ज्योतिष के मूलभूत सिद्धांत

ज्योतिष के मूलभूत सिद्धांत

ज्योतिष के मूलभूत सिद्धांत – ज्योतिष के सिद्धांतों का अध्ययन जीवन के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। यह विशेष रूप से व्यक्तित्व, शिक्षा, व्यवसाय, विवाह, बच्चों, भूमि, संपत्ति, वाहन, और विदेश यात्राओं से संबंधित घटनाओं की भविष्यवाणी करने में सहायक होता है।

विंशोत्तरी दशा, जो कि एक प्रमुख दशा प्रणाली है, इसका उपयोग ज्योतिषी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न चरणों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए करते हैं। यह दशा प्रणाली ग्रहों के स्थान और उनके प्रभावों को ध्यान में रखते हुए व्यक्ति के जीवन की घटनाओं का पूर्वानुमान करने का तरीका है।

यहां कुछ प्रमुख पहलु दिए गए हैं, जिनमें विंशोत्तरी दशा का उपयोग किया जाता है:

  1. शिक्षा: इस दशा का उपयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि व्यक्ति को शिक्षा के दौरान किस प्रकार के अवसर मिल सकते हैं और शिक्षा में सफलता के लिए उपयुक्त समय कब आ सकता है।
  2. व्यवसाय: विंशोत्तरी दशा का प्रयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि व्यक्ति के करियर की दिशा क्या होगी, कब वह अपने व्यवसाय में सफल होगा, या कोई बड़ा परिवर्तन आएगा।
  3. विवाह: विवाह से संबंधित घटनाओं की भविष्यवाणी भी इस दशा के माध्यम से की जाती है, जैसे विवाह का समय, जीवनसाथी की विशेषताएँ और वैवाहिक जीवन की स्थिति।
  4. बच्चे: इस दशा का उपयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि व्यक्ति को संतान सुख कब मिलेगा और संतान से संबंधित कोई विशेष घटनाएँ कब घटित हो सकती हैं।
  5. भूमि और संपत्ति: विंशोत्तरी दशा का उपयोग भूमि, संपत्ति या घर के मामलों में भी किया जाता है, ताकि यह समझा जा सके कि कब व्यक्ति को संपत्ति का लाभ हो सकता है।
  6. वाहन: यह दशा वाहन खरीदने या यात्रा करने के समय के बारे में भविष्यवाणी करने में सहायक होती है।
  7. विदेश यात्रा: यदि कोई व्यक्ति विदेश यात्रा की योजना बना रहा है या विदेश में बसने की सोच रहा है, तो यह दशा उसके लिए सही समय का निर्धारण करने में मदद करती है।

इस प्रकार, ज्योतिष के सिद्धांतों के आधार पर विंशोत्तरी दशा का उपयोग मनुष्य के जीवन के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है, जिससे व्यक्ति अपनी जीवन यात्रा को समझ सके और भविष्य के लिए बेहतर निर्णय ले सके।

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ज्योतिष के मूलभूत सिद्धांत

ग्रहों का परिचय

ज्योतिष के सिद्धांतों में नौ ग्रह महत्वपूर्ण माने जाते हैं:

  1. सूर्य: पिता, आत्मा, औषधि, राजनीति, राजकृपा, सत्ता, ख्याति, प्रतिष्ठा, शौर्य, स्वास्थ्य, दायीं आंख का कारक।
  2. चंद्र: माता, अनुभूति, स्त्रियों से लाभ, मुखाकृति की आभा, सौंदर्य, बायीं आंख, तरल पदार्थ, मोती और उत्तर-दक्षिण दिशाओं का कारक।
  3. मंगल: छोटे भाई-बहन, साहस, पराक्रम, शारीरिक शक्ति, कलह, भूमि-संपत्ति, शस्त्राघात, पुलिस, इंजीनियरिंग, सैनिक, दुर्घटना, शत्रु और दक्षिण दिशा का कारक।
  4. बुध: बुद्धि, पढ़ाई, वाणी, ज्योतिष, लेखन, प्रकाशन, गणित, बैंकिंग, अंकेक्षण, मामा, स्नायु तंत्र, त्वचा और उत्तर दिशा का कारक।
  5. बृहस्पति: संपत्ति, उच्च जीवन स्तर, बच्चों का जन्म, बड़ा भाई, ज्ञान, परामर्श, धर्म, प्रतिष्ठा, वेद ज्ञान, मोटापा, विधि विशेषज्ञ, स्त्री की कुंडली में पति, राजनीतिक कूटनीति, यकृत और पश्चिम-उत्तर दिशाओं का कारक।
  6. शुक्र: पत्नी, पति, काम, वाहन, कला, गायन, आभूषण, रत्न, विलासिता, मनोरंजन, रसायन, गुप्तांग, गुर्दा और दक्षिण-पूर्व दिशाओं का कारक।
  7. शनि: दीर्घायु, मृत्यु, भाग्य, भय, निर्धनता, श्रम, अपमान, सेवा, नौकर, पुरानी बीमारी, क्रूर कार्य, राजनीति में नेता, लोहा, इस्पात और पश्चिम दिशा का कारक।
  8. राहु: दादा, कटु बोली, जुआ, गूढ़ शास्त्र, विदेशियों, भ्रम, विधवा, तीर्थस्थान, अत्यधिक पीड़ा और दक्षिण-पश्चिम दिशा का कारक।
  9. केतु: नाना, गणितीय योग्यता, अचानक दुर्घटना, विदेशी भाषा, प्रतिभा, चर्म, शत्रु प्रदत्त पीड़ा, सफेद दाग और दक्षिण-पूर्व दिशाओं का कारक।

भावों का परिचय

जन्मकुंडली 12 भावों में विभाजित होती है, जिनका विस्तृत विवरण निम्नलिखित है:

  1. लग्न या प्रथम भाव: शरीर, स्वास्थ्य, स्वभाव, दीर्घायु, सुख, शिर, केश का द्योतक। शनि का कारक।
  2. द्वितीय भाव: धन, मान, बोली, भोजन, दायीं आंख, मुखाकृति, जीभ का द्योतक। बृहस्पति (धन) और बुध (वाणी) का कारक।
  3. तृतीय भाव: छोटे भाई-बहन, प्रयास, छोटी यात्राएं, लेखन, दीर्घायु, साहस, कान, नौकर, मित्र, पड़ोसी, मृत्यु का कारण। मंगल (सहोदर और पराक्रम) और शनि (नौकर) का कारक।
  4. चतुर्थ भाव: शिक्षा, ज्ञान, वाहन, घर, सिंहासन, आराम, माता, आवास, पारिवारिक सुख, छाती का द्योतक। चंद्र (माता), शुक्र (वाहन) और मंगल (भूमि-संपत्ति) का कारक।
  5. पंचम भाव: संतान, बुद्धि, क्षमता, रोमांस, भावना, प्रतिष्ठा, व्यवसाय में बाधा, मंत्र, मंत्रियों से संपर्क, उच्च शिक्षा। बृहस्पति (संतान) और बुध (शिक्षा) का कारक।
  6. षष्ठ भाव: शत्रु, बीमारियाँ, ऋण, कलह, कानूनी मामले, हानि, दुर्घटनाएं, युद्ध, उत्साह। मंगल (दुर्घटना), शनि (बीमारी) और बुध (मातृ पक्ष) का कारक।
  7. सप्तम भाव: पत्नी, पति, विवाह, दांपत्य, जीवन साथी, व्यवसाय में साझेदार, गुप्तांगों का द्योतक। शुक्र (विवाह और पत्नी) और बृहस्पति (पति) का कारक।
  8. अष्टम भाव: दीर्घायु, पुराने रोग, दुःख, दरिद्रता, मृत्यु, पैतृक संपत्ति, मलद्वार। शनि का कारक।
  9. नवम भाव: पिता, संतान, भाग्य, गुरु, विदेश यात्राएं, जंघाएं। सूर्य (पिता) और बृहस्पति (धर्म) का कारक।
  10. दशम भाव: व्यवसाय, जीविका, व्यापार, रोजगार, घुटने, ख्याति। सूर्य का कारक।
  11. एकादश भाव: लाभ, आय, इच्छाएं, दुर्घटनाएं, टांगे, बाएं कान। बृहस्पति का कारक।
  12. द्वादश भाव: व्यय, विदेश, जेल, अस्पताल, मोक्ष, शयन सुख, बंटवारे, पांव, बायीं आंख। शनि (बंटवारा), केतु (मोक्ष) और शुक्र (शयन सुख) का कारक।
  1. घटना का काल निर्धारण:
    • वाहनों के लिए: बुध और बुध से चतुर्थ भाव (जिसे घर, वाहन, और सुख का भाव कहा जाता है) का विश्लेषण किया जाता है। यदि बुध बली होता है और चतुर्थ भाव पर अच्छे दृष्टि होते हैं, तो वाहन की प्राप्ति का समय शुभ होता है।
    • भू-संपत्ति के लिए: मंगल और मंगल से चतुर्थ भाव का विश्लेषण किया जाता है। मंगल, जो भूमि, संपत्ति और गृह के कारक होते हैं, यदि बली होता है तो भूमि संबंधित लाभ की संभावना होती है।
    • शिक्षा के लिए: बुध और मंगल से पंचम भाव (जो शिक्षा और बुद्धि का भाव है) का विश्लेषण किया जाता है। यदि ये ग्रह सही स्थिति में होते हैं, तो शिक्षा में सफलता प्राप्त होती है।
  2. ग्रहों का बल: जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति और उनका बल बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह निर्धारित करता है कि ग्रह अपने शुभ या अशुभ फल कब और कैसे देगा। यह बल निम्नलिखित तरीकों से निर्धारित किया जा सकता है:
    • बली ग्रह: ग्रह जब उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि, स्वराशि या मित्र राशि में होता है, तो उसे बली माना जाता है। इसके अलावा, जब ग्रह किसी शुभ भाव का स्वामी हो, शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो, या वर्गोत्तम हो, तो वह अपनी शक्तियों का प्रभावी रूप से उपयोग करता है।
    • दुर्बल ग्रह: ग्रह जब अपनी नीच राशि, शत्रु राशि में होता है, या छठे, आठवें या 12वें भाव का स्वामी हो, तो वह दुर्बल माना जाता है। इसके अलावा, यदि ग्रह अशुभ राशियों से युत या दृष्ट हो, या राशि संधि में अशुभ स्थितियों में हो, तो वह अपना शुभ फल नहीं दे पाएगा।
  3. भावों के कारकत्व: प्रत्येक ग्रह का अपनी-अपनी कुंडली में एक विशिष्ट कारकत्व होता है, जो उसकी स्थिति और बल पर निर्भर करता है। उदाहरण स्वरूप:
    • चतुर्थ भाव: घर, वाहन, माता और सुख का प्रतिनिधित्व करता है। बुध और मंगल इस भाव के कारक होते हैं।
    • पंचम भाव: शिक्षा, बुद्धि, और संतान का भाव होता है, जिसे बुध और मंगल का प्रभाव नियंत्रित करते हैं।
    • दशम भाव: यह करियर, पेशेवर सफलता, और सामाजिक स्थिति का भाव है, जिसे सूर्य, शनि और मंगल के प्रभाव से देखा जाता है।
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सटीक विश्लेषण के लिए:

जन्मकुंडली का सटीक विश्लेषण करने के लिए ग्रहों के बलों का मूल्यांकन करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। एक बली ग्रह शुभ फल देता है, जबकि दुर्बल ग्रह अपने स्वामी भाव से संबंधित शुभ फल नहीं दे पाता। इसलिए यह आवश्यक है कि हम ग्रहों के स्थान, उनकी स्थिति, दृष्टि, और अन्य कारक तत्वों का विश्लेषण करें, ताकि हम सही भविष्यवाणी कर सकें।

इस प्रकार, जब ग्रहों की स्थिति, उनके बल और भावों के कारकत्व का सही प्रकार से विश्लेषण किया जाता है, तो हम जीवन के विभिन्न पहलुओं की सही भविष्यवाणी कर सकते हैं।

ज्योतिष के मूलभूत सिद्धांत – आचार्य आस्तिक कुमार झा वेद ज्योतिष कर्मकाण्ड विशेषज्ञ https://www.facebook.com/acharyaaastikkumar.jha 

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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