पूजनार्थ हेतु पुष्प, बिल्व पत्र, तुलसीदल आदि तोड़ने से अर्पण करने तक के समस्त विधान !

पूजनार्थ हेतु पुष्प, बिल्व पत्र, तुलसीदल आदि तोड़ने से अर्पण करने तक के समस्त विधान !

जानिए पूजनार्थ हेतु पुष्प, बिल्व पत्र, तुलसीदल आदि तोड़ने से अर्पण करने तक के समस्त विधान !

1. पूजन हेतु पुष्प विधान –

सनातन धर्म में प्रातः कालिक स्नानादि कृत्यों के बाद देव-पूजा का प्रमुख विधान है। एतदर्थ स्नान के बाद पूजन हेतु तुलसी, बिल्वपत्र और पुष्प/फूल तोड़ने चाहिये। यहां हारीतका वचन ध्यान करने योग्य है-

स्नानं कृत्वा तु ये केचित् पुष्पं चिन्वन्ति मानवाः।
देवतास्तन्न गृह्णन्ति भस्मीभवति दारुवत् ॥

स्नान कर फूल न तोड़े, क्योंकि ऐसा करने से देवता इसे स्वीकार नहीं करते। इस शब्दार्थ से आपाततः प्रतीत होने लगता है कि सबेरे उठकर स्नान करने के पहले ही फूल तोड़ लें। किंतु इस श्लोक का यह तात्पर्य नहीं है। निबन्धकारों ने निर्णय दिया है कि यहाँ ‘स्नान’ का तात्पर्य ‘मध्याह्न-ज्ञान’ है। फलितार्थ होता है कि मध्याह्न स्नान के बाद फूल तोड़ना मना है, इसके पहले ही प्रातःस्नान के बाद तोड़ ले।

(क) स्नानम्, प्रातः स्नानातिरिक्तम्,
स्रानोत्तरं प्रातः पुष्पाहरणादिविधानात्। (वीरमित्रोदय, पूजाप्रकाश, पृ० ५८)
(ख) तन्मध्याह्नस्नानपरम्। (आचारेन्दु, पृ० १५०)
(ग) रुद्रधरका मत है-
अस्नात्वा तुलसीं छित्त्वा देवतापितृकर्मणि।
तत्सर्वं निष्फलं याति पञ्चगव्येन शुद्धयति ॥

इस पद्मपुराण के वचनमें ‘तुलसी’ पद पुष्प आदि का उपलक्षक है। अतः इस वचन से सिद्ध होता है कि स्नान किये बिना ही यदि तुलसीदल, फूल आदि तोड़ लिये जाय तो पाप लगता है, जिसकी शुद्धि पञ्चगव्यसे हो सकती है-

‘अत्र तुलसीपदं पुष्पमात्रपरम्।
शिष्टाचारानुरोधादिति रुद्रबरः।’ (आचारेन्दु, पृ० १५०)

(घ) दक्ष ने समिधा, फूल आदि का समय संध्या के बाद दिन का दूसरा भाग माना है।
दिन को आठ भागोंमें बाँटा गया है- ‘समित्पुष्पकुशादीनां स कालः परिकीर्तितः।

पुष्प तोड़ने का मन्त्र ┄

पुष्प पत्र आदि तोड़ने से पहले हाथ-पैर धोकर आचमन कर ले। पूरब की ओर मुँहकर हाथ जोड़कर मन्त्र बोले-

मा नु शोकं कुरुष्व त्वं स्थानत्यागं च मा कुरु ।
देवतापूजनार्थाय प्रार्थयामि वनस्पते ।।

पहला फूल तोड़ते समय ‘ॐ वरुणाय नमः’, दूसरा फूल तोड़ते समय ‘ॐ व्योमाय नमः’ और तीसरा फूल तोड़ते समय ‘ॐ पृथिव्यै नमः’ बोले ।

तुलसीदल चयन ┄

स्कन्दपुराण का वचन है कि जो हाथ पूजार्थ तुलसी चुनते हैं, वे धन्य है-

तुलसीं ये विचिन्वन्ति धन्यास्ते करपल्लवाः।

तुलसी का एक-एक पत्ता न तोड़कर पत्तियों के साथ अग्रभाग को तोड़ना चाहिये। तुलसी की मञ्जरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है। मञ्जरी तोड़ते समय उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक माना गया है। निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर पूज्यभाव से पौधे को हिलाये बिना तुलसी के अग्रभाग को तोड़े। इससे पूजा का फल लाख गुना बढ़ जाता है।

See also  स्वस्तिक मंत्र

(क) मञ्जर्या पत्रसाहित्यमपेक्षितम्। (वीरमित्रोदय, पूजाप्रकाश)
(ख) अभिन्नपत्रां हरितां हृद्यमञ्जरिसंयुताम् । क्षीरोदार्णवसम्भूतां तुलसी दापयेद्धरिम् ॥ (ब्रह्मपुराण)
(ग)मन्त्रेणानेन यः कुर्याद् गृहीत्वा तुलसीदलम् । पूजनं वासुदेवस्य लक्षपूजाफलं लभेत् ।। (पद्मपुराण)

तुलसी-दल तोड़ने के मन्त्र ┄

तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिया ।
चिनोमि केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने ।
त्वदङ्गसम्भवैः पत्रैः पूजयामि यथा हरिम् ।
तथा कुरु पवित्राङ्गि ! कलौ मलविनाशिनि (आह्निकसूत्रावली)

तुलसीदल चयन में निषिद्ध समय ┄⊰

वैधृति और व्यतीपात- इन दो योगों में, मंगल, शुक्र और रवि इन तीन वारों में, द्वादशी, अमावास्या एवं पूर्णिमा इन तीन तिथियों में, संक्रान्ति और जननाशौच तथा मरणाशौच में तुलसीदल तोड़ना मना है।

वैधृतौ च व्यतीपाते भीमभार्गवभानुषु।
पर्वद्वये च संक्रान्तौ द्वादश्यां सूतके द्वयोः ॥
(निर्णयसिन्धु, परिच्छेद ३, स्मृतिसारो)

संक्रान्ति, अमावास्या, द्वादशी, रात्रि और दोनों संध्यायों में भी तुलसीदल न तोड़े,
संक्रान्तौ कृष्णपक्षान्ते द्वादश्यां निशि संध्ययोः ।
नच्छिन्द्यात्…………।। (विष्णुधर्मोत्तर)

किंतु तुलसी के बिना भगवान्‌की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती, अतः निषिद्ध समय में तुलसी वृक्ष से स्वयं गिरी हुई पत्ती से पूजा करे, (पहले दिन के पवित्र स्थान पर रखे हुए तुलसीदल से भी भगवान्‌ की पूजा की जा सकती है)।

निषिद्धे दिवसे प्राप्ते गृह्णीयाद् गलितं दलम्।
तेनैव पूजां कुर्वीत न पूजा तुलसीं विना ॥
(वाराहपुराण)

शालग्राम की पूजा के लिये निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी तोड़ी जा सकती हैं।

शालग्रामशिलार्धार्थ प्रत्यहं तुलसीक्षितौ ।
तुलसीं ये विचिन्वन्ति धन्यास्ते करपल्लवाः ।।
सङ्‌ङ्कान्त्यादौ निषिद्धेऽपि तुलस्यवत्त्रयः स्मृतः ।
(आह्निकसूत्रावली)

बिना स्नान के और जूता पहनकर भी तुलसी न तोड़े ।
अस्नात्वा तुलसीं छित्वा सोपानत्कस्तथैव च ।
स याति नरकं घोरं यावदाभूतसम्प्लवम् ॥ (पद्मपुराण)

बिल्वपत्र तोड़ने का मन्त्र ┄⊰

अमृतोद्भव ! श्रीवृक्ष ! महादेवप्रियः सदा ।
गृह्णामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात् ।। (आचारेन्दु)

बिल्वपत्र तोड़ने का निषिद्ध काल ┄⊰

चतुर्थी, अष्टमी, नवमी,चतुर्दशी और अमावास्या तिथियों को, संक्रान्ति के समय और सोमवार को बिल्वपत्र न तोड़े।

अमारिक्तासु संक्रान्त्यामष्टम्यामिन्दुवासरे ।
बिल्वपत्रं न च छिन्द्याच्छिन्द्याच्चेन्नरकं व्रजेत् ।। (लिङ्गपुराण)

किंतु बिल्वपत्र शङ्कर जी को बहुत प्रिय है, अतः निषिद्ध समय में पहले दिन का रखा बिल्वपत्र चढ़ाना चाहिये। शास्त्र ने तो यहाँ तक कहा है कि यदि नूतन बिल्वपत्र न मिल सके तो चढ़ाये हुए बिल्वपत्र को ही धोकर बार-बार चढ़ाता रहे।

अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुनः पुनः ।
शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि क्वचित् ॥
(स्कन्दपु आचारेन्दु, पृ १६५)

बासी जल, फूल का निषेध –

जो फूल, पत्ते और जल बासी हो गये हों, उन्हें देवताओं पर न चढ़ाये। किंतु तुलसीदल और गङ्गाजल बासी नहीं होते। तीर्थो का जल भी बासी नहीं होता।

See also  पत्नी प्राप्ति मंत्र

न पर्युषितदोषोऽस्ति तीर्थतोयस्य चैव हि। (स्मृतिसारावली)

वस्त्र, यज्ञोपवीत और आभूषण में भी निर्माल्य का दोष नहीं आता।

न निर्माल्यं भवेद वस्त्रं स्वर्णरलादिभूषणम्। (आचारत्न)
माली के घर में रखे हुए फूलों में बासी दोष नहीं आता।
न पर्युषितदोषोऽस्ति मालाकारगृहेषु च। (आचारेन्दु पृष्ठ १६३)

दौना तुलसी की ही तरह एक पौधा होता है। भगवान् विष्णु को यह बहुत प्रिय है। स्कन्दपुराण में आया है कि दौना की माला भगवान्‌ को इतनी प्रिय है कि वे इसे सूख जाने पर भी स्वीकार कर लेते हैं।

तस्य माला भगवतः परमप्रीतिकारिणी ।
शुष्का पर्युषिता वापि न दुष्टा भवति क्वचित् ।।

मणि, रत्न, सुवर्ण, वस्त्र आदि से बनाये गये फूल बासी नहीं होते। इन्हें प्रोक्षण कर चढ़ाना चाहिये।

मणिरत्नसुवर्णादिनिर्मितं कुसुमोत्तमम् ।
तत्परं कुसुम प्रोक्तमपरे चित्रवखजम् ॥
पराणामपराणां च निर्माल्यत्वं न विद्यते । (तत्त्वसागरसंहिता)

नारदजीने ‘मानस’ (मन के द्वारा भावित) फूल को सबसे श्रेष्ठ फूल माना है।

तस्मान्यानसमेवातः शस्ते पुष्पं मनीषिणाम् । (तत्त्वसागरसंहिता)

उन्होंने देवराज इन्द्र को बतलाया है कि हजारों-करोड़ों बाह्य फूलों को चढ़ाकर जो फल प्राप्त किया जा सकता है, वह केवल एक मानस-फूल चढ़ाने से प्राप्त हो जाता है।

इससे मानस-पुष्प ही उत्तम पुष्प है। बाह्य पुष्प तो निर्माल्य भी होते हैं। मानस-पुष्प में बासी आदि कोई दोष नहीं होता। इसलिये पूजा करते समय मन से गढ़कर फूल चढ़ाने का अद्भुत आनंद प्राप्त करना चाहिए।

बाह्यपुष्पसहस्राणां सहस्रायुतकोटिभिः ।
पूजिते यत्फलं पुंसां तत्फलं त्रिदशाधिप ।
मानसेनैकेन पुष्पेण विद्वानाप्नोत्यसंशयम् ॥
(तत्त्वसागर, बीर, पूजा पृ० ५७)

सामान्यतया निषिद्ध पुष्प/फूल ┄

यहाँ उन निषेधों को दिया जा रहा है जो सामान्यतया सब पूजा में सब फूलों पर लागू होते हैं। भगवान् पर चढ़ाया हुआ फूल ‘निर्माल्य’ कहलाता है, सूँघा हुआ या अङ्ग में लगाया हुआ फूल भी इसी कोटि में आता है। इन्हें न चढ़ाये।

निर्माल्यं द्विविधं प्रोक्तमुत्सृष्टं घातमेव च ।
न क्रियान्तरयोग्यं तत् सर्वथा त्याज्यमेव हि ।।(तत्त्वसारारसंहिता)

आध्रातैरङ्गसंसृष्टैः । (विष्णुधमोंत्तर)

भौरे के सूँघने से फूल दूषित नहीं होता।
मुक्त्वा भ्रमरमेकं तु (विष्णुधर्मोत्तर)

फूल अपवित्र बर्तनमें रख दिया गया हो, अपवित्र स्थान में उत्पन्न हो, आग से झुलस गया हो, कीड़ों से विशुद्ध हो, सुन्दर न हो, जिसकी पंखुड़ियाँ बिखर गयी हों, जो पृथ्वी पर गिर पड़ा हो, जो पूर्णतः खिला न हो, जिसमें खट्टी गंध या सड़ांध आती हो, निर्गन्ध हो या उग्र गन्धवाला हो, ऐसे पुष्पों को नहीं चढ़ाना चाहिये। जो फूल बायें हाथ, पहनने वाले अधोवस्त्र, आक और रेंड़ के पत्ते में रखकर लाये गये हों, वे फूल त्याज्य हैं।

See also  नित्य पूजा मंत्र

करानीतं पटानीतमानीतं चार्कपत्रके ।
एरण्डपत्रेऽप्यानीतं तत् पुष्यं सकले त्यजेत् ॥
(करोऽयं वामः, पटः अधोवस्त्रम्) (वीर मि पू प्र पृ०६०)

कलियों को चढ़ाना मना है, किंतु यह निषेध कमल पर लागू नहीं है।

मुकुलैर्नार्चयेद्देवं पङ्कजैर्जलजैर्विना । (स्मृतिसरावली)

फूलको जलमें डुबाकर धोना मना है। केवल जल से इसका प्रोक्षण कर देना चाहिये।

गन्धोदकेन चैतानि त्रिः प्रोक्ष्यैव प्रपूजयेत् । (तत्वसारसंहिता)

पुष्यादि चढ़ाने की विधि ┄

फूल, फल और पत्ते जैसे उगते हैं, वैसे ही इन्हें चढ़ाना चाहिये।
यथोत्पन्नं तथार्पणम् । (तृचभास्कर)
उत्पन्न होते समय इनका मुख ऊपर की ओर होता है, अतः चढ़ाते समय इनका मुख ऊपर की ओर ही रखना चाहिये। इनका मुख नीचे की ओर न करे।

पत्रं वा यदि वा पुष्यं फलं नेष्टपघोमुखम् ।
दूर्वा एवं तुलसीदल को अपनी ओर और बिल्वपत्र नीचे मुखकर चढ़ाना चाहिये।
दुर्वाः स्वाभिमुखाग्राः स्युर्बिल्वपत्रमधोमुखम् ॥ (तृचभास्कर)
तुलस्यादिपत्रम् आत्माभिमुखं न्युब्जमेव समर्पणीयम् । (प्रतिष्ठासारदीपिका)
इनसे भिन्न पत्तों को ऊपर मुखकर या नीचे मुखकर दोनों ही प्रकार से चढ़ाया जा सकता है।
इतरपत्राणामप्यूर्ध्वमुखाधोमुखमनयोर्विकल्पः (आचारेन्दु)
दाहिने हाथ के करतल को उत्तान कर मध्यमा, अनामिका और अँगूठे की सहायता से फूल चढ़ाना चाहिये।
मध्यमानामिकाङ्‌गुष्ठैः पुष्पं संगृह्य पूजयेत् । (चिंतामणि)

उतारने की विधि ┄

चढ़े हुए फूल को अँगूठे और तर्जनी की सहायता से उतारे।
अंङ्गुष्ठेतर्जनीभ्यां तु निर्माल्यमपनोदयेत् । (कालिकापुराण)

श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः

Team Praysure पूजनार्थ हेतु पुष्प, बिल्व पत्र, तुलसीदल आदि तोड़ने से अर्पण करने तक के समस्त विधान !

नम्र निवेदन :- प्रभु की कथा से यह भारत वर्ष भरा परा है | अगर आपके पास भी हिन्दू धर्म से संबधित कोई कहानी है तो आप उसे प्रकाशन हेतु हमें भेज सकते हैं | अगर आपका लेख हमारे वैबसाइट के अनुकूल होगा तो हम उसे अवश्य आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे |

अपनी कहानी यहाँ भेजें | Praysure को Twitter पर फॉलो, एवं Facebook पेज लाईक करें |

प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।