विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला –
विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला – क्या है गज और ग्राह की कहानी, कार्तिक पूर्णिमा के गंगा स्नान और विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला से क्या है संबंध भगवान विष्णु और शंकर के दो भक्त जय और विजय शापित होकर हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए थे। एक दिन गज पानी पीने के लिए गंडक नदी के तट पर आया, तभी ग्राह ने उसे पकड़ लिया।
ग्राह के मजबूत जबड़े से लहूलुहान गज ने अपनी प्राणों की रक्षा हेतु अपने आराध्य देव भगवान विष्णु से अति मार्मिक प्रार्थना किया और जान बचाने की गुहार लगाई।
गज की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और अपने सुदर्शन चक्र से गज की जान बचाई। इस मौके पर सारे देवताओं ने यहां उपस्थित होकर भगवान विष्णु की जय जयकार लगाई। यह घटना कार्तिक पूर्णिमा को ही हुई थी।
विष्णु पुराण में एक अन्य कथा का भी जिक्र मिलता है:-
जय और विजय दोनों सगे भाई थे। इनमें जय शिव भक्त और विजय भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। एक बार दोनों भाइयों में अपने अपने आराध्य देव की श्रेष्ठता को लेकर भयंकर झगड़ा हो गया। उनके इस भयंकर युद्ध को देखते हुए भगवान विष्णु ने उन्हें गज और ग्राह बनने का श्राप दिया।
गज (हाथी) और ग्राह (मगरमच्छ) के रूप में जन्म लेने के बाद दोनों में मित्रता हो गई। इसके बाद से ही इस जगह भगवान शिव और भगवान विष्णु के मंदिर यहां साथ-साथ बनाए गए, जिस कारण इस जगह का नाम हरिहर क्षेत्र पड़ गया।
विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला – गज़-ग्राह की घटना किस क्षेत्र में घटित हुई थी :-हाजीपुर के गंगा-गंडक संगम स्थल पर हुई इस लड़ाई के कारण इस जगह का नाम “कौनहारा” घाट पड़ गया। इसी घाट पर बिहार का प्रसिद्ध कार्तिक पूर्णिमा मेला भी लगता है,जिसे “सोनपुर मेला” कहते है।
विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला –
गौरतलब है कि यह सोनपुर मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है। यह मेला कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होता है और अगले 30 दिनों तक चलता है। सोनपुर में दो जानवरों के बीच युद्ध हुआ था,इस कारण यहां पशु की खरीदारी को शुभ माना जाता है।
इसी स्थान पर हरि (विष्णु) और हर (शिव) का हरिहर मंदिर भी है,जहां प्रतिदिन सैकड़ों भक्त पहुंचते हैं। पटना से महज 25 किलोमीटर दूर ही यह विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला है। प्राचीनकाल से लगनेवाले इस मेले का स्वरूप कलांतर में भले ही कुछ बदला हो,लेकिन इसकी महत्ता आज भी वही है। यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष लाखों देशी और विदेशी सैलानी यहां पहुंचते हैं।
हरिहर क्षेत्र मेला’ और ‘छत्तर मेला’ के नाम से भी जाने जाना वाला ‘सोनपुर मेले’ की शुरुआत कब से हुई इसकी कोई निश्चित जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, परंतु ये उत्तर वैदिक काल से माना जाता है। महाकवि ‘राहुल सांकृत्यान’ ने सोनपुर मेला को ‘शुंगकालीन युग’ का माना है। शुंगकालीन कई पत्थर और अन्य अवशेष सोनपुर के कई मठ-मंदिरों में उपलब्ध रहे हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये स्थल ‘गजेंद्र मोक्ष स्थल’ के रूप में भी चर्चित है।
विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला – कई धर्म शास्त्रों में इस स्थान का जिक्र है। यह स्थान काफी पवित्र माना गया है और इसी कारण त्रेतायुग में यहाँ भगवान राम आए थे और बाबा हरिहरनाथ की पूजा-अर्चना की थी। यहाँ भगवान शंकर और विष्णु का युगल रूप में ऐतिहासिक प्रतिमा बना है जिसे “हरिहरनाथ”कहा जाता है।
पंडित Shiv Chandra Jha मो:- 9631487357 KB:- विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला
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