र को गायत्री मंत्र का सृजनकर्ता भी माना जाता है।

3. ऋषि भारद्वाज

ऋषि भारद्वाज को सप्तर्षियों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उन्होंने इंद्र से आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया और कई ग्रंथों की रचना की। उनके पुत्र द्रोणाचार्य, महाभारत में पांडव और कौरवों के गुरु थे। ऋषि भारद्वाज ने ही प्रयाग की स्थापना की थी। वे एक महान चिकित्सक और वैज्ञानिक भी माने जाते हैं।

4. ऋषि कश्यप

कश्यप ऋषि, ब्रह्माजी के मानस पुत्र मरीची के पुत्र थे। वे अपने चिकित्सा ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी पत्नी अदिति से देवताओं की और दिति से दैत्यों की उत्पत्ति हुई। वे संपूर्ण सृष्टि के प्रसारक माने जाते हैं। कश्यप ऋषि के वंश से ही नाग, यक्ष, गंधर्व और अन्य कई जातियां उत्पन्न हुईं।

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5. ऋषि अत्रि

ऋषि अत्रि की पत्नी सती अनुसूया थीं, जो सोलह सतियों में से एक मानी जाती हैं। उन्होंने अपने तपोबल से ब्रह्मा, विष्णु और महेश को बालक रूप में परिवर्तित कर दिया था। ऋषि अत्रि को खगोलीय घटनाओं और सूर्यग्रहण का बड़ा ज्ञाता माना जाता है। उनके पुत्र दत्तात्रेय, चंद्रमा और दुर्वासा ऋषि थे।

6. ऋषि गौतम

ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या थीं, जो उनके श्राप के कारण पत्थर बन गई थीं और बाद में श्रीराम की कृपा से उन्हें पुनः जीवन मिला। उन्होंने अपने तप से ब्रह्मगिरी पर्वत पर मां गंगा को अवतरित किया था। ऋषि गौतम को न्यायशास्त्र का प्रवर्तक माना जाता है। उनके द्वारा रचित ‘गौतम धर्मसूत्र’ हिंदू धर्म में कर्तव्य और नैतिकता को स्थापित करने में महत्वपूर्ण है।

7. ऋषि जमदग्नि

ऋषि जमदग्नि के पांच पुत्रों में से सबसे प्रसिद्ध परशुराम थे, जो वैशाख शुक्ल तृतीया को जन्मे थे। उन्होंने कार्तवीर्य को मारकर कामधेनु गाय को अपने आश्रम में वापस लाया था। बाद में कार्तवीर्य के पुत्रों ने उनका वध कर दिया।

सप्तर्षियों की भूमिका

सप्तर्षियों की भूमिका धर्म, नीति, शिक्षा और समाज सुधार में अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। वेदों, उपनिषदों और पुराणों में इनके योगदान का विस्तार से वर्णन किया गया है। इनका कार्य न केवल आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार करना था, बल्कि समाज को सही दिशा में मार्गदर्शन देना भी था।

सप्तर्षियों का आधुनिक युग में महत्व

आज भी हिंदू धर्म में सप्तर्षियों का महत्वपूर्ण स्थान है। विवाह संस्कार, गोत्र पहचान, और धर्मशास्त्रों में इनकी शिक्षाएं उपयोगी मानी जाती हैं। हिंदू धर्म में प्रत्येक व्यक्ति का गोत्र उन्हीं सप्तर्षियों में से किसी एक से जुड़ा होता है, जिससे उसकी वंश परंपरा का निर्धारण होता है।

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निष्कर्ष

सप्तर्षि सृष्टि के आधार स्तंभ माने जाते हैं, जिनका कार्य धर्म और मर्यादा की रक्षा करना है। हिंदू धर्म में इन्हें सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, और प्रत्येक युग में इनके द्वारा नए आदर्श स्थापित किए जाते हैं। इनकी तपस्या, ज्ञान और शिक्षा का प्रभाव पूरे मानव समाज पर पड़ा है और ये आज भी प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।

Disclaimer: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों पर आधारित है। किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य करें।

प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।