पौष पूर्णिमा व्रत विधि व महत्व

पौष पूर्णिमा व्रत

पौष पूर्णिमा

पौष पूर्णिमा व्रत -भारतीय जनजीवन में पूर्णिमा व अमावस्या का अत्यधिक महत्व है। अमावस्या को कृष्ण पक्ष तो पूर्णिमा को शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन होता है। लोग अपने-अपने तरीके से इन दिनों को मनाते भी हैं। पूर्णिमा यानि पूर्णो मा:। मास का अर्थ होता है चंद्र। अर्थात जिस दिन चंद्रमा का आकार पूर्ण होता है उस दिन को पूर्णिमा कहा जाता है। और जिस दिन चांद आसमान में बिल्कुल दिखाई न दे वह स्याह रात अमावस्या की होती है। हर माह की पूर्णिमा पर कोई न कोई त्यौहार अवश्य होता है। लेकिन पौष और माघ माह की पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व माना गया है, विशेषकर उत्तर भारत में हिंदूओं के लिए यह बहुत ही खास दिन होता है। आप भी अपने दिन को खास बना सकते हैं भारत के बेहतरीन ज्योतिषाचार्यों से बात करके आज ही

पौष पूर्णिमा का महत्व

पौष माह की पूर्णिमा को मोक्ष की कामना रखने वाले बहुत ही शुभ मानते हैं। क्योंकि इसके बाद माघ महीने की शुरुआत होती है। माघ महीने में किए जाने वाले स्नान की शुरुआत भी पौष पूर्णिमा से ही हो जाती है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन विधिपूर्वक प्रात:काल स्नान करता है वह मोक्ष का अधिकारी होता है। उसे जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुटकारा मिल जाता है अर्थात उसकी मुक्ति हो जाती है। चूंकि माघ माह को बहुत ही शुभ व इसके प्रत्येक दिन को मंगलकारी माना जाता है इसलिए इस दिन जो भी कार्य आरंभ किया जाता है उसे फलदायी माना जाता है। इस दिन स्नान के पश्चात क्षमता अनुसार दान करने का भी महत्व है।

1. सूर्य और चंद्रमा का मिलन

पौष पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्रमा एक साथ होते हैं, जो एक दुर्लभ संयोग माना जाता है। इस दिन दोनों देवताओं की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

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2. पापों का नाश

पौष पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और दान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

3. मनोकामनाओं की पूर्ति

इस दिन की गई पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

4. माघ मेले का आरंभ

पौष पूर्णिमा के दिन से ही माघ मेले का आरंभ होता है। माघ मेला भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान करने और धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए आते हैं।

5. देवताओं की कृपा

पौष पूर्णिमा के दिन देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन की गई पूजा से देवता प्रसन्न होते हैं और भक्तों को विशेष आशीर्वाद मिलता है।

पौष पूर्णिमा की पूजा विधि

1. स्नान

पौष पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इससे पापों का नाश होता है और आत्मा शुद्ध होती है।

2. दान

इस दिन दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। विशेषकर तिल और कंबल का दान करना शुभ माना जाता है। यह धार्मिक क्रियाएँ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं।

3. पूजा

इस दिन सूर्य देव और चंद्रमा की पूजा की जाती है। भक्त उन्हें अर्ध्य अर्पित करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए विभिन्न मंत्रों का जाप करते हैं।

4. मंत्र जाप

इस दिन सूर्य और चंद्र मंत्रों का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है। मंत्रों का उच्चारण शुद्ध और एकाग्रता के साथ करना चाहिए।

कहां करें स्नान

बनारस के दशाश्वमेध घाट व प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर पर डुबकी लगाना बहुत ही शुभ व पवित्र माना जाता है। प्रयाग में तो कल्पवास कर लोग माघ माह की पूर्णिमा तक स्नान करते हैं। जो लोग प्रयाग या बनारस तक नहीं जा सकते वे किसी भी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करते हुए प्रयागराज का ध्यान करें।

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पौष पूर्णिमा व्रत विधि व महत्व कथा:

प्राचीन समय में एक ब्राह्मण अपने घर में खुशहाल जीवन जी रहा था, लेकिन उसे किसी बात की चिंता हमेशा सताती थी। वह सोचता था कि उसे किस प्रकार से जीवन में सही मार्गदर्शन मिलेगा और उसके पुण्य में वृद्धि होगी। एक दिन उसने देखा कि लोग पौष पूर्णिमा के दिन स्नान करने के बाद व्रत और पूजा करते हैं, जिससे उनका जीवन सुखमय हो जाता है।

ब्राह्मण ने भी संकल्प लिया कि वह पौष पूर्णिमा का व्रत करेगा। वह अपने घर से बाहर एक पवित्र नदी के किनारे गया और वहां स्नान करने के बाद व्रत और पूजा की। इस दिन विशेष रूप से गोधूलि वेला में व्रति को शीतल जल में स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए और फिर श्रद्धा पूर्वक भगवान श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन का दान देना चाहिए।

ब्राह्मण ने यही किया, और उसके जीवन में बदलाव आ गया। उसकी दरिद्रता दूर हो गई, और वह समृद्ध हो गया। वह दिन रात भगवान की भक्ति में मग्न रहने लगा। उसके जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति हुई।

उपदेश: पौष पूर्णिमा का व्रत विशेष रूप से पुण्य और शांति का व्रत माना जाता है। यह दिन दान, तपस्या, स्नान और भगवान के प्रति भक्ति के लिए बहुत शुभ है। इस दिन उपवास रखने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है।

कृपया ध्यान दें: इस दिन व्रत करने से संयम, धैर्य और पुण्य की वृद्धि होती है, जिससे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होते हैं।

पौराणिक संदर्भ

पौष पूर्णिमा का उल्लेख कई पुराणों में मिलता है। माना जाता है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर आकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।

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पौष पूर्णिमा के लाभ

  • शारीरिक स्वास्थ्य: पौष पूर्णिमा के दिन स्नान करने से शरीर स्वस्थ रहता है।
  • मानसिक शांति: इस दिन पूजा करने से मन शांत होता है।
  • आध्यात्मिक विकास: पौष पूर्णिमा के दिन आध्यात्मिक विकास होता है।
  • सुख-समृद्धि: इस दिन की गई पूजा से सुख-समृद्धि आती है।

निष्कर्ष

पौष पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन सूर्य देव और चंद्रमा की पूजा करने से कई लाभ प्राप्त होते हैं। यह एक ऐसा अवसर है जब हम देवताओं के करीब आ सकते हैं और आध्यात्मिक विकास कर सकते हैं।

इस दिन के त्यौहार

पौष पूर्णिमा के दिन ही शाकंभरी जयंती भी मनाई जाती है। जैन धर्म के मानने वाले पुष्याभिषेक यात्रा की शुरुआत भी इसी दिन करते हैं। वहीं छत्तीसगढ के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले आदिवासी इसी दिन छेरता पर्व भी मनाते हैं।

पंडित Shiv Chandra Jha मो:- 9631487357 KB:- अहोई अष्टमी व्रत

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।