विष्णु भगवान ने पृथ्वी को किस समुद्र से निकाला था, जबकि समुद्र पृथ्वी पर ही है? – बहुत समय पहले, पृथ्वी पर एक शक्तिशाली राक्षस राजा, हिरण्यकश्यप, ने सभी क्षेत्रों को जीतने का सपना देखा था। उसने सोचा कि वह खुद को भगवान से भी ऊपर रख सकता है और अपनी प्रजा से सिर्फ उसकी पूजा करने की मांग की। लेकिन उसका बेटा, प्रह्लाद, जो भगवान विष्णु का भक्त था, ने अपने पिता के आदेश को नकार दिया। इससे हिरण्यकश्यप क्रोधित हो गया और उसने अपने बेटे को सजा देने की योजना बनाई। हालांकि, भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और उसे कई बार बचाया।
यह सिर्फ एक कहानी नहीं थी, बल्कि सनातन धर्म कि एक गहरी सत्यता का प्रतीक थी। इसी दौरान, हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया था। भगवान विष्णु ने वराह रूप में आकर उस समुद्र से पृथ्वी को बाहर निकाला और उसे अपने स्थान पर पुनः स्थापित किया। यह घटना पूरी दुनिया में एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थी। वाराह पुराण में इसका सम्पुर्ण वर्णन मिलता है ।
काफी समय तक, इस घटना को सिर्फ एक पुरानी दंतकथा माना जाता था, जिसे धार्मिक ग्रंथों में लिखा गया था। लेकिन हाल ही में, नासा ने ब्रह्मांड में एक बहुत बड़े जलाशय की खोज की है, जो पृथ्वी के महासागरों से 140 खरब गुना ज्यादा पानी रखता है। यह जलाशय 12 बिलियन प्रकाश-वर्ष दूर स्थित है। इस खोज ने कई लोगों को हैरान कर दिया, क्योंकि यह वही ‘भवसागर’ हो सकता है जिसे हमारे धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित किया गया है।
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क्या यह केवल एक संयोग था, या यह सच में हमारे प्राचीन ग्रंथों की सही व्याख्या है? यह सवाल कई लोगों के मन में उठ सकता है। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हमारे धार्मिक ग्रंथ केवल कहानियों तक सीमित नहीं थे, बल्कि वे ब्रह्मांड की गहरी सच्चाइयों को प्रकट करने का माध्यम थे।
पश्चिमी दुनिया की विचारधारा और विज्ञान हमेशा अपनी उपलब्धियों को सबसे महत्वपूर्ण मानते रहे हैं, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्राचीन भारत ने भी उन क्षेत्रों में भारी योगदान दिया था, जिनमें आज भी पश्चिमी दुनिया पीछे है। जब पश्चिमी दुनिया में स्कूलों की शुरुआत भी नहीं हुई थी, भारत में लाखों गुरुकुलों का अस्तित्व था, जहाँ गणित, खगोलशास्त्र और आयुर्वेद जैसे विषयों पर गहन अध्ययन हो रहा था।
महान खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने पहले ही बताया था कि पृथ्वी गोल है और यह अपनी धुरी पर घूमती है। यह विज्ञान उस समय की बात है, जब पश्चिमी दुनिया के लोग इसे समझने से बहुत दूर थे। भारत में प्राचीन काल में वेदों और पुराणों के माध्यम से न केवल धर्म बल्कि ब्रह्मांड और जीवन के सिद्धांतों को भी समझाया गया था।
आज जब नासा ने इस विशाल जलाशय की खोज की है, तो यह उस पुरानी कथा को नई रोशनी में प्रस्तुत करता है। यह दर्शाता है कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में बताई गई कई बातें आधुनिक विज्ञान से मेल खाती हैं। यदि हम अपनी धार्मिक और वैज्ञानिक धरोहर को समझने का प्रयास करें, तो हम पाते हैं कि इन दोनों में कोई विरोधाभास नहीं है। विज्ञान और धर्म दोनों का उद्देश्य हमें इस ब्रह्मांड को समझने में मदद करना है।
सच तो यह है कि हमारी सभ्यता, हमारा ज्ञान और हमारा धर्म बहुत प्राचीन और गहरे हैं। जो लोग इसे हल्के में लेते हैं या विदेशी संस्कृति के सामने इसे गलत मानते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि हमारा धर्म और संस्कृति न केवल हमारे लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक अमूल्य धरोहर है।
आखिरकार, हमें यह समझना चाहिए कि ब्रह्मांड के रचनाकार की शक्तियों की थाह लगाना एक साधारण मानव के बस की बात नहीं है। जिस तरह से हम एक विस्तृत ब्रह्मांड को पूरी तरह से समझने में असमर्थ हैं, उसी तरह हमें अपनी प्राचीन संस्कृति और धार्मिक ग्रंथों के महत्व को समझने की कोशिश करनी चाहिए। हमारी सभ्यता ने न केवल हमें जीवन जीने की कला सिखाई, बल्कि ब्रह्मांड के रहस्यों को भी उद्घाटित किया।
तो इस पूरी कहानी से यही निष्कर्ष निकलता है कि प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान दोनों के बीच एक गहरा संबंध है, और यह हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हम जो कुछ भी जानते हैं, वह पूरी तरह से हमारे अतीत से जुड़ा हुआ है।
सनातन धर्म और विज्ञान का संयोग एक दिलचस्प और महत्वपूर्ण विषय है। सनातन धर्म, जो भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का आधार है, इसमें जीवन, ब्रह्मांड और मनुष्य के अस्तित्व के बारे में गहरे और व्यापक दृष्टिकोण हैं। इसके सिद्धांतों में ऐसे तत्व हैं जो आधुनिक विज्ञान से मेल खाते हैं, और यह दिखाते हैं कि प्राचीन भारतीय दृष्टिकोणों में गहरी समझ और वैज्ञानिक सोच थी।
सनातन धर्म में ‘आत्मा’ और ‘परमात्मा’ के रूप में एक अदृश्य शक्ति की अवधारणा है। यह ऊर्जा और पदार्थ की संकल्पना से मेल खाती है, जो आधुनिक भौतिकी के सिद्धांतों में पाया जाता है। ऊर्जा के संरक्षण का सिद्धांत, जिसे हम “कुल ऊर्जा का संरक्षण” कहते हैं, सनातन धर्म की आत्मा और परमात्मा के सिद्धांत से मिलता है ।
सनातन धर्म के अनुसार, जीवन और मृत्यु का एक चक्र चलता है। यह जीवन के अनश्वर होने की बात करता है, जो आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतों जैसे कि ऊर्जा के निरंतरता और ‘थर्मोडायनेमिक्स’ से जुड़ा है।
योग और ध्यान का अभ्यास शारीरिक, मानसिक और आत्मिक संतुलन के लिए होता है। यह प्राचीन समय से विज्ञान के क्षेत्रों में अध्ययन किया जा रहा है। आजकल योग और ध्यान के लाभों को कई वैज्ञानिक अध्ययनों से प्रमाणित किया गया है, जैसे कि तनाव में कमी, मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार।
इस प्रकार, सनातन धर्म और विज्ञान के बीच एक गहरा संबंध पाया जाता है, जो हमें यह समझने में मदद करता है कि प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच कोई भेद नहीं है, बल्कि यह दोनों एक दूसरे को पूरक हैं।
पंडित Shiv Chandra Jha मो:- 9631487357 KB:- विष्णु भगवान ने पृथ्वी को किस समुद्र से निकाला था, जबकि समुद्र पृथ्वी पर ही है?
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