कनकधारा स्त्रोत हिंदी अर्थ सहित
कनकधारा स्त्रोत हिंदी अर्थ सहित :-भगवती कनकधारा महालक्ष्मी स्तोत्र की रचना श्री शंकराचार्य जी ने की थी।उनके इस स्तुति से प्रसन्न होकर माता लक्ष्मी जी ने स्वर्ण के आँवलों की वर्षा कराई थी इसलिए इसे कनकधारा स्तोत्र कहते हैं।अगर हमारी जन्मपत्रिका में दारिद्र्य योग हैं या जीवन मे लक्ष्मी का अभाव जान पड़ता है तो जरूर इसका प्रयोग करना चाहिए।धन को आकृष्ट करने की इसमें अद्भुत क्षमता है।
कनकधारा स्त्रोत पाठ विधि
- एक चौकी पर लाल या पीले कपड़े पर माँ कनकधारा लक्ष्मी की बैठी हुई प्रतिमा या फोटो लगाये और साथ में एक कनकधारा यंत्र स्थापित करे।
- रोजाना नियमित रूप से कनकधारा यंत्र के सामने धुप-बत्ती जलाये,और माता का पूजन कर गोघृत का दीपक जलाएं।
- अब इस कनकधारा स्तोत्र का नियमित पाठ करें।वैसे 16 पाठ करने को कहा गया है किन्तु एक पाठ जरूर करें।
- इस यंत्र की विशेषता है कि यह किसी भी प्रकार की विशेष माला, जप, पूजन, विधि-विधान की मांग नहीं करता बल्कि सिर्फ दिन में एक बार इसको पढ़ना पर्याप्त है।
स्तोत्रअङ्गं हरे: पुलकभूषणमाश्रयन्तीभृंगांगनेव मुकुलाभरणं तमालम्अंगीकृताखिलविभूतिरपांगलीलामांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया: ।।1।। मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारे:प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि । माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले यासा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवाया:।।2।। विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष –मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोsपि। ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध –मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिराया:।।3।। आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द –मानन्दकन्दमनिमेषमनंगतन्त्रम्आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रंभूत्यै भवेन्मम भुजंगशयांनाया:।।4।। बाह्वन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभे याहारावलीव हरिनीलमयी विभाति। कामप्रदा भगवतोsपि कटाक्षमालाकल्याणमावहतु मे कमलालयाया:।।5।। कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –र्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव । मातु: समस्तजगतां महनीयमूर्त्ति –र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।। प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन । मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धंमन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।। दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –मस्मिन्नकिंचनविहंगशिशौ विषण्णे। दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरंनारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाह:।।8।। इष्टा विशिष्टमतयोsपि यया दयार्द्र –दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते। दृष्टि: प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टांपुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टराया:।।9।। गीर्देवतेति गरुड़ध्वजसुन्दरीतिशाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति। सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायैतस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै।।10।। श्रुत्यै नमोsस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यैरत्यै नमोsस्तु रमणीयगुणार्णवायै। शक्त्यै नमोsस्तु शतपत्रनिकेतनायैपुष्ट्यै नमोsस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै।।11।। नमोsस्तु नालीकनिभाननायैनमोsस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै। नमोsस्तु सोमामृतसोदरायैनमोsस्तु नारायणवल्लभायै।।12।। नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायैनमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै । नमोऽस्तु देवादिदयापरायैनमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै।।13।। नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायैनमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै । नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायैनमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै।।14।। नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायैनमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै । नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायैनमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै।।15।। सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानिसाम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि। त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानिमामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये।।16।। यत्कटाक्षसमुपासनाविधि:सेवकस्य सकलार्थसम्पद:। संतनोति वचनांगमानसै –स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।17।। सरसिजनिलये सरोजहस्तेधवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे। भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञेत्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ।।18।। दिग्घस्तिभि: कनककुम्भमुखावसृष्ट –स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुतांगीम् । प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ।।19।। कमले कमलाक्षवल्लभेत्वं करुणापूरतरंगितैरपांगै:। अवलोकय मामकिंचनानांप्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया:।।20।। देवि प्रसीद जगदीश्वरि लोकमातःकल्याणगात्रि कमलेक्षणजीवनाथे । दारिद्र्यभीतिहृदयं शरणागतं माम्आलोकय प्रतिदिनं सदयैरपाङ्गैः।।21।। स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहंत्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् । गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनोभवन्ति ते भुवि बुधभाविताशया:।।22।।।।
इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं कनकधारास्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
श्रीकनकधारा स्तोत्र का हिन्दी रूपान्तर (पद्यानुवाद) (कनकधारा स्त्रोत हिंदी अर्थ सहित)
अंग अंग से पुलकित होकर, स्वर्ण प्रदान करो माता।
मेरे शून्य सदन के अंदर, स्थिर सुख शांति भरो माता।।
अलिका सी श्री हरि के मुख पर, मुग्ध हुई मंडराती हो।
तरु तमाल सी आभा पाकर, भरमाती शरमाती हो,
लीलामयी दया की दृष्टि, मुझको दान करो माता।।
मेरे शून्य सदन के……………।।1।।
देवाधिप को वैभव देती, दे आनन्द मुरारी को।
नीलकमल की सहोदरा मां, सरसाती हर क्यारी को।।
वही मधुर ममता की दृष्टि, मुझे प्रदान करो माता।
मेरे शून्य सदन के……….।।2।।
कोटि काम छवि के अभिनेता, सत् चित आनंद ईश मुकुन्द।
जिनके हृदय कमल मे राजी, मना रही अतिशय आनन्द।।
शेषशायिनी श्री हरि माया, मुझको धन्य करो माता।
मेरे शून्य सदन के…….।।3।।
मधुसूदन के वक्षस्थल पर, कौस्तुभ मणिका राज रही।
कमल वासिनी श्री की आभा, जिसके अन्दर साज रही।।
नीलाभापति का मन हरती, मेरी विपति हरो माता।
मेरे शून्य सदन के…….।।4।।
जैसे श्याम घटा सुषमा में, विद्युत कान्ति चमकती है।
वैसे हरि के हृदय कमल में, माता आप दमकती हैं।।
भार्गव नन्दिनि विश्व वन्दिनी, दिव्य प्रकाश भरो माता।
मेरे शून्य सदन के……..।।5।।
सिन्धु सुता श्री की सुन्दरता, मन्थरगति महिमा वाली।
मधुसूदन का मन हरती है, मंगल मुख गरिमा वाली।।
स्नेहमयी दारिद्र्य हारिणी, दुख दारिद्रय हरो माता।
मेरे शून्य सदन के…….।।6।।
श्री नारायण की प्रिय प्राणा, करुणामयि करुणा कर दो।
मेरे पाप ताप सब मेटो, मेरा गृह सुख से भर दो।।
मैं प्यासा हूँ जन्म जन्म का, शुभ जल वृष्टि करो माता।
मेरे शून्य सदन के……..।।7।।
पद्मासना पद्मजा पद्मा, बुध जन तुम्हे मनाते हैं।
मेरी अनुपम अनुकम्पा से, अनुपम साधन पाते हैं।।
मेरी सब अभिलाषा पूरो, मम गृहवास वास करो माता।
मेरे शून्य सदन के………..।।8।।
ब्रह्म शक्ति बनकर जग रचती, लक्ष्मी बन पालन करती।
शिव शक्ति बन प्रलय मचाती, तीन रूप धारण करती।।
शाकम्भरी शारदा श्री माँ, ज्ञान प्रदान करो माता।
मेरे शून्य सदन के……..।।9।।
शुभ कर्मों का फल प्रदायिनी, दुष्कर्मों का करती अन्त।
सहज कमल दल में निवासिनी, रमा शक्ति समृद्धि अनन्त।।
पुरुषोत्तम की प्राण वल्लभा, परम प्रकाश भरो माता।
मेरे शून्य सदन के………।।10।।
क्षीर सिन्धु तनया शशि भगिनी,अमृत सहोदरा शुभ रूप।
नारायण की परम प्रेयसी, कमलमुखी सौम्या श्री रूप।।
बारम्बार प्रणाम आपको, मम दुर्भाग्य हरो माता।
मेरे शून्य सदन के………।11।।
मातु आपकी सतत वन्दना, करती सुख साम्राज्य प्रदान।
पाप ताप सन्ताप मिटाती, देती सब साधन सम्मान।।
चरण वन्दना करूं आपकी, शुभ सद्भक्ति भरो माता।
मेरे शून्य सदन के……..।12।।
जिनकी कृपा कटाक्ष मात्र से, पूर्ण मनोरथ होते हैं।
विपुल विभव सन्तति सुख मिलते, दुख दरिद्र सब खोते हैं।।
तन मन वचन कर्म से सुमिरो, मन में हर्ष भरो माता।
मेरे शून्य सदन के………।।13।।
कमल कुन्ज कलिका निवासिनी, हरि पत्नी आनन्दमयी।
श्वेताम्बरा गंध माला में, कमल कान्ति नित नवल नयी।।
त्रिभुवन को वैभव प्रदायिनी, मुझको मत विसरो माता।
मेरे शून्य सदन के……….।।14।।
गगन जान्हवी नीर क्षीर से, जिनका हो अभिषेक सदा।
उन्हीं जगन्नायक की प्रणया, हो मुझ पर मांगल्य मुदा।।
प्रणत प्रभात प्रणाम आपको, स्वीकारो मेरी माता।
मेरे शून्य सदन के………।।15।।
कमलनयन की प्राण वल्लभे, अग्रगण्य मैं दीन दुखी।
मातु सहज करुणा की सागर, कर दो तत्क्षण मुझे सुखी।।
मुझ पर दया दृष्टि बरसा कर, अभ्युत्थान करो माता।
मेरे शून्य सदन के……….।।16।।
लक्ष्मी के इस कनक स्तोत्र का, तीन काल जो पठन करें।
त्रिभुवन को सुख देने वाली, सुख से उनका सदन भरे।।
सुख सौभाग्य सहज मे देकर, विपत हरो माँ जल जाता।
मेरे शून्य सदन के………….।।17।।
आद्य शंकराचार्य रचित यह, कनक स्तोत्र जो गाते हैं।
मां लक्ष्मी की अनुकम्पा से, सब सुख साधन पाते हैं।।
करती हैं कल्याण शीघ्र ही, त्रिभुवन की मां सुखदाता।
मेरे शून्य सदन के………..।।18।।
कमल कान्ति करुणामयी, करुणा की अवतार।
माँ लक्ष्मी करुणा करो, करो कनक बौछार।।
मेरे दुख दारिद्र हरो, करो सिद्धियाँ दान।
माँ कनके! मेरा करो, पद पद पर कल्याण।। (कनकधारा स्त्रोत हिंदी अर्थ सहित)
कनकधारा स्तोत्र का महत्व
कनकधारा स्तोत्र एक प्रसिद्ध वैदिक स्तोत्र है जिसे आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। यह स्तोत्र मां लक्ष्मी को समर्पित है और उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है। इसका नाम “कनकधारा” इसीलिए पड़ा क्योंकि “कनक” का अर्थ है सोना और “धारा” का अर्थ है धारा या प्रवाह। कहा जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में धन, समृद्धि और सुख का प्रवाह होता है।
महत्व और लाभ:
- धन और समृद्धि प्राप्ति:
कनकधारा स्तोत्र का नियमित पाठ आर्थिक समस्याओं को दूर करता है और धन के नए स्रोत खोलता है। इसे विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी माना गया है जो आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं। - मां लक्ष्मी की कृपा:
यह स्तोत्र मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने का एक प्रभावशाली माध्यम है। इसे पढ़ने से व्यक्ति पर मां लक्ष्मी की कृपा होती है, जिससे घर में शांति और वैभव आता है। - पुण्य और शुभ फल:
कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के कर्मों के दोष कम होते हैं और उसे शुभ फल प्राप्त होते हैं। इसे एक प्रकार की आध्यात्मिक साधना माना गया है। - गृह क्लेश और दरिद्रता दूर करना:
यदि घर में गरीबी, क्लेश या मानसिक अशांति है, तो कनकधारा स्तोत्र का पाठ सकारात्मक ऊर्जा लाने में मदद करता है। - प्रसिद्ध कथा से प्रेरणा:
यह स्तोत्र एक गरीब ब्राह्मण महिला की मदद के लिए रचा गया था। कथा के अनुसार, शंकराचार्य ने इस स्तोत्र का पाठ किया और मां लक्ष्मी ने गरीब महिला को सोने के आभूषणों की वर्षा करके आशीर्वाद दिया।
माता महालक्ष्मी सबका कल्याण करेंगी। कनकधारा स्त्रोत हिंदी अर्थ सहित – Vijay Kumar Shukla
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