महाकाली साधना कैसे करें?

महाकाली साधना कैसे करें?

महाकाली साधना कैसे करें? – मृतम मासिक मासिक पत्रिका का माँ महाकाली तन्त्र अंक करीब 13 साल पहले प्रकाशित हुआ था। माँ, यह केवल एक शब्द नहीं, बल्कि भावनाओं, त्याग, और प्रेम का अद्वितीय प्रतीक है। ब्रह्मांड में ऐसा कोई अन्य रिश्ता नहीं जो मां की तरह निस्वार्थ और महान हो। यह लेख माँ के महत्व और उसकी आध्यात्मिक शक्ति पर प्रकाश डालता है।

माँ का त्याग: संसार का सबसे पवित्र रिश्ता
माँ अपने बच्चों के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। यहां तक कि महाकाल जैसी महाशक्ति को भी माँ के चरणों में झुकना पड़ा। शिव ने पूर्णिमा तिथि का निर्माण किया, क्योंकि केवल माँ ही पूर्ण है, शेष सभी देवता अपूर्ण हैं।

माँ अपने बच्चों की सुरक्षा और भलाई के लिए सब कुछ न्योछावर कर सकती है। माँ का यह त्याग हमें जीवन के हर मोड़ पर प्रेरणा देता है।

माँ: सृष्टि का आधार

माँ केवल एक शब्द नहीं, यह सृष्टि का आधार और जीवन का सार है। जब हम “माँ” का जाप करते हैं, तो भटकता हुआ मन स्थिर और प्रसन्न होने लगता है। यही “माँ” महामंत्र, गुरुमंत्र और सर्वश्रेष्ठ मंत्र है।

माँ न केवल जीवन देने वाली है, बल्कि वह मुक्तिदाता भी है। उसकी भक्ति से हमारा मन शांत और प्रसन्न होता है। माँ का नाम लेने मात्र से जीवन के कष्ट दूर होने लगते हैं।

माँ के कारण है- पूर्णिमा का महत्व

माँ सदा से ही पूर्णता की प्रतीक है। इसीलिए पूर्णिमा तिथि का नामकरण भी “पूर्ण” और “मां” के मेल से हुआ है। पूर्णिमा की रात जब चंद्रमा अपने पूरे तेज और प्रकाश के साथ आकाश को आलोकित करता है, तो वह माँ के जीवन में दिए गए प्रकाश और मार्गदर्शन की याद दिलाता है। जैसे चंद्रमा अपनी चमक से अंधेरे को दूर करता है, वैसे ही माँ अपने परिवार के अंधकार को दूर कर जीवन को रोशन करती है। भारतीय संस्कृति में हर महीने पूर्णिमा तिथि का आगमन माँ की इसी पूर्णता और उसकी अद्भुत शक्ति का प्रतीक है।

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अंग्रेजी में माँ को “MOTHER” कहा जाता है। इस शब्द में छिपा गूढ़ रहस्य भी माँ की महानता को उजागर करता है। यदि “MOTHER” से “M” को हटा दिया जाए, तो यह “OTHER” बन जाता है, जो दर्शाता है कि माँ के बिना संसार अधूरा है। माँ ही वह कड़ी है जो परिवार और समाज को एक सूत्र में बांधती है। उसकी ममता और प्रेम हर रिश्ते को सार्थकता प्रदान करते हैं।

माँ महाकाली की साधना और उपासना जीवन के दुःखों और कष्टों को हरने का सर्वोत्तम उपाय है। यदि जीवन में भागमभाग, दुर्भाग्य, या भयंकर बीमारियों ने घर कर लिया हो, तो माँ महाकाली की साधना से यह सब समाप्त हो सकता है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को राहु काल के समय घर में 9 दीपक (Raahukey तेल से भरे हुए) जलाना और 9 दिनों तक यह क्रम बनाए रखना अद्भुत परिणाम देता है। इससे घर के वास्तुदोष, तंत्र-मंत्र के प्रभाव, और अन्य नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। यदि यह साधना 108 दिनों तक की जाए और “काली कवच” का पाठ 9 बार प्रतिदिन किया जाए, तो यह साधना मूर्ख को भी विद्वान बना सकती है।

साधना विधि:

  1. प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को राहुकाल के समय माँ महाकाली का ध्यान करें।
  2. 9 दिन तक लगातार 9 दीपक जलाएं।
  3. 108 दिनों तक काली कवच का पाठ करें और दीपक जलाएं।

इससे घर-परिवार के सभी कष्ट, दुर्भाग्य, रोग, और तंत्र-मंत्र के दोष मिट जाते हैं। यह साधना इतना प्रभावी है कि मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है।

माँ की महिमा केवल उसके त्याग और ममता तक सीमित नहीं है। माँ महाकाली, जिनके दस भुजाएं हैं, दस दिशाओं और हमारे शरीर में मौजूद दस प्राणों की प्रतीक हैं। आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर में दस प्रकार की वायु कार्य करती हैं – प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, और धनंजय। यह दस प्राण हमारे शरीर को जीवन देते हैं, और माँ महाकाली इन सभी की संरक्षक मानी जाती हैं। वह न केवल शारीरिक शक्ति प्रदान करती हैं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का भी संचार करती हैं।

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माँ महाकाली की साधना से मन के सभी दोष – जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, और मत्सर – समाप्त हो जाते हैं। यह महामाया का ही प्रभाव है जो इस संसार को मोह और ममता के जाल में बांधकर चलायमान बनाए हुए है। तंत्रशास्त्रों में माँ काली को राहु की माँ “धूमेश्वरी” कहा गया है। यह माना जाता है कि सूर्य ग्रहण माँ काली की छाया से ही होता है। उनके संरक्षण में नकारात्मक शक्तियों का नाश और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

दुर्गा सप्तशती और अन्य प्राचीन ग्रंथों में माँ महाकाली को नवद्वार की रक्षक बताया गया है। मानव शरीर के नौ छिद्र, जिन्हें तंत्र में “नवद्वार” कहा गया है – दो आँखें, दो नाक, दो कान, मुख, गुदाद्वार, और मूत्रद्वार – ये सभी माँ दुर्गा के संरक्षण में हैं। शरीर रूपी दुर्ग की रक्षा करने के कारण उन्हें “दुर्गा” भी कहा जाता है।

माँ महाकाली की साधना नवरात्रि के दौरान विशेष महत्व रखती है। यह साधना न केवल तन और मन को शुद्ध करती है, बल्कि आत्मा को भी पुण्य और पवित्र बनाती है। माँ महाकाली की उपासना से जीवन के हर क्षेत्र में सफलता, शांति, और समृद्धि मिलती है। माँ का स्मरण करना, उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना, और उनकी साधना करना जीवन को सार्थकता प्रदान करता है।

माँ महाकाली की महिमा अनंत है। उन्होंने सृष्टि की रक्षा और अपने भक्तों की भलाई के लिए समय-समय पर अनेक रूप धारण किए। महर्षि मार्कंडेय ने देवी की बुद्धि और विवेक की स्तुति करते हुए कहा:
“या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।”

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यह मंत्र माँ की बुद्धि, विवेक, और शक्ति को समर्पित है। माँ महाकाली की साधना से तन, मन, और आत्मा को नई ऊर्जा मिलती है। उनकी पूजा हर भक्त को कष्टों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष के मार्ग पर ले जाती है।

इसलिए, माँ महाकाली को शत-शत नमन। उनकी कृपा से संसार का हर दुःख और कष्ट समाप्त हो सकता है। यदि इस लेख ने आपकी जिज्ञासा को बढ़ाया है और आप माँ महाकाली की साधना के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं, तो कमेंट करें। हम आपको माँ काली के मंत्र और साधना विधियों की पूरी जानकारी देंगे।

जय माँ महाकाली।

Shiv Chandra Jha Mo:- 9631487357 Shiv.Chandra@praysure.in

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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