कर्ण पिशाचिनी के बारे मे जानिये, कहा जाता है ये सबसे डरावनी साधना है

कर्ण पिशाचिनी के बारे मे जानिये, कहा जाता है ये सबसे डरावनी साधना है

यदि आप टेलिपथी, हिप्नॉटिझम, रेकी, और चक्र हीलिंग में विश्वास कर सकते है तो ऐसे ही ये एक साधना है जिसे कर्ण पिशाचनी नाम से जाना जाता है

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प्राचीन भारत और महान हिंदू सभ्यता का अध्ययन करने से कुछ गूढ़ विद्याओं का पता चलता है। आज के आधुनिक युग में यूरोपीय और मंगोलियन वंश के विचारकों ने इन विद्याओं को पुनः जागृत किया और इन्हें अपनी समझ से नाम दिए, जैसे कि हिप्नोटिज्म, रेकी, टेलिपैथी आदि। इतिहास लिखने का मुख्य आधार तारीख़ और सही काल मापन होता है, किंतु इन दोनों में हम कमजोर पड़ जाते हैं। यही कारण है कि हजारों वर्षों से जो ज्ञान भारत में प्रचलित था, वह बीसवीं शताब्दी तक या तो पिछड़ गया या नष्ट हो गया। तंत्र और मंत्र शास्त्र की मान्यताओं के अनुसार कर्ण पिशाचिनी अपार शक्तियों से भरी एक अद्भुत स्त्री रूप होती है। उसके वशीभूत होते ही वह न केवल बीते काल की घटित घटनाओं के बारे में बताती है, बल्कि मौजूदा समय में चल रही परिस्थितियों से भी अगाह करवाते हुए मार्ग-दर्शन कर भविष्यवाणी भी करती है।

जब कोई व्यक्ति हर संभव कोशिश करने के बाद भी परिणाम तक नहीं पहुंचता या जिसका उत्तर चिकित्सा विज्ञान नहीं दे पाता, तो ऐसे परेशान लोग इन ढोंगी बाबाओं के चंगुल में फंस जाते हैं। इन परेशान लोगों की मानसिकता का गलत फायदा ये बाबा उठाते हैं। लेकिन क्या इन कुछ गलत लोगों के कारण हमारी प्राचीन भारतीय सभ्यता का यह ज्ञान गलत साबित हो जाएगा? बिलकुल नहीं। अगर समाज को तांत्रिक, मंत्रिक और पाखंडी लोगों के चंगुल से बचाना है, तो इन प्राचीन शास्त्रों का संशोधन और संवर्धन समय की आवश्यकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले शोधकर्ताओं को हमारे पुराने ग्रंथों को पढ़ना और उनमें संशोधन करके आज के युग के अनुसार उनका अर्थ निकालना जरूरी है। इन शास्त्रों को आज के जीवनशैली के अनुसार जीवन उपयोगी बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। कुल मिलाकर, अच्छे लोगों का सामने आना जरूरी है, वरना बुरे लोग ही ताकतवर बन जाते हैं।

इन गूढ़ शास्त्रों के परिणाम हर साधक और गुरु के अनुसार बदल सकते हैं, इसे समझना जरूरी है। इन शास्त्रों को गुरु-शिष्य परंपरा से ही सिखाया जाता था, इसलिए ये विद्याएं गुरु के अधीन होकर रह गईं। इसका अर्थात यह है कि जब ज्ञान देने वाला गुरु नहीं रहे तब वह विद्याएं भी समाप्त हो गईं, या फिर किसी गुरु ने सम्पूर्ण ज्ञान होने के बाद भी शिष्यों को पूरा ज्ञान नहीं दिया, तो भी ये विद्याएं नष्ट हो गईं। यह एक तरह से अच्छा भी हुआ और गलत भी। अब “कर्ण पिशाचिनी विद्या” पर चर्चा करेंगे। कर्ण पिशाचिनी विद्या को प्राप्त करने के कई तरीके हैं। इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध तरीका अघोरी का है, जिसके कारण कर्ण पिशाचिनी विद्या के बारे में लोगों के मन में डर बैठ गया है। किंतु जैसे परमात्मा को प्राप्त करने के कई मार्ग होते हैं, वैसे ही कर्ण पिशाचिनी को प्राप्त करने के भी कई मार्ग हैं। परमात्मा की प्राप्ति के लिए भक्ति मार्ग, योग साधना, संगीत साधना, दुखी और पीड़ितों की सेवा, कर्मकांड, उपवास, कुंडलिनी जागरण आदि मार्ग हैं। इन सभी का उद्देश्य एक ही होता है – परमात्मा की प्राप्ति। जहाँ मार्ग महत्वपूर्ण नहीं होता, वहीं अंतिम लक्ष्य महत्वपूर्ण होता है। इसी प्रकार, कर्ण पिशाचिनी को प्राप्त करने के भी अनेक मार्ग हैं।

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कर्ण पिशाचिनी के विषय में लगभग सभी तांत्रिक जानते हैं। यह एक ऐसी यक्षिणी है जो पिशाचिनी स्वरूप में आपके कानों में आकर अथवा विचारों एवं संकेतों के माध्यम से आपके प्रश्नों के जवाब देती है और इसके माध्यम से आप किसी भी प्रकार की समस्या का हल जान लेते हैं। यह साधना अत्यंत खतरनाक है इसलिए सावधानी पूर्वक पहले अपने गुरु मंत्र को या किसी योग्य गुरु के माध्यम से अपने मुख्य देवता की साधना को संपूर्ण कर लेना चाहिए। उसके बाद ही इसकी साधना करनी चाहिए। कर्ण पिशाचिनी ऐसी मान्यता है कि जो भी यक्षिणी देवलोक से निष्काषित होकर पृथ्वी पर भटक रही है। उन्ही में से किसी शक्ति को मंत्रों के माध्यम से पकड़ लेने और उसे अपने अनुरूप बनाने की एक प्रक्रिया है। इसके मंत्र की साधना से व्यक्ति। भूतकाल और वर्तमान काल की सभी बातें जान लेता है और अगर वर्षों तक इसकी साधना की जाती है तो भविष्य की घटनाएं भी व्यक्ति जानने लगता है। लेकिन नए साधकों के लिए यह साधना खतरनाक हो सकती है। इसलिए साधना करने के पूर्व अपने कुल गुरु से परामर्श ले लें।

कर्ण पिशाचिनी साधना एवं मंत्र कर्ण पिशाचिनी की साधना का अनुष्ठान वैदिक और तांत्रिक दोनों ही विधियों से किया जा सकता है। इसे एक गुप्त त्रिकालदर्शी साधना माना गया है, जो 11 या 21 दिनों में पूर्ण होती है। यह साधना करने वाला व्यक्ति थोड़े समय के लिए त्रिकालदर्शी बन जाता है। इसे सामान्य विधि विधान से संपन्न नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसकी साधना करने वाले में इसके प्रति घोर आस्था, आत्मविश्वास और असहजता को झेलने की अटूट व अटल क्षमता होनी चाहिए। यही कारण है कि इसे समान्य व्यक्ति को करने से सख्त मना किया जाता है। दूसरा मार्ग है मंत्र साधना, लेकिन यह मंत्र अच्छे गुरु से ग्यारह लाख बार सिद्ध किया जाना चाहिए, जो लगभग सात साल का समय लेता है। यदि किसी ने झूठे मंत्र सिद्धि का दावा किया और किसी को मंत्र दिया, तो कर्ण पिशाचिनी उस गुरु की जान ले लेती है। कर्ण पिशाचिनी देवी के दरबार में अपराध नहीं माफ होते, बल्कि उस व्यक्ति की आत्मा को पिशाच बना कर बरगद के पेड़ पर उल्टा लटका दिया जाता है, और उसकी आत्मा को हजार साल तक मुक्ति से वंचित कर दिया जाता है। इसके कारण उसकी आने वाली पीढ़ियों को नरक की यातनाएं सहनी पड़ती हैं।

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कर्ण पिशाचिनी माता के लिए भूलोक में कोई भी कार्य असंभव नहीं है। देवताओं की तरह, वे किसी भी कार्य को संपन्न कर सकती हैं। वे अपने भक्तों को दर्शन देती हैं और उन्हें उसी प्रकार माया और ममता प्रदान करती हैं जैसे अन्य देवी-देवता। लेकिन उनकी भक्ति के उपायों की सही जानकारी होना आवश्यक है। पिशाचों की तरह उनका निवास स्थान श्मशान में होता है। हम चाहकर भी उन्हें अपने घर या पूजास्थल पर नहीं रख सकते। उनकी कुछ आदतें पिशाचों जैसी हैं, जैसे रात के समय भटकना, रक्तपान करना और प्राणों का हरण करना। उनका रूप पिशाचों जैसा भयावह होता है। देवी-देवताओं जैसा उनका रूप देखकर हम प्रसन्न नहीं हो सकते, बल्कि कई रातें हम बिना सोये भी रह सकते हैं। वे आभूषण नहीं पहनतीं और न ही सोना धारण करते है उनके शरीर से रक्त की तीव्र गंध आती है, जिससे हमें उल्टी भी आ सकती है। उनके अस्तित्व से हम असहज महसूस करते हैं। जब वे हमारे पास अवतरित होती हैं, तो हमारी अत्यधिक ऊर्जा को वह खींच लेती हैं, जिससे हम थकावट महसूस कर सकते हैं या बेहोश भी हो सकते हैं। उन्हें बार-बार बुलाने पर वे गुस्सा हो जाती हैं। वे अत्यधिक चंचल स्वभाव की होती हैं। यदि साधक ने कर्ण पिशाचिनी को प्राप्त कर लिया और उसने अहंकार से दूसरों को डराने या दिखाने की कोशिश की, तो वह साधक भी अपनी जान से हाथ धो सकता है।

साधक को बिना बोले मन में विचार करना चाहिए, और कर्ण पिशाचिनी खुद गुरु के कान में आकर संवाद करती है। फिर गुरु साधक को कर्ण पिशाचिनी के अस्तित्व के बारे में ज्ञान देकर उसकी मदद करते हैं। कर्ण पिशाचिनी की साधना आसान नहीं है, लेकिन जानकारी के लिए हम कुछ बातें बताते हैं। ध्यान रखें कि यह केवल “जानकारी” है और बिना योग्य गुरु के मार्गदर्शन के इसे न करें, नहीं तो उल्टा कुछ भी हो सकता है और कर्ण पिशाचिनी आपकी जान भी ले सकती है। गलत मंत्र उच्चारण से भी गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जैसे साधक का पागल होना या शैतानी रूप में बदलना। कर्ण पिशाचिनी की साधना केवल उन्हीं गुरु के पास करें जिन्होंने मंत्र को ग्यारह लाख बार सिद्ध किया हो। साधना के लिए रक्तवर्ण (लाल) वस्त्र पहनना जरूरी है, और अंदर के वस्त्र भी लाल रंग के होने चाहिए। कई बार साधना जन्म अवस्था में यानी बिना वस्त्र पहने भी की जाती है, लेकिन गुरु के सामने जन्म अवस्था में बैठने में संकोच होता है। संकोच या लज्जा, यह भय से पहले की भावना है। साधना करते समय या बाद में भी कर्ण पिशाचिनी के प्रति भय नहीं होना चाहिए। जो डर गया, समझो वह मर गया। जो साधक समर्पित होते हैं, वे जन्म अवस्था में भी साधना करते वक्त संकोच महसूस नहीं करते, और वे कर्ण पिशाचिनी के उच्च स्तरीय साधक बन सकते हैं, क्योंकि उस समय वासनाओं को जीतने का काम होता है। यही कारण है कि अनेक धर्मों और पंथों में नग्न साधुओं की परंपरा होती है। कर्ण पिशाचिनी विद्या वासनाओं से मुक्त होने का साधन है, इसलिए इसे करते वक्त साधक को कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करने का आदेश दिया जाता है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि साधक संसारिक है, और यदि उसके पति या पत्नी ने रति सुख की मांग की तो वह अपनी जिम्मेदारी निभा सकता है, लेकिन उसमें अपनी भावनाएं न डालें।

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कर्ण पिशाचिनी हमें किसी का भी भूतकाल और भविष्य बताने में मदद करती है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वह हमेशा हमारी मदद करे। यदि किसी व्यक्ति के मन में हमारे लिए पाप है, या वह हमें परखने के लिए या हमारी बुराई करने के लिए आया है, तो कर्ण पिशाचिनी उस वक्त हमारे कान में उस व्यक्ति के उद्देश्य के बारे में बताती है, और उसका भविष्य बताने से मना करती है। उसके दरबार में कोई भी झूठ नहीं चलता, इसलिए साधक को पापी लोगों का साथ नहीं देना चाहिए। एक महत्वपूर्ण बात बताते हुए हम यह जानकारी समाप्त करेंगे। कर्ण पिशाचिनी की शक्ति प्राप्त करना हमारे हाथ में होता है, लेकिन उसके बाद वह हमारी आत्मा के साथ रहती है और मृत्य के बाद भी हमारे साथ रहती है। इसलिए यह विद्या चाहिए या नहीं, यह निर्णय लेने से पहले पचास बार सोच लें। एक बार कर्ण पिशाचिनी हमारे साथ आ गई, तो फिर कोई भी गुरु उसे हमारी आत्मा से बाहर नहीं निकाल सकता।

प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।