नास्ति एकादशी सम्: व्रत: (नारद पुराण ) – नारद पुराण में एकादसी व्रत की महिमा का बड़ा अच्छा वर्णन मिलता है | एकादसी व्रत करने से संसार के सभी प्राणियों का उद्धार सुनिश्चित है | अगर जो लोग इस व्रत को नहीं कर सकते वो केवल इसके कथा का भी पाठ कर ले तो वह अनंत फल के भागी होंगे यहां तक की कॆवल नाम उच्चारण मात्र सॆ और सुननॆ सॆ बहुत सॆ पाप नष्ट हॊ जातॆ है | मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है।
मोक्षदा एकादशी व्रत :-
नारद पुराण के अनुसार हिंदू धर्म में सभी एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
पद्मपुराणमें भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं-इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप-दीप आदि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए। मोक्षदाएकादशी बडे-बडे पातकों का नाश करने वाली है। इस दिन उपवास रखकर श्रीहरिके नाम का संकीर्तन, भक्तिगीत, नृत्य करते हुए रात्रि में जागरण करें।
पूर्वकाल में वैखानस नामक राजा ने पर्वत मुनि के द्वारा बताए जाने पर अपने पितरोंकी मुक्ति के उद्देश्य से इस एकादशी का सविधि व्रत किया था। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से राजा वैखानस के पितरोंका नरक से उद्धार हो गया। जो इस कल्याणमयीमोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। प्राणियों को भवबंधन से मुक्ति देने वाली यह एकादशी चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा पढने-सुनने से वाजपेययज्ञ का पुण्यफलमिलता है।
मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन ही कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीताका उपदेश दिया था। अत:यह तिथि गीता जयंती के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन से गीता-पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें तथा प्रतिदिन थोडी देर गीता अवश्य पढें। गीतारूपीसूर्य के प्रकाश से अज्ञानरूपीअंधकार नष्ट हो जाएगा।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा :-
मोक्षदा एकादशी की कथा इस प्रकार है। प्राचीन गोकुल नगर में वैखानस नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। एक रात्रि को स्वप्न में राजा ने अपने पिता को नर्क में पड़ा देखा, अपने पिता को इस प्रकार देख कर उसे बहुत दु:ख हुआ।
वह ब्राह्माणों के सामने अपनी स्वप्न के बारे कहता है कि पिता को इस प्रकार देख कर मुझे सभी ऐश्वर्य व्यर्थ महसूस हो रही है। आप लोग मुझे किसी प्रकार का उपाय बताएं, जिससे मेरे पिता को मुक्ति प्राप्त हो सके। राजा के ऐसे वचन सुनकर ब्राह्मण कहते हैं कि हे राजन! यहां पास में ही एक भूत-भविष्य के ज्ञाता एक ‘पर्वत’ नाम के मुनि रहते हैं। आप उनके पास जाएं, वह आपको इसके बारे में बताएंगे।
राजा यह सुनकर मुनि के आश्रम पर गए़ उस आश्रम में अनेकों मुनि शान्त होकर तपस्या कर रहे थे। राजा ने जाकर ऋषि को प्रणाम कर सारी बत उन्हें बताई। राजा की बात सुनकर मुनि ने आंखे बंद कर ली और कुछ देर बाद मुनि बोले कि आपके पिता ने अपने पिछले जन्म में एक दुष्कर्म किया था।
उसी पाप कर्म के फल से तुम्हारा पिता नर्क में गए हैं। इतना सुनकर राजा ने अपने पिता के उद्धार की प्रार्थना ऋषि से की। मुनि राजा की विनती पर बोले की मार्गशीर्ष मस के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी पड़ती है उस एकादशी का आप उपवास करें। उस एकादशी के पुण्य के प्रभाव से ही आपके पिता को मुक्ति मिलेगी। मुनि के वचनों को सुनकर उसने अपने परिवार सहित मोक्षदा एकादशी का उपवास किया। कहते हैं कि उस उपवास के पुण्य को राजा ने अपने पिता को दे दिया।
उस पुण्य के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई और वह स्वर्ग में जाते हुए अपने पुत्र से बोले, हे पुत्र! तुम्हारा कल्याण हों, इतना कहकर वे स्वर्ग चले गए।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा सम्पन्न
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