ॐ शब्द का महत्व

ॐ शब्द का महत्व

ॐ शब्द का महत्व – आधुनिक विज्ञान भी जब किसी वैदिक सत्य तक नहीं पहुँच पाते तो वह प्रभु की शरण में जाते हैं | विज्ञान का बड़ा से बड़ा काऋ भी पूजन – हवन के उपरांत ही शुरू होता है | आप ने सुना होगा इसरो जब भी अपना कोई नया प्रयोग या प्रक्षेपण करता है तो पहले भगवान की पूजा की जाती है | यहाँ तक की अमेरिकी एजेंसी नासा भी पहले उस परम सत्य को याद करता है तब जाकर कोई नया प्रोजेक्ट प्रारंभ करता है | अब बात करतें है ॐ शब्द के महत्व की तो सबसे पहले महान वैज्ञानिक भी इससे निकलने वाली ऊर्जा को अभी तक समझ नहीं पाये हैं |

ॐ शव्द ईश्वर प्रतीक है | ॐ का अगर संधि विच्छेद करें तो हमें तीन वर्ण प्राप्त होते हैं | उ + अ + म |

अब तीनों वर्णो के अभिप्राय: को समझते हैं | उ वर्ण उतपति का परिचायक है , अ – आकार का परिचायक है तथा म – मकार का परिचायक है | अर्थात ॐ शव्द प्रकर्ति के सभी नियमो का मुल में है (संदर्भ -शिव महापुराण ) | जगत का प्रत्येक पदार्थ उस ईश्वर की रचना है और जगत इसी ॐ का विस्तार है जिसे ब्रह्मांड  कहते हैं।

ॐ शब्द का वैज्ञानिक महत्व

ॐ शब्द इस दुनिया में किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है. ॐ के उच्चारण से ही शरीर के अलग अलग भागों मे कंपन शुरू हो जाती है जैसे की ‘अ’:- शरीर के निचले हिस्से में (पेट के करीब) कंपन करता है. ‘उ’– शरीर के मध्य भाग में कंपन होती है जो की (छाती के करीब) . ‘म’ से शरीर के ऊपरी भाग में यानी (मस्तिक) कंपन होती है. ॐ शब्द के उच्चारण से कई शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक लाभ मिलते हैं. अमेरिका के एक रेडियो पर सुबह की शुरुआत ॐ शब्द के उच्चारण से ही होती है.| यही कारण है की ॐ शव्द का योग के क्षेत्र में इतना महत्व दिया गया है | (संदर्भ – पतंजलि योग शास्त्र )

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ॐ शब्द त्रिदेव का परिचायक

ॐ शव्द त्रिदेव का परिचायक भी है | उ से उत्पती यानि की यह उतपति के देवता ब्रह्मा का सम्बोधन करता है वहीं अ से आकार यहाँ यह जगत के पालन हार भगवान विष्णु का सम्बोधन करता है और म से मकार यहां यह कालो के काल महाकाल शिव का सम्बोधन करता है | यानि की सारी सृष्टि का लय इस ॐ शव्द में ही है |

गवान श्रीकृष्ण कहते हैं-‘‘प्रणव: सर्ववेदषु’

सम्पूर्ण वेदों में ओंकार मैं हूं। ओम् की इसी महिमा को दृष्टि में रखते हुए हमारे धर्म ग्रंथों में इसकी अत्याधिक उत्कृष्टता स्वीकार की गई है। जाप-पूजा पाठ करने से पूर्व ओम् का उच्चारण जीवन में अत्यंत लाभदायक है। सभी वेदों का निष्कर्ष, तपस्वियों का तप एवं ज्ञानियों का ज्ञान इस एकाक्षर स्वरूप ओंकार में समाहित है।

गुरु नानक देव  जी भी कहते हैं –  एक ओम सतनाम , करता , पुरुख – ईश्वर एक है जिसका नाम ओम है ।   अतः ओम शब्द का वास्तविक अर्थ जानने – समझने  की  जिज्ञासा बहुत पहले से पाल  रखी थी।  जो भी धर्माचार्य – विद्वान व्यक्ति मिला उससे  समझने की कोशिश की।  परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के महामंडलेश्वर स्वामी असंगानंद महाराज जी  से कई बार मिला।  महर्षि दयानंद सरस्वती के ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश का  अध्यन  किया।  कई बार माण्डूक्योपनिषद पढ़ गया जो ओम पर ही है । “प्रणव बोध “, “ओमकार निर्ण निर्णय ”  ऐसी  पुस्तकें जो ओम पर लिखी गई  है , को  समझने की  कोशिश  की।

हिन्दू धर्म में भगवान को दो तरह से पूजा जाता है एक निर्गुण अर्थात जिनका ना कोई स्वरूप है और ना ही कोई नाम और दूसरा सगुण | इनमें ॐ ईश्वर के निर्गुण से संबंधित है । निर्गुण तत्त्व से ही पूरे सगुण ब्रह्मांड की निर्मित हुई है । इस कारण जब कोई ॐ का जप करता है, तब अत्यधिक शक्ति निर्मित होती है और यह ॐ शव्द का रहस्य है।

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ॐ शब्द का शारीरिक महत्व

बीमारी दूर भगाएँ :मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।

इसके लाभ :

  • Thyroid ग्रंथियां सर्वाधिक प्रभावित होती है और Thyroid से पीड़ित मनुष्यो को खासा लाभ होता है | यह Thyroid के दोनों रूपो Hypothyroid और Hyperthyroid दोनों में लाभदायक है |
  • इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी। जिससे Depression और Anxiety Disorder से ग्रसित मनुष्यों को और किसी प्रकार के उपचार की आवश्यकता नहीं होती है |
  • दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा । उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगो को लाभ मिलता है |
  • इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं।
  • काम करने की शक्ति बढ़ जाती है।

ॐ शब्द का वर्णन करना किसी मनुष्य द्वारा संभव नहीं है फिर भी मैंने यहां अपने अल्प ज्ञान से कुछ जानकारियाँ साझा की है | अगर इसमे किसी प्रकार की त्रुटि हो तो हमें अवश्य सूचित करें | 

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।