श्रावण अमावस्या हरियाली अमावस्या

श्रावण अमावस्या हरियाली अमावस्या

श्रावण अमावस्या या हरियाली अमावस्या :- हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास में आने वाली अमावस्या को श्रावणी अमावस्या कहा जाता है, चूंकि इस मास से सावन महीने की शुरुआत होती है इसलिए इसे हरियाली अमावस्या भी कहते हैं। प्रत्येक अमावस्या की तरह श्रावणी अमावस्या पर भी पितरों की शांति के लिए पिंडदान और दान-धर्म करने का महत्व है।

श्रावण अमावस्या मुहूर्त के लिए जुलाई 24, 2025 को 02:31:11 से अमावस्या आरम्भ, जुलाई 25, 2025 को 00:43:10 पर अमावस्या समाप्त

श्रावण अमावस्या व्रत और धार्मिक कर्म

सावन मास में बारिश के आगमन से धरती का कोना-कोना हरा-भरा होकर खिल उठता है। चूंकि श्रावण अमावस्या पर पेड़-पौधों को नया जीवन मिलता है और इनकी वजह से ही मानव जीवन सुरक्षित रहता है, इसलिए प्राकृतिक दृष्टिकोण से भी हरियाली अमावस्या का बहुत महत्व है। इस दिन किये जाने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-

● इस दिन नदी, जलाशय या कुंड आदि में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद पितरों के निमित्त तर्पण करें।
● पितरों की आत्मा की शांति के लिए उपवास करें और किसी गरीब व्यक्ति को दान-दक्षिणा दें।
● इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है और इसके फेरे लिये जाते हैं।
● हरियाली अमावस्या पर पीपल, बरगद, केला, नींबू, तुलसी आदि का वृक्षारोपण करना शुभ माना जाता है। क्योंकि इन वृक्षों में देवताओं का वास माना जाता है।
● वृक्षारोपण के लिये उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपदा, रोहिणी, मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, मूल, विशाखा, पुष्य, श्रवण, अश्विनी, हस्त आदि नक्षत्र श्रेष्ठ व शुभ फलदायी माने जाते हैं।
● किसी नदी या तालाब में जाकर मछली को आटे की गोलियां खिलाएं अपने घर के पास चींटियों को चीनी या सूखा आटा खिलाएं।
● सावन हरियाली अमावस्या के दिन हनुमान मंदिर जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। साथ ही हनुमानजी को सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएं।

श्रावण अमावस्या का महत्व

धार्मिक और प्राकृतिक महत्व की वजह से श्रावण अमावस्या बहुत लोकप्रिय है। दरअसल इस दिन वृक्षों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए इसे हरियाली अमावस्या के तौर पर जाना जाता है। वहीं धार्मिक दृष्टिकोण से इस दिन पितरों का पिंडदान और अन्य दान-पुण्य संबंधी कार्य किये जाते हैं।

सावन महीने का सीधा संबंध भगवान शंकर और माता पार्वती से है। इस अमावस्या के दिन माता पार्वती के साथ भगवान शंकर की पूजा का विशेष महत्व है। कुंवारी कन्याओं को विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए भगवान शंकर और माता पार्वती को लाल वस्त्र अर्पण करके उनका फल और मिष्टान से पूजन करना चाहिए।

हरियाली अमावस्या पर महिलाओ द्वारा हरे रंग के कपड़े पहने का विशेष महत्व है, इस दिन महिलाएँ झूले झूलती है, पिकनिक मनाती है, सखियों के साथ अठखेलिय करती है। विभिन्न संस्थाओं द्वारा विशेष आयोजन भी आयोजित किये जाते है, और वृक्षारोपण का कार्य भी भारी मात्रा में किया जाता है। वर्षो पुरानी परंपरा के निर्वाहन के लिए हरियाली अमावस्या के दिन एक नये पौधे लगाना शुभ माना जाता है।

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यह पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण से मुक्ति के उद्देश्य से हर साल मनाई जाती है। इस दिन सवेरे किसी पवित्र जलाशय या नदी में स्नान करके नीम, आँवला, तुलसी, पीपल, वटवृक्ष और आम के पेड़ लगाने का विशेष महत्व है।

जैसा की नाम से पता चलता है, हरियाली से संबंधित इसलिए हरियाली अमावस्या मनुष्य को प्रकृति से जोड़ने का पर्व भी कहा जाता है। भक्त को अपनी राशि के अनुसार वृक्षारोपन करना चाहिए, और यदि राशि से संबंधित पौधे ना मिले तो तुलसी, आम या शमी का पेड़ भी लगाया जा सकता है। अत: इस दिन किसी वृक्ष को किसी भी प्रकार का नुकसान नही पहुँचाया जाना चाहिए।

श्रावण अमावस्या या हरियाली अमावस्या व्रत कथा

एक राजा था। उसके एक बेटा बहू थे। बहू ने एक दिन मिठाई चोर करके खा ली और नाम चूहा का ले लिया, यह सुनकर चूहे को गुस्सा आया, और उसने मन मे विचार किया कि चोर को राजा के सामने लेकर आऊंगा। एक दिन राजा के घर में मेहमान आये थे, और वह राजा के कमरे में सोये थे, चूहे ने रानी के कपड़े ले जाकर मेहमान के पास रख दिये। सुबह उठकर सब लोग आपस में बात करने लगे की छोटी रानी के कपड़े मेहमान के कमरे में मिले। यह बात जब राजा ने सुनी तो उस रानी को घर से निकाल दिया। वह रोज शाम को दिया जलाती और ज्वार बोती थी। पूजा करती गुडधानी का प्रसाद बाँटती थी। एक दिन राजा शिकार करके उधर से निकले तो राजा की नजर उस रानी पर पडी।

राजा ने घर आकर कहा की आज तो झाड़ के नीचे चमत्कारी चीज हैं, अपने झाड़ के ऊपर जाकर देखा तो दिये आपस में बात कर रहे थे। आज किसने क्या खाया, और कौन क्या है। उस में से एक दिया बोला आपके मेरे जान पहचान के अलावा कोई नही है आपने तो मेरी पूजा भी नही करी और भोग भी नही लगाया बाकी के सब दिये बोले ऐसी क्या बात हुई तब दिया बोला मैं राजा के घर का हूँ उस राजा की एक बहू थी उसने एक बार मिठाई चोरी करके खा ली और चूहे का नाम लें लिया। जब चूहे को गुस्सा आया तो रानी के कपड़े मेहमान के कमरे में रख दिये राजा ने रानी को घर से निकाल दिया, वो रोज मेरी पूजा करती थी भोग लगाती थी। उसने रानी को आशीर्वाद दिया और कहा की सुखी रहे। फिर सब लोग झाड़ पर से उतर कर घर आये और कहा की रानी का कोई दोष नही था। राजा ने रानी को घर बुलाया और सुख से रहने लगे। भूल चूक माफ करना।

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श्रावण अमावस्या पूजा विधि

महिलाओ को सुबह उठकर पूरे विधि विधान से माता पार्वती एवं भगवान शंकर की पूजा करनी चाहिए तथा सुहागन महिलाओ को सिंदूर सहित माता पार्वती की पूजा करना चाहिए और सुहाग सामग्री बांटना चाहिए। ऐसा मानना है कि हरी चूड़िया, सिंदूर, बिंदी बांटने से सुहाग की आयु लंबी होती है और साथ ही घर में खुशहाली आती है। अच्छे भाग्य के उद्देश्य से लड़के भी चूड़ियां, मिठाई आदि सुहागन स्त्रियों को भेट कर सकते हैं। लेकिन यह कार्य दोपहर से पहले कर लेना चाहिए।

हरियाली अमावस्या के दिन भक्तो को पीपल और तुलसी के पेड़ की पूजा करना चाहिए। इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा एवं फेरे किये जाते है तथा मालपूए का भोग बनाकर चढाये जाने की परंपरा है। धार्मिक ग्रंथों में पर्वत और पेड़-पौधों में भी ईश्वर का वास बताया गया है। पीपल में त्रिदेवों का वास माना गया है। आंवले के पेड़ में स्वयं भगवान श्री लक्ष्मीनारायण का वास माना जाता है।

इस दिन कई लोग उपवास भी रखते हैं। इसके बाद शाम को भोजन ग्रहण कर व्रत तोड़ा जाता है। मान्यता है कि जो लोग श्रावण मास की अमावस्या को व्रत करते हैं, उन्हें धन और वैभव की प्राप्ति होती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नासन के बाद ब्राह्मणों, ग़रीबों और वंचतों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा करनी चाहिए।

यदि आप राशि के अनुसार पौधे लगाना चाहते हो तो राशि के अनुसार पौधे इस प्रकार है
  • मेष राशि – लाल चंदन या आंवले का पौधा
  • वृष राशि – जामुन या सप्तपर्ण का पौधा
  • मिथुन राशि – खैर या कटहल का पौधा
  • कर्क राशि –   पलाश या पीपल का पौधा
  • सिंह राशि –   बड़गद का पौधा
  • कन्या राशि – रीठा का पौधा
  • तुला राशि-    अर्जुन का पेड़ या पौधा
  • वृश्चिक राशि – अमरूद का पौधा
  • धनु राशि –   साल का पौधा
  • मकर और कुंभ राशि – शमी का पौधा
  • मीन राशि –   आम का का पौधा  
इस पर्व के फायदे

मान्यता है कि ऐसा करने से प्रकृति हरे-भरे रहने के साथ फलते –फूलने रहने का आशीर्वाद देती है। इस दिन हर किसी को किसी मंदिर या किसी बाहर कहीं एक नया पौधा ज़रुर लगाना चाहिए।

अतः हरियाली अमावस्या के दिन पेड़-पौधों को रोपित करने और उनकी पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। हरियाली अमावस्या का मुख्य उद्देश्य वर्तमान में बढ़ रहे प्रदूषण और गंदगी की समस्या को हल करना है।

वर्तमान में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव के कारण कई बीमारियाँ पनप रही है। जिनसे दिनों-दिन अनेक लोग मौत के घाट उतर रहे हैं।

प्रदूषण को खत्म करने के लिए प्राचीन समय से ही वायु में वरुण देवता और जल में जल देवता का निवास बताया गया है। ताकि लोग वायु और जलाशयों को अपवित्र या गंदा नहीं करें और उनके महत्व को समझें।

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हरियाली अमावस्या के दिन कई शहरों में मेलों का भी आयोजन भी किया जाता है। इस कृषि उत्सव को सभी सम्प्रदाओ के लोग आपस में मिलकर मनाते हैं। मेले में गुड़ और धानी का प्रसाद वितरित किया जाता है जो कि कृषि की अच्छी पैदावार का प्रतीक होता है।

इस दिन गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा जैसे अनेक अनाज बोए जाते हैं और खेतों में हरियाली की जाती है, ताकि साल भर कोई भूखा न रहे और प्रदूषण से भी काफी हद तक मुक्ति मिल सके। किसानों द्वारा अपने हल और कृषि यंत्रों का पूजन करने का रिवाज भी है।

मथुरा और वृन्दावन में उत्सव

हरियाली अमावस्या के दिन उत्तर भारत के मथुरा और वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर एंव द्वारकाधिश मंदिर में विशेष पूजा और दर्शन के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। शिव मंदिरों में भी लोग इस दिन दर्शन और पवित्र स्नान करने जाते हैं।

इस दिन पितृ तर्पण भी किया जाता है। इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। इस दिन विशेष तरह का भोजन भी बनाया जाता है, जो कि ब्राम्हणों को खिलाया जाता है।

खास बात यह है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा भी की पूजा की जाती है। हरियाली अमावस्या के दिन भोले शंकर का विशेष रूप से पूजन होता हैं। मान्यता है कि श्रावण अमावस्या के दिन भगवान शंकर की पूजा करने से घर में सुख और शांति के साथ समृद्धि भी आती है।

Souce:- Shree Mahabharat, Narrated By Shiv Chandra Jha (shiv.chandra@praysure.in) श्रावण अमावस्या या हरियाली अमावस्या

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।