मंगलवार व्रत कथा :- हिंदू धर्म में सप्ताह के सभी दिनों का अपना ही एक विशेष महत्व है और प्रत्येक दिन को अलग-अलग देवताओं की पूजा-अर्चना के लिए निर्धारित किया गया है। जैसे -सोमवार को शिव, मंगलवार को बजरंगबली, बुध को गणेश, गुरु को विष्णु और शुक्र को लक्ष्मी मां और शनिवार को शनिदेव की पूजा का विधान है। वहीं ज्योतिष के अनुसार, जिनकी कुंडली में मंगल ग्रह भारी होता है या फिर जीवन में कोई शुभ कार्य नहीं हो पा रहा है। ऐसे में आपको बजंरंगबली का व्रत विधिपूर्वक और श्रद्धा के साथ करना चाहिए ताकि हनुमान जी आपकी सभी मनोकामना को पूर्ण कर सकें।
मंगलवार व्रत कथा :-विधि
- इस व्रत में गेहूं और गुड़ का ही भोजन करना चाहिये।
- एक ही बार भोजन करें। नमक नहीं खाना है।
- लाल पुष्प चढ़ायें और लाल ही वस्त्र धारण करें।
- अंत में हनुमान जी की पूजा करें।
मंगलवार व्रत कथा :-
ऋषिनगर में केशवदत्त ब्राह्मण अपनी पत्नी अंजलि के साथ रहता था। केशवदत्त के घर में धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी। नगर में सभी केशवदत्त का सम्मान करते थे, लेकिन केशवदत्त संतान नहीं होने से बहुत चिंतित रहता था।
दोनों पति-पत्नी प्रति मंगलवार को हनुमानजी की पूजा करते थे। विधिवत मंगलवार का व्रत करते हुए कई वर्ष बीत गए। ब्राह्मण बहुत निराश हो गया, लेकिन उसने व्रत करना नहीं छोड़ा।
कुछ दिनों के बाद केशवदत्त हनुमानजी की पूजा करने के लिए जंगल में चला गया। उसकी पत्नी अंजलि घर में रहकर मंगलवार का व्रत करने लगी। दोनों पति-पत्नी पुत्र-प्राप्ति के लिए मंगलवार का विधिवत व्रत करने लगे। अंजलि ने अगले मंगलवार को व्रत किया लेकिन किसी कारणवश उस दिन अंजलि हनुमानजी को भोग नहीं लगा सकी और उस दिन वह सूर्यास्त के बाद भूखी ही सो गई।
अगले मंगलवार को हनुमानजी को भोग लगाए बिना उसने भोजन नहीं करने का प्रण कर लिया। छः दिन तक अंजलि भूखी-प्यासी रही। सातवें दिन मंगलवार को अंजलि ने हनुमानजी की पूजा की, लेकिन तभी भूख-प्यास के कारण अंजलि बेहोश हो गई।
हनुमानजी ने उसे स्वप्न में दर्शन देते हुए कहा- ‘उठो पुत्री! मैं तुम्हारी पूजा-पाठ से बहुत प्रसन्न हूँ। तुम्हें सुंदर और सुयोग्य पुत्र होने का वर देता हूं।’ यह कहकर हनुमानजी अंतर्धान हो गए। तत्काल अंजलि ने उठकर हनुमानजी को भोग लगाया और स्वयं भोजन किया।
हनुमानजी की अनुकम्पा से अंजलि ने एक सुंदर शिशु को जन्म दिया। मंगलवार को जन्म लेने के कारण उस बच्चे का नाम मंगलप्रसाद रखा गया। कुछ दिनों बाद अंजलि का पति केशवदत्त भी घर लौट आया। उसने मंगल को देखा तो अंजलि से पूछा- ‘यह सुंदर बच्चा किसका है?’ अंजलि ने खुश होते हुए हनुमानजी के दर्शन देने और पुत्र प्राप्त होने का वरदान देने की सारी कथा सुना दी। लेकिन केशवदत्त को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उसके मन में पता नहीं कैसे यह कलुषित विचार आ गया कि अंजलि ने उसके साथ विश्वासघात किया है। अपने पापों को छिपाने के लिए अंजलि झूठ बोल रही है।
केशवदत्त ने उस बच्चे को मार डालने की योजना बनाई। एक दिन केशवदत स्नान के लिए कुएं पर गया। मंगल भी उसके साथ था। केशवदत्त ने मौका देखकर मंगल को कुएं में फेंक दिया और घर आकर बहाना बना दिया कि मंगल तो कुएं पर मेरे पास पहुंचा ही नहीं। केशवदत्त के इतने कहने के ठीक बाद मंगल दौड़ता हुआ घर लौट आया।
केशवदत्त मंगल को देखकर बुरी तरह हैरान हो उठा। उसी रात हनुमानजी ने केशवदत्त को स्वप्न में दर्शन देते हुए कहा- ‘तुम दोनों के मंगलवार के व्रत करने से प्रसन्न होकर, पुत्रजन्म का वर मैंने दिया था। फिर तुम अपनी पत्नी पर शक क्यों करते हो?
उसी समय केशवदत्त ने अंजलि को जगाकर उससे क्षमा मांगते हुए स्वप्न में हनुमानजी के दर्शन देने की सारी कहानी सुनाई। केशवदत्त ने अपने बेटे को हृदय से लगाकर बहुत प्यार किया। उस दिन के बाद सभी आनंदपूर्वक रहने लगे।
मंगलवार का विधिवत व्रत करने से केशवदत्त और उनके सभी कष्ट दूर हो गए। इस तरह जो स्त्री-पुरुष विधिवत मंगलवार का व्रत करके व्रतकथा सुनते हैं, हनुमानजी उनके सभी कष्ट दूर करके घर में धन-संपत्ति का भंडार भर देते हैं। शरीर के सभी रक्त विकार के रोग भी नष्ट हो जाते हैं।
मंगलवार व्रत :-उद्देश्य
- सर्व सुख
- रक्त विकार
- राज्य
- सम्मान
- पुत्र प्राप्ति
इस कथा का मन्गलवार के दिन उपवास रखकर हि किया जाता हे जो अदभुत मंगल कारी हे ये कथा भग्वान श्री कृष्णा ने अभिमन्यु से कहि थी ।जो मनुष्य मंगलवार व्रत कथा को पढ़ता या सुनता है और नियम से व्रत रखता है। उसके हनुमान जी की कृपा से सब कष्ट दूर होकर सर्व सुख प्राप्त होता है।
मंगलवार आरती
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की
जाके बल से गिरिवर काँपे। रोग-दोष जाके निकट न झाँके ||1||
आरती कीजै…
अंजनि पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई।
दे बीड़ा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाये ||2||
आरती कीजै…
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवन सुत वार न लाई।
लंका जारि असुर संहारे। सियाराम जी के काज सँवारे ||3||
आरती कीजै…
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे। लाये संजिवन प्राण उबारे।
पैठि पाताल तोरि जम-कारे। अहिरावण की भुजा उखारे ||4||
आरती कीजै…
बाईं भुजा असुर संहारे। दाई भुजा सब सन्त उभरे ।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें। जय जय जय हनुमान उचारें ||5 ||
आरती कीजै…
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।
जो हनुमानजी की आरती गावे। बसी बैकुंठ परम पद पावे ||6 ||
आरती कीजै…
लंक विध्वंस किये रघुराई। तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई |
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला कीजाके ||
पं० दिवाकर झा (आचार्य ) ।। (मंगलवार व्रत कथा)
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