भगवान यदि कण-कण में हैं तो मूर्ति पूजा क्यों |

भगवान यदि कण-कण में हैं तो मूर्ति पूजा क्यों

भगवान यदि कण-कण में हैं तो मूर्ति पूजा क्यों |

यह सवाल हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले कई लोगों के मन में उठता है। एक ओर जहां यह कहा जाता है कि भगवान सर्वव्यापी हैं, यानी वे हर कण में विद्यमान हैं, वहीं दूसरी ओर मूर्तियों की पूजा की जाती है। इस विरोधाभास को समझने के लिए हमें कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना होगा।

मूर्ति पूजा के पीछे का तर्क:

  • एकाग्रता का साधन: मूर्ति दृश्य है, जो हमें भगवान के गुणों और रूपों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है। जब हम किसी मूर्ति की पूजा करते हैं, तो हमारा मन एक बिंदु पर केंद्रित होता है और हम भौतिक दुनिया से दूर होकर आध्यात्मिक दुनिया में प्रवेश करते हैं।
  • भावनाओं का प्रकटीकरण: मूर्ति पूजा हमें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का एक माध्यम प्रदान करती है। हम प्रेम, भक्ति, आभार और अन्य भावनाओं को मूर्ति के माध्यम से व्यक्त करते हैं।
  • संस्कारों का विकास: मूर्ति पूजा संस्कारों का विकास करने में मदद करती है। जैसे कि नियमित रूप से पूजा करने से हम अनुशासन और धैर्य सीखते हैं।
  • समाज का एकीकरण: मूर्ति पूजा समुदाय को एकजुट करने में मदद करती है। मंदिर एक ऐसा स्थान है जहां लोग एक साथ आकर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं और एक-दूसरे के साथ जुड़ते हैं।

भगवान के सर्वव्यापक होने और मूर्ति पूजा के बीच का संबंध:

  • प्रतीकवाद: मूर्ति केवल भगवान का एक प्रतीक है। यह भगवान के वास्तविक रूप का प्रतिनिधित्व नहीं करती है।
  • साधन: मूर्ति पूजा भगवान के साथ जुड़ने का एक साधन है। यह एक सीढ़ी है जो हमें भगवान तक पहुंचने में मदद करती है।
  • बाल मन: बच्चों के लिए मूर्ति एक दृश्य प्रतिनिधित्व है जिसके माध्यम से वे भगवान के बारे में सीख सकते हैं।
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अ‍ब आगे -क्योंकि कण कण की तो कर नहीं सकते ना…

इस प्रकार के प्रश्न अक्सर वे लोग करते हैं, जो समझने के स्थान पर केवल प्रश्न करने में ही रूचि रखते हैं |

उदाहरण : एक गुरुकुल में गुरुदेव ने दीक्षा पूरी करके घर जाते हुए बच्चों को समझाया कि

“प्राणी मात्र में उस ईश्वर को देखना…”

बच्चे समझ गए |

सभी घर जा रहे थे, तो देखा कि दूर से एक मदमस्त हाथी चला आ रहा है जिसे देख कर लोगों ने झट से सुरक्षित स्थान ढूंढना शुरू कर दिया |

हाथी के पीछे महावत भी चिल्लाता हुआ सबको आगाह कर रहा था |

लेकिन गुरूजी के सबसे मेधावी छात्र को तो गुरूजी के शब्द अच्छे से याद थे, इसलिए वे बड़ी ही मस्ती में चलते रहे और सामने से आते हुए हाथी को प्रणाम करने लगे |

“हे ईश्वर (हाथी) आप क्रोध छोड़ें और दया करें, सभी लोग भयभीत हो रहे हैं |”

दौड़ते साथियों ने उसे अपने साथ चलने को कहा, लेकिन वो नहीं माने, दुसरे लोगों ने आवाज़ें लगायीं लेकिन नहीं, महावत ने चेतावनी दी, लेकिन कोई फायदा नहीं |

हाथी ने सूंड में लपेट कर दूर फेंक दिया, बेचारे की हड्डियां टूट गयीं |

महीनों बाद जब ठीक हुए तो वापस गुरुकुल गए तो गुरूजी से शिकायत की :

“गुरूजी, मैंने तो आपके शब्दों का अक्षरशः पालन करते हुए उस हाथी में भी इश्वर को ही देखते हुए उस से विनती की थी, लेकिन उसने मुझे पटक दिया |”

गुरूजी बोले : “बेटा, आपने ऐसा नहीं किया | मैंने कहा था कि सभी प्राणियों में ईश्वर को देखना, लेकिन आपने तो केवल एक ही प्राणी (हाथी) में ईश्वर देखा और जो इतने सारे इश्वर (प्राणी) आपको बचने और दूर हटने का सुझाव दे रहे थे, उनमें भी यदि ईश्वर देखा होता तो ऐसी बेवकूफी नहीं करते |”

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इसलिए मिटटी के कण हों अथवा मूर्ती, ईश्वर और आराधना, इन के अर्थों को समझिये सब संशय स्पष्ट हो जायेंगें |

निष्कर्ष:

मूर्ति पूजा और भगवान के सर्वव्यापी होने के बीच कोई विरोधाभास नहीं है। मूर्ति पूजा भगवान के साथ जुड़ने का एक तरीका है। यह हमें भगवान के गुणों और रूपों पर ध्यान केंद्रित करने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में मदद करती है।

अंत में, यह व्यक्तिगत विश्वास पर निर्भर करता है कि वह भगवान की पूजा किस तरह से करना चाहता है। कुछ लोग मूर्तियों की पूजा करते हैं, जबकि अन्य लोग निराकार भगवान में विश्वास करते हैं। दोनों दृष्टिकोण सही हो सकते हैं।

यह महत्वपूर्ण है कि हम मूर्ति पूजा को एक अंतिम लक्ष्य न मानें, बल्कि इसे भगवान के साथ जुड़ने के एक साधन के रूप में देखें।

यहां कुछ अन्य बातें हैं जिन पर विचार किया जा सकता है:

  • मूर्ति पूजा का इतिहास: मूर्ति पूजा का इतिहास बहुत पुराना है। यह वैदिक काल से ही चली आ रही है।
  • विभिन्न धर्मों में मूर्ति पूजा: हिंदू धर्म ही एकमात्र धर्म नहीं है जिसमें मूर्ति पूजा की जाती है। बौद्ध धर्म और जैन धर्म में भी मूर्ति पूजा की जाती है।
  • मूर्ति पूजा के विभिन्न रूप: मूर्ति पूजा के कई रूप हैं। कुछ लोग मूर्तियों को घर में रखते हैं, जबकि अन्य लोग मंदिरों में जाते हैं।

लेखक परिचय

श्री रणधीर:- कुलाची हंस राज मॉडल स्कूल में ऑटो इंजीनियरिंग और कम्प्यूटर्स में सिस्टम एनालिस्ट की पढ़ाई की

आध्यात्मिक, अल्पज्ञानी, बहुरुचिक, बहुभाषी किन्तु निष्पक्ष | – भगवान यदि कण-कण में हैं तो मूर्ति पूजा क्यों |

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कृपया यह समझने की कोशिश करें, की प्रत्येक बात जो आप गूगल पर देख रहे हैं, उसका सत्य होना ज़रूरी नहीं है |

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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