नित्य पूजा मंत्र

नित्य पूजा मंत्र

नित्य पूजा मंत्र – हिन्दू धर्म में सभी कष्टों के निवारण एवं ईश्वर प्राप्ति के लिए नित्य पुजा का मार्ग श्रेष्ट माना गया है। नित्य पूजन और नित्य पूजा मंत्र जपने से श्रद्धा और विश्वास का ही जन्म नही होता है अपितु मन में एकाग्रता और दृढ इच्छाशक्ति का संचार होता है और दृढ संकल्प से हम किसी भी तरह के कार्य को कर पाने में सक्षम हो पाते है।

नियमित उपासना के लिए पूजा-स्थली की स्थापना आवश्यक है। घर में एक ऐसा स्थान तलाश करना चाहिये जहाँ अपेक्षाकृत एकान्त रहता हो, आवागमन और कोलाहल कम-से-कम हो। ऐसे स्थान पर एक छोटी चौकी को पीत वस्त्र से सुसज्जित कर उस पर काँच से मढ़ा भगवान का सुन्दर चित्र स्थापित करना चाहिये। गायत्री की उपासना सर्वोत्कृष्ट मानी गई है। इसलिये उसकी स्थापना की प्रमुखता देनी चाहिये। यदि किसी का दूसरे देवता के लिये आग्रह हों तो उन देवता का चित्र भी रखा जा सकता है। शास्त्रों में गायत्री के बिना अन्य सब साधनाओं का निष्फल होना लिखा है। इसलिये यदि अन्य देवता को इष्ट माना जाय और उसकी प्रतिमा स्थापित की जाय तो भी गायत्री का चित्र प्रत्येक दशा में साथ रहना ही चाहिये।

|| ॐ परमात्मने: नमः ||

प्रात​: उठकर अपने दोनों हाथों को सामने फैलाकर निम्न श्लोक पढ़ते हुए अपने हथेलियों का दर्शन करें ।

कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती, करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम्  ॥

पृथ्वी से क्षमा प्रार्थना

समुद्रवसने देवि! पर्वतस्तनमण्डले, विष्णुपत्नि! नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ॥

स्नान मन्त्र

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

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यहाँ प्रमुख ईश्वर और उनसे सम्बंधित मंत्रो को बताया गया है श्रद्धानुसार अपने इष्टदेव के मंत्र को भाव विभोर होकर बोलना चाहिए

गणपति स्तोत्र

गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।

विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।
लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥

आदिशक्ति वंदना

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

शिव स्तुति

कर्पूर गौरम करुणावतारं,
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे,
भवं भवानी सहितं नमामि॥

विष्णु स्तुति

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

श्री कृष्ण स्तुति

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥

मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्‌।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥

श्रीराम वंदना

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

श्रीरामाष्टक

हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥

एक श्लोकी रामायण

आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥

सरस्वती वंदना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्याऽपहा॥

हनुमान वंदना

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥

शांति पाठ

ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

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ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ 

॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

नित्य पूजा मंत्र सावधानीयाँ

  1. चन्दन तांबे की कटोरी में न रखें।
  2. फूल पानी में न रखें, फूल टूटे न हों।
  3. पूजा के वर्तन तांबे या पीतल के हों।
  4. पूजा के समय लाल आसन(चटाई) में बैठें।
  5. पूर्वजों की तस्वीर हमेसा उत्तर की दिवार में लगाएं।
  6. पूजा के लिए हमेसा पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठे।
  7. घर में दो शंख रखने से कलह होता है! अत: एक शंख ही रखें।
  8. पूजा स्थान जहां देवी देवताओं के तस्वीर हैं वहां अपने पूर्वजों की तस्वीर न रखें।
  9. पूजा के समय साफ और धुले कपड़े पहनें! हो सके तो धोती, कुर्ते का उपयोग करें।
  10. पूजा में दो गणपतिजी, तीन शालिग्राम​, चार शिव लिंग न रखें! इनकी संख्या एक ही रहे तो लाभ मिलता है।

नित्य पूजा मंत्र कुछ निषेध बातें

  1. माता दुर्गा को दूब नहीं चढ़ाना चाहिए ।
  2. गणपती जी को तुलसी पत्र का भोग वर्जित है ।
  3. स्त्रियों को शंख नहीं बजाना चाहिए ।
  4. भगवान विष्णु को बिना तुलसी पत्र का भोग स्वीकार नहीं है ।
  5. स्त्रियाँ हनुमान चालीसा न पड़ें ऐसा किसी शास्त्र का आदेश नहीं, अत​: महिलाएं भी हनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं । 

वेद प्रकाश Team Praysure , 

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।