श्री गंगा चालीसा

श्री गंगा चालीसा

श्री गंगा चालीसा की महिमा

मां गंगा को सनातन धर्म में मोक्षदायिनी, पापनाशिनी और पवित्रता की देवी माना गया है। उनके स्मरण मात्र से ही व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे शुद्धता और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है। श्री गंगा चालीसा का पाठ मां गंगा की कृपा पाने और जीवन के कष्टों से मुक्ति का एक प्रभावशाली साधन है।

गंगा चालीसा की महिमा

  1. पापों का क्षय:
    मां गंगा को पापनाशिनी कहा गया है। गंगा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में किए गए पापों का नाश होता है और आत्मा पवित्र होती है।
  2. मोक्ष की प्राप्ति:
    मां गंगा का नाम लेने और उनकी चालीसा पढ़ने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाने में सहायक है।
  3. शांति और समृद्धि:
    गंगा चालीसा के नियमित पाठ से घर में शांति और समृद्धि का वास होता है। मां गंगा की कृपा से सभी प्रकार की बाधाएं और समस्याएं दूर होती हैं।
  4. शारीरिक और मानसिक शुद्धि:
    गंगा जल का महत्व शारीरिक और मानसिक शुद्धि में है। गंगा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के मन और विचारों की अशुद्धता समाप्त होती है।
  5. ग्रह दोषों का निवारण:
    ज्योतिष में मां गंगा की आराधना और चालीसा पाठ को ग्रह दोषों के निवारण का महत्वपूर्ण उपाय बताया गया है।
  6. पर्यावरण की रक्षा:
    मां गंगा को धरती की जीवनदायिनी माना गया है। उनकी महिमा का पाठ करने से व्यक्ति को पर्यावरण और जल संरक्षण के प्रति जागरूकता मिलती है।

गंगा चालीसा का पाठ कब और कैसे करें

  1. प्रातः स्नान करके गंगा जल का आचमन करें।
  2. गंगा माता की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीप जलाकर पाठ शुरू करें।
  3. श्रद्धा और भक्ति के साथ चालीसा का पाठ करें।
  4. गंगा दशहरा और मकर संक्रांति के दिन विशेष रूप से पाठ करना फलदायक होता है।
  5. यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे बैठकर चालीसा का पाठ करें।
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गंगा माता का आशीर्वाद

मां गंगा की कृपा से भक्त को धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा चालीसा का पाठ व्यक्ति को पवित्रता, उन्नति, और सुख-शांति की ओर अग्रसर करता है।

श्री गंगा चालीसा ||

॥ दोहा ॥

जै जै जै जग पावनी, जयति देवसरि गंग ।

जै शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग ॥

॥ चौपाई ॥

जै जै जननि हरण अघ खानी ।

आनन्द करनी गंगा महारानी ||1||

जै भागीरथि सुरसरि माता ।

कलि मल मूल दलनि विख्यता ||2||

जै जै जै हनु सुता अघ हननी ।

भीष्म की माता जग जननी ||3||

धवल कमल दल सम तनु साजै ।

लखि शत शरद चन्द्र छवि लाजै ||4||

वाहन मकर विमल शुचि सोहैं ।

अमिय कलश कर लखि मन मोहैं ||5||

जड़ित रत्न कंचन आभूषण ।

हिय मणि हार हरणितम दूषण ||6||

जग पावनि त्रय ताप नसावनि ।

तरल तरंग तंग मन भावनि ||7||

जो गणपति अति पूज्य प्रधाना ।

तिहुँ ते प्रथम गंग अस्नाना ||8||

ब्रह्मा कमण्डल वासिनि देवी ।

श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवी ||9||

साठि सहस्र सगर सुत तार्यो ।

गंगा सागर तीर्थ धार्यो ||10||

अगम तरंग उठयो मन भावन ।

लखि तीर्थ हरिद्वार सुहावन ||11||

तीर्थ राज प्रयाग अक्षयवट ।

धतयौ मातु पुनि काशी करवट ||12||

धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढ़ी ।

तारणि अमित पितृ पद पीढ़ी ||13||

भगीरथ तप कियो अपारा |

दियो ब्रह्म तब सुरसरि धारा ||14||

जब जग जननी चल्यो हहराई ।

शम्भू जटा महँ रह्यो समाई ||15||

बर्ष पर्यन्त गंग महारानी ।

रही शम्भू के जटा भुलानी ||16||

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मुनि भगीरथ शम्भूहिं ध्यायो ।

तब इक बून्द जटा से पायो ||17||

ताते मातु भई त्रय धारा ।

मृत्यु लोक नभ अरु पातारा ||18||

गईं पाताल प्रभावति नामा ।

मन्दाकिनी गई गगन ललामा ||19||

मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनि ।

कलिमल हरणि अगम जग पावनि ||20||

धनि मैया तव महिमा भारी ।

धर्म धुरि कलि कलुष कुठारी ||21||

मातु प्रभावति धनि मन्दाकिनी ।

धनि धनि देव सरित भयनासिनी ||22||

पान करत निर्मल गंगा जल ।

पावत मन इछित अनन्त फल ||23||

पूर्व जन्म पुण्य जब जागत ।

तबहिं ध्यान गंगा महँ लागत ||24||

जब पगु सुरसरि हेत उठावहि ।

तै जगि अश्वमेध फल पावहि ||25||

महा पतित जिन कहु न तारे ।

तिन तारे इक नाम तिहारे ||26||

शत योजनहू से जो ध्यावै ।

निश्चय विष्णु लोक पद पावै ||27||

नाम भजत अगणित अघ नाशै ।

विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै ||28||

जिमि धन मूल धर्म अरु दाना ।

धर्म मूल गंगा जल पाना ||29||

तव गुणगान करत दुख भाजत ।

गृह गृह सम्पति सुमति विराजत ||30||

गंगहि नेम सहित नित ध्यावत ।

दुर्जनहु सज्जन पद पावत ||31||

बुद्धिहीन विद्या बल पावै ।

रोगी रोग मुक्त ह्वै जावै ||32||

गंगा गंगा जो नर कहहि ।

भूखा नंगा कबहुँ न रहहि ||33||

निकसत ही मुख गंगा माई ।

आनन दवि यम चलहिं पराई ||34||

महान अघिन अधमन कहँ तारे ।

भये नरक के बन्द किवारे ||35||

जो नर जपै गंग शत नामा ।

सकल सिद्धि पूरन ह्वै कामा ||36||

सब सुख भोग परम पद पावहिं ।

अवागमन रहित ह्वै जावहिं  ||37||

धनि मैया सुरसरि सुखदायिनी ।

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धनि धनि तीर्थराज त्रिवेणी ||38||

ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा ।

सुन्दरदास गंगा कर दासा ||39||

जो यह पढ़े गंगा चालीसा ।

मिलै भक्ति अविरल वागीशा ||40||

॥ दोहा ॥

नित नव सुख सम्पति लहै, धरे गंगा का ध्यान ।

अंत समय सुरपुर बसै, सादर बैठि विमान ॥

“मां गंगा की महिमा अनंत है। उनके चरणों में श्रद्धा और भक्ति से की गई प्रार्थना हमेशा फलदायी होती है।”
🙏 “हर हर गंगे!” 🙏

आचार्य आस्तिक कुमार झा वेद ज्योतिष कर्मकाण्ड विशेषज्ञ https://www.facebook.com/acharyaaastikkumar.jha KB:- श्री गंगा चालीसा Image Source Google BeFuncy

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।