हिंदुओं के प्रमुख वंश कौनसे है, आज जानिए आपके अपने पूर्वजों को

हिंदुओं के प्रमुख वंश कौनसे है, आज जानिए आपके अपने पूर्वजों को

संपूर्ण पृथ्वी के प्राणि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अंशों से उत्पन्न हुई है, और यह ऋषि-मुनियों की संतान है। इन देवताओं और असुरों के पुत्र-पुत्रियाँ ही विभिन्न प्राणियों और अस्तित्वों का कारण बनीं, जैसे देवता (सुर), असुर (दैत्य), राक्षस, दानव, गंधर्व, यक्ष, किन्नर, वानर, नाग, चारण, निषाद, मातंग, रीछ, भल्ल, किरात, अप्सरा, विद्याधर, सिद्ध, निशाचर, वीर, गुह्यक, कुलदेव, स्थानदेव, ग्राम देवता, पितर, भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वैताल, क्षेत्रपाल और मानव। आइये जानते हैं हिंदुओं के प्रमुख वंश कौनसे है ?

पुराणों के अनुसार, द्रविड़, चोल और पांड्य जातियों की उत्पत्ति में राजा नहुष का योगदान था, जो चंद्रवंशी राजा था। भारतीय पुराण भारतीय इतिहास को जलप्रलय तक ले जाते हैं, और यहीं से वैवस्वत मन्वंतर की शुरुआत होती है। वेदों में पंचनद का जिक्र है, जो यह बताता है कि पांच प्रमुख कुलों से भारतीयों के कुलों का विस्तार हुआ।

विभाजित वंश:

आधुनिक समय में हिन्दू समाज को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है, जैसे गोत्र, प्रवर, शाखा, वेद, शर्म, गण, शिखा, पाद, तिलक, छत्र, माला, देवता (शिव, विनायक, कुलदेवी, कुलदेवता, इष्टदेवता, राष्ट्रदेवता, गोष्ठ देवता, भूमि देवता, ग्राम देवता, भैरव और यक्ष) आदि। जैसे-जैसे समाज बढ़ा, वैसे-वैसे गण और गोत्र में भेद होते गए। गुलामी के समय में कुछ समाजों या लोगों ने इन परंपराओं को छोड़ दिया, और उन लोगों को कश्यप गोत्र से जोड़ दिया गया।

कुलहंता:

प्राचिन काल में अखंड भारत, जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और बर्मा जैसे देश शामिल हैं, के क्षेत्र में निवास करने वाले सभी लोग मूल रूप से प्राचीन हिन्दू वंशों से संबंध रखते हैं। समय के साथ उनकी जाति, धर्म और प्रांत बदलते रहे, लेकिन उनकी जड़ें एक ही कुल और वंश में हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि कुल का विनाश तब होता है, जब कोई व्यक्ति अपने कुलधर्म को त्याग देता है। ऐसा व्यक्ति अपने मूल और पूर्वजों को हमेशा के लिए भूल जाता है।

कुलहंता वह कहलाता है, जो अपने कुलधर्म और परंपरा को त्यागकर किसी अन्य धर्म या परंपरा को अपना लेता है। जैसे कोई वृक्ष अपनी जड़ों से नफरत करे, तो उसे यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि वह फल-फूल सकता है। कुलधर्म और परंपरा से जुड़ाव ही किसी व्यक्ति को उसकी पहचान और जीवन में स्थिरता प्रदान करते हैं।

भारत खंड का विस्तार

महाभारत में वर्णित भारत खंड का क्षेत्र असम (प्राग्ज्योतिष), नेपाल (किंपुरुष), तिब्बत (त्रिविष्टप), चीन (हरिवर्ष), कश्मीर, राजौरी (अभिसार), दार्द, हूण, हुंजा, अम्ब, पख्तून, कैकेय, गंधार, कम्बोज, बल्ख (वाल्हीक), शिवस्थान (सीस्तान-बालूचिस्तान), सिंध, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र (दंडक), मैसूर (सुरभिपट्टन), चोल, आंध्र, कलिंग और श्रीलंका (सिंहल) तक विस्तृत था। इन क्षेत्रों में लगभग 200 जनपद शामिल थे, जो या तो पूरी तरह आर्य थे या आर्य संस्कृति और भाषा से प्रभावित थे।

इन क्षेत्रों में से कुछ प्रमुख आर्य खापें थीं—आभीर (अहीर), तंवर, कंबोज, यवन, शिना, काक, पणि, चालुक्य (चुलूक), सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, मालव, क्षुद्रक, योधेय, शूर, तक्षक और लोहड़। आज इनके नाम और स्वरूप बदल चुके हैं। वर्तमान में भारत की जातियां, जैसे जाट, गुर्जर, पटेल, राजपूत, मराठा, धाकड़, सैनी, परमार, पठानिया, अफजल, घोसी, बोहरा, अशरफ, कसाई, कुंजरा, नायत, मेंडल, मोची, मेघवाल आदि, चाहे वे हिन्दू हों, मुस्लिम, ईसाई या बौद्ध—सभी इन्हीं प्राचीन वंशों से उत्पन्न हुई हैं।

मानव उत्पत्ति और हिमालय का संबंध

जो लोग स्वयं को भारत के मूल निवासी मानते हैं, उन्हें यह जानना चाहिए कि प्रारंभ में मानव हिमालय के आसपास ही निवास करता था। हिमयुग की समाप्ति के बाद, जब धरती पर वन और मैदानों का विस्तार हुआ, तभी मानव वहां जाकर बसने लगा।

लगभग सभी धर्मों में उल्लेख मिलता है कि मानव सभ्यता का प्रारंभ हिमालय से निकलने वाली किसी पवित्र नदी के पास हुआ था। वहीं पर एक पवित्र उद्यान या बगिचा था, जहां प्रारंभिक मानवों का पहला समूह रहता था।

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धर्म के इतिहास के साथ-साथ भूगोल और मानव इतिहास के वैज्ञानिक पक्ष को समझना भी आवश्यक है, क्योंकि यही हमारी जड़ों और सभ्यता के विकास की कहानी को सही संदर्भ में प्रस्तुत करता है।

हिंदुओं के प्रमुख वंश कौनसे है, विभिंन्न कुलो का वर्णन

1.ब्रह्मा कुल

ब्रह्मा जी की तीन प्रमुख पत्नियां थीं—सावित्री, गायत्री और सरस्वती। इन तीनों से उन्हें कई पुत्र और पुत्रियों की प्राप्ति हुई। इसके अलावा, ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भी थे, जो उनकी मानसिक शक्ति से उत्पन्न हुए। इन मानस पुत्रों ने मानव सभ्यता और विभिन्न ज्ञान परंपराओं को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में अत्रि, अंगिरस, भृगु, कंदर्भ, वशिष्ठ, दक्ष, स्वायंभुव मनु, कृतु, पुलह, पुलस्त्य, नारद, चित्रगुप्त, मरीचि, सनक, सनंदन, सनातन और सनतकुमार प्रमुख थे। इन ऋषियों और मुनियों ने धर्म, ज्ञान, और संस्कृति के प्रसार में योगदान दिया।

मानस पुत्रों के द्वारा ही मानव वंश, ज्ञान परंपराएं और सामाजिक व्यवस्था का विकास हुआ। ये सभी ऋषि-मुनि, देवता और उनकी संतानों के पूर्वज माने जाते हैं। इन्हीं से विभिन्न वंश और परंपराओं का विस्तार हुआ।

2.स्वायंभुव मनु कुल

स्वायंभुव मनु को समस्त मानव जाति के प्रथम संदेशवाहक माना जाता है। उनके कुल की कई शाखाएं हैं, जिनमें से एक प्रमुख शाखा का वर्णन यहां किया गया है। स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा की कुल 5 संतानें थीं—2 पुत्र और 3 कन्याएं। उनके पुत्रों के नाम प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उनकी कन्याएं आकूति, देवहूति और प्रसूति थीं।

आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ हुआ। उनके पुत्र का नाम यज्ञ था, और उनकी पत्नी का नाम दक्षिणा था। प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। देवहूति ने 9 कन्याओं को जन्म दिया, जिनका विवाह अन्य प्रजापतियों से हुआ। इसके अतिरिक्त, उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, जो महान ऋषि कपिल के नाम से प्रसिद्ध हुए।

ऋषि कपिल का जन्म भारत के कपिलवस्तु में हुआ था। वे सांख्य दर्शन के प्रवर्तक थे और अपनी गहन आध्यात्मिक शिक्षाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने सगर के 100 पुत्रों को अपने शाप से भस्म कर दिया था। स्वायंभुव मनु का वंश मानवता, दर्शन, और वैदिक परंपराओं के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है।

3. कश्यप कुल

कश्यप कुल की कई शाखाएं हैं, जिनमें पिप्पल, नीम, कदंब, कर्दम, केम, केन, बड़, सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, नाग आदि उपनाम या गोत्र हिन्दू मोची समाज में पाए जाते हैं। ये सभी मरीचिवंशी कहलाते हैं। ऋषि कश्यप, ब्रह्माजी के पुत्र मरीचि के विद्वान पुत्र थे। मरीचि के दूसरे पुत्र ऋषि अत्रि थे, जिनसे अत्रिवंश चला।

ऋषि मरीचि पहले मन्वंतर के सप्तर्षियों की सूची में प्रथम स्थान पर हैं। वे दक्ष के दामाद और भगवान शंकर के साढ़ू थे। उनकी पत्नी दक्षकन्या संभूति थीं। मरीचि की दो और पत्नियां थीं—कला और उर्णा। उर्णा को धर्मव्रता के नाम से भी जाना जाता है।

दक्ष के यज्ञ में मरीचि ने भी भगवान शंकर का अपमान किया था, जिसके कारण शंकर ने उन्हें भस्म कर दिया था। मरीचि ने भृगु ऋषि को दंडनीति की शिक्षा दी थी। वे सुमेरु पर्वत के एक शिखर पर निवास करते थे और महाभारत में इन्हें चित्रशिखंडी कहा गया है। ऋषि कश्यप इन्हीं के पुत्र थे, जिन्होंने कश्यप कुल की परंपरा को आगे बढ़ाया।

मरीचि और कश्यप वंश का विवरण

मरीचि ने कला नाम की स्त्री से विवाह किया, जो कर्दम ऋषि की पुत्री और ऋषि कपिलदेव की बहन थीं। कला से उन्हें कश्यप नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। कश्यप को अरिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। उनका आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर स्थित था। मान्यता है कि सुर (देव) और असुर (दैत्य) दोनों ही जातियां ऋषि कश्यप के वंश से उत्पन्न हुईं और आज भी भारतवर्ष में इनकी उपस्थिति देखी जा सकती है।

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दक्ष प्रजापति की कन्याओं से विवाह

ब्रह्मा के पोते ऋषि कश्यप ने ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की 13 कन्याओं से विवाह किया। श्रीमद्भागवत के अनुसार, दक्ष प्रजापति ने अपनी 60 कन्याओं में से:

  • 10 कन्याओं का विवाह धर्म से,
  • 13 कन्याओं का विवाह ऋषि कश्यप से,
  • 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से,
  • 2 कन्याओं का विवाह भूत से,
  • 2 कन्याओं का विवाह अंगिरा से,
  • 2 कन्याओं का विवाह कृशाश्व से किया।
    शेष 4 कन्याओं—विनीता, कद्रू, पतंगी और यामिनी—का विवाह तार्क्ष्य कश्यप से हुआ।

कश्यप ऋषि की पत्नियां

कश्यप ऋषि की प्रमुख पत्नियों के नाम इस प्रकार हैं:
अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, तिमि, विनीता, कद्रू, पतंगी और यामिनी।

राजा इन्द्र थे। विवस्वान् से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ, जो वर्तमान मन्वंतर के प्रथम मनु हैं।

इस प्रकार, ऋषि कश्यप के वंश से देवता, दैत्य, नाग, गंधर्व, यक्ष और कई अन्य जातियां उत्पन्न हुईं, जिन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपरा को गहराई से प्रभावित किया।

4. अत्रि वंश का परिचय

ऋषि अत्रि ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाते हैं, और उनसे चंद्र वंश की उत्पत्ति हुई। अत्रि वंश से जुड़े ययाति कुल की जानकारी इस प्रकार है:

ययाति कुल का वंश विवरण

अत्रि ऋषि से आत्रेय वंश की शुरुआत हुई। आत्रेय वंश की कई शाखाएं हैं, जिनका विवरण मत्स्य पुराण में मिलता है। यहां हम अन्य प्रमुख शाखाओं की चर्चा करते हैं।

अत्रि से चंद्रमा का जन्म हुआ। चंद्रमा से बुध और बुध से पुरुरवा (जिसे पुरुवस या ऐल भी कहा जाता है) उत्पन्न हुए। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, पुरुवस का विवाह उर्वशी से हुआ। उर्वशी से पुरुवस को आयु, वनायु, शतायु, दृढ़ायु, घीमंत और अमावसु नामक पुत्र प्राप्त हुए।

अमावसु और उनका वंश

अमावसु ने कान्यकुब्ज नगर की स्थापना की और वहां के राजा बने। आयु का विवाह स्वरभानु की पुत्री प्रभा से हुआ, जिनसे 5 पुत्र हुए:

  1. नहुष
  2. क्षत्रवृत (वृदशर्मा)
  3. राजभ (गय)
  4. रजि
  5. अनेना

नहुष का विवाह विरजा से हुआ। उनके कई पुत्र हुए, जिनमें ययाति, संयाति, अयाति, अयति और ध्रुव प्रमुख थे। इनमें यति और ययाति सबसे प्रिय थे।

अमावसु का पृथक वंश

अमावसु की शाखा में 15 प्रमुख व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है, जिनमें कुशिक (कुशश्च), गाधि, ऋषि विश्वामित्र और मधुच्छंदस प्रमुख हैं। इस वंश में अजमीगढ़ नामक राजा का भी उल्लेख मिलता है। नय के पश्चात इस वंश का विस्तृत विवरण नहीं मिलता।

ययाति का वंश

ययाति प्रजापति ब्रह्मा की वंश परंपरा में हुए थे। ययाति ने कई स्त्रियों से संबंध बनाए, लेकिन उनकी प्रमुख दो पत्नियां थीं:

  1. देवयानी – गुरु शुक्राचार्य की पुत्री। उनसे यदु और तुर्वसु नामक दो पुत्र हुए।
  2. शर्मिष्ठा – दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री। उनसे द्रुहु, पुरु और अनु नामक पुत्र हुए।

ययाति की कई बेटियां भी थीं, जिनमें से एक का नाम माधवी था।

विशेष जानकारी

अमावसु और ययाति के वंशों ने भारतीय सभ्यता के विभिन्न राजवंशों और सामाजिक संरचनाओं की नींव रखी। यदु से यदुवंश और पुरु से पौरव वंश की शुरुआत हुई, जिनका भारतीय इतिहास और संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा।

5. गर्ग वंश का परिचय

गर्ग वंश का संबंध वैदिक ऋषि गर्ग से है। गर्ग ऋषि आंगिरस और भारद्वाज वंश के वंशज थे और 33 मंत्रकारों में श्रेष्ठ माने जाते थे। गर्गवंशी लोग ब्राह्मणों और वैश्यों (बनियों) में प्रमुख रूप से पाए जाते हैं। इसके अलावा, गर्ग वंश की शाखाएं क्षत्रिय और दलित समाज में भी मौजूद हैं।

गर्ग वंश की विशेषताएं

  1. महाभारत कालीन गर्ग ऋषि
    महाभारत काल में गर्ग ऋषि यदुओं के आचार्य थे। उन्होंने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘गर्ग संहिता’ की रचना की, जिसमें यदु वंश, कृष्णचरित्र और अन्य ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन है।
  2. ब्राह्मण वंश परंपरा
    ब्राह्मण वंश परंपरा में गर्ग ऋषि से शुक्ल वंश का आरंभ हुआ। गर्ग वंश से जुड़े लोगों को गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय और शुक्ल वंशज कहा जाता है।
  3. गर्ग ऋषि के वंशज
    गर्ग ऋषि के 13 पुत्र थे, जिनसे गर्ग वंश का विस्तार हुआ। ये 13 परिवार बाद में 13 गांवों में विभक्त हो गए। इनसे जुड़े लोग आज भी गर्ग गोत्र या गर्ग उपनाम धारण करते हैं।
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गर्ग वंश का सामाजिक विस्तार

गर्ग वंश का प्रभाव केवल ब्राह्मणों तक सीमित नहीं है। गर्ग वंश की शाखाएं समाज के विभिन्न वर्गों में देखी जाती हैं:

  1. दलित समाज में – गर्ग वंश की एक शाखा दलित समाज में पाई जाती है।
  2. क्षत्रिय और वैश्यों में – गर्ग वंश से क्षत्रिय और वैश्यों का भी उद्भव हुआ है।

अन्य ऋषियों से संबंध

ब्राह्मण वंश परंपरा में गर्ग वंश के साथ-साथ अन्य वंश भी प्रसिद्ध हैं:

  • गौतम से मिश्र वंश।
  • श्रीमुख शांडिल्य से तिवारी या त्रिपाठी वंश।

गर्ग वंश भारत की प्राचीन परंपराओं और सामाजिक संरचनाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह वंश विभिन्न जातियों और समाज के वर्गों में बंटा हुआ है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि ऋषि परंपरा केवल ब्राह्मणों तक सीमित नहीं थी। गर्ग वंश के लोगों ने भारतीय संस्कृति, धर्म और समाज में अपनी अमिट छाप छोड़ी है।

वर्तमान की जातिवादी व्यवस्था -हिंदुओं के प्रमुख वंश कौनसे है

वर्तमान जातिवादी व्यवस्था गुलाम काल और पिछले वर्षों की विभाजनकारी राजनीति का परिणाम है। भारतीय इतिहास और धर्म को सही से न जानने के कारण समाज में मतभेद और भ्रम फैला है। जातियों के उत्थान और पतन के इतिहास से अपरिचित होने के कारण कुछ लोग और संगठन हिन्दू धर्म के खिलाफ नफरत का प्रचार करते हैं।

हमारे पूर्वजों ने जिन ‘भंगी’ और ‘मेहतर’ जातियों को अस्पृश्य माना था, जिनके हाथ का छुआ तक नहीं खाने का रिवाज था, दरअसल, वे लोग मुग़ल काल में ब्राह्मण थे। उस समय ब्राह्मणों और क्षत्रियों पर जो अत्याचार हुए, उसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है। उस काल में ब्राह्मणों और क्षत्रियों के सामने दो ही विकल्प थे— या तो इस्लाम कबूल करो, या फिर मुगलों और मुसलमानों का मैला ढोने का काम करो।

मुगल किलों में शौचालय नहीं पाए जाते। इसका कारण यह था कि जहां से मुग़ल आए थे, वहां शौचालय का प्रचलन नहीं था। वे लोग इसी तरह से मैला फिंकवाने का काम करते थे। जबकि हिन्दू सिंधु घाटी सभ्यता में शौचालय कमरे से सटे होते थे। मुगलों के महलों में इस प्रथा का पालन नहीं था, और उन्होंने ब्राह्मणों और क्षत्रियों से यह काम करवाया।

वर्तमान में भारत में 1000 ईस्वी में केवल 1 प्रतिशत अछूत जाति थी, लेकिन मुग़ल शासन के अंत तक इनकी संख्या 14 प्रतिशत से अधिक हो गई। यह वृद्धि मुग़ल काल में कैसे हुई, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। इसके बाद अंग्रेजों ने इस ऊंच-नीच की व्यवस्था को और बढ़ावा दिया।

Written By Professor Shiv Chandra Jha Mo:- 9631487357 M.A In Dharmashastra shiv.chandra@praysure.in – हिंदुओं के प्रमुख वंश कौनसे है

संदर्भ – हिंदुओं के प्रमुख वंश कौनसे है

  • मतस्य पुराण -वेदव्यास
  • महाभारत- महर्षि वेदव्यास

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।