शंख की उत्पत्ति कैसे हुई ?
शंख भारतीय संस्कृति और धर्म में एक अत्यंत पवित्र और पूजनीय वस्तु है। इसका उपयोग विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा, और अन्य आध्यात्मिक गतिविधियों में किया जाता है। शंख को देवताओं की कृपा प्राप्त करने, नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने, और आध्यात्मिक शुद्धता प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना गया है। भारतीय धर्मग्रंथों में शंख की उत्पत्ति से जुड़ी कई रोचक और प्रेरणादायक कथाएं मिलती हैं। यह लेख शंख की उत्पत्ति, इसके धार्मिक महत्व, और इससे जुड़े पौराणिक संदर्भों पर प्रकाश डालता है।। प्राचीन काल में शंख सब घरों में होता था। इसे दैनिक पूजा-अर्चना में स्थान दिया गया हैं। (शंख की उत्पत्ति कैसे हुई ?)
शंख की उत्पत्ति कैसे हुई ? :-
शंख की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन सबसे प्रमुख कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है।
1. समुद्र मंथन और शंख की उत्पत्ति
पुराणों के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया गया, तब उसमें से 14 रत्न निकले। इन रत्नों में से एक शंख भी था। शंख को भगवान विष्णु ने अपने पास रखा, क्योंकि यह देवताओं के लिए शक्ति, विजय, और शुद्धता का प्रतीक था। ऐसा कहा जाता है कि शंख के उद्घोष से वातावरण शुद्ध होता है और दुष्ट शक्तियां दूर भागती हैं।
समुद्र मंथन की इस कथा में शंख का प्रकट होना इसे अत्यंत पवित्र बनाता है। यह कथा यह भी दर्शाती है कि शंख न केवल धार्मिक उपयोग के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सृष्टि के निर्माण और कल्याण का भी प्रतीक है।
2. भगवान विष्णु और शंख
शंख का संबंध भगवान विष्णु से भी जोड़ा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने शंख को अपने हाथों में धारण किया और इसे “पांचजन्य” नाम दिया। जब भी भगवान विष्णु किसी युद्ध या धर्म की स्थापना के लिए जाते थे, तो वह अपने शंख को बजाते थे। उनके शंखनाद से पूरी सृष्टि में शांति और धर्म का संदेश फैलता था।
शंख का यह पौराणिक महत्व इसे विष्णु भक्तों के लिए एक अनिवार्य पूजा सामग्री बनाता है। विष्णु के साथ-साथ भगवान कृष्ण भी अपने शंख “पांचजन्य” के लिए प्रसिद्ध हैं। महाभारत के युद्ध में जब श्रीकृष्ण ने अपना शंख बजाया, तो यह धर्म और विजय का प्रतीक बन गया।
3. शिव और शंख का संबंध
हालांकि शंख का मुख्य संबंध भगवान विष्णु से है, फिर भी इसे शिव पूजा में भी महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसा माना जाता है कि शंख का ध्वनि शिवजी को प्रिय है और यह उनकी पूजा के दौरान वातावरण को पवित्र बनाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव ने समुद्र मंथन के दौरान विषपान किया, तो देवताओं ने शंख की ध्वनि से वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर दिया।
4. दक्ष प्रजापति की कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, शंख दक्ष प्रजापति के पुत्र थे। दक्ष प्रजापति के पुत्र शंख अत्यंत तपस्वी और धर्मपरायण थे। उन्होंने कठोर तपस्या के द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न किया। शिवजी ने उन्हें यह वरदान दिया कि वे पूजा में सदैव पूजनीय रहेंगे और उनकी ध्वनि से संसार में शांति और कल्याण का संदेश फैलेगा।
शंख के प्रकार: शंख की उत्पत्ति कैसे हुई ?
यह मुख्यतः दो प्रकार का-दक्षिणावर्ती तथा वामवर्ती होता है। दक्षिणावर्ती शंख का पेट दक्षिण की ओर खुला होता है। यह बजाने के काम में नहीं आता क्योंकि इसका मुंह बन्द होता है। इसका बजना अशुभ माना जाता है। इसका प्रयोग अघ्य देने के लिए विशेषतः किया जाता है।
वामवर्ती शंख का पेट बायीं ओर खुला होता है। इसको बजाने के लिए छिद्र होता है। इसकी ध्वनि से रोगोत्पादक कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं और अनेकानेक बीमारियां भाग खड़ी होती हैं। यह जिस घर में रहता है, वहां लक्ष्मी का निवास माना जाता है।
शंखनाद का हमारे जीवन में प्रभावः
अथर्ववेद के अनुसार शंख-ध्वनि व शंख जल के प्रभाव से बाधा आदि अशान्ति कारक तत्वों का पलायन हो जाता है। रणवीर भक्ति रत्नाकर में शंखनाद के विषय में लिखा गया है कि ध्वनि (नाद) से बड़ा कोई मंत्र नहीं है। ध्वनि के निस्सारण की विधि जानकर उसका यथोचित समय पर प्रयोग करने के समान कोई पूजा नहीं है। विधि विहीन स्वर हानिप्रद भी हो सकता है।
1. पूजा में उपयोग
शंख को पूजा-अर्चना में विशेष स्थान प्राप्त है। इसे मुख्य रूप से भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा में उपयोग किया जाता है। शंख का जल बहुत पवित्र माना जाता है और इसे अभिषेक के लिए उपयोग किया जाता है।
2. शंखध्वनि का महत्व
शंखध्वनि को अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि शंख की ध्वनि से वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसके अलावा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शंख की ध्वनि वायुमंडल को शुद्ध करती है और कई सूक्ष्म जीवों को समाप्त करती है।
3. धन और समृद्धि का प्रतीक
शंख को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। इसे घर में रखने और नियमित रूप से पूजा करने से धन, समृद्धि, और खुशहाली आती है। दक्षिणावर्ती शंख (जिसका मुंह दाईं ओर खुलता है) विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
4. युद्ध और विजय का प्रतीक
महाभारत के युद्ध में शंख को विजय और धर्म का प्रतीक माना गया। पांडवों के पास उनके विशेष शंख थे, जिनके नाम थे:
- अर्जुन: देवदत्त
- भीम: पौण्ड्र
- युधिष्ठिर: अनंतविजय
जब ये शंख बजाए जाते थे, तो उनकी ध्वनि से शत्रु भयभीत हो जाते थे और अपने मनोबल को खो देते थे।
शंख पर प्रसिद्ध वैज्ञानिक वैज्ञानिक आचार्य जगदीश चन्द्र बोस का मत
विश्वविख्यात भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु ने अपने यंत्रों द्वारा यह खोज की थी कि एकबार शंख फूंकने पर उसकी ध्वनि जहाँ तक जाती है, वहाँ तक अनेक बीमारियों के कीटाणु ध्वनि स्पंदन से वे मूर्छित हो जाते हैं। यदि निरन्तर प्रतिदिन यह क्रिया चालू रखी जाय तो फिर वहाँ का वायुमंडल ऐसे कीटाणुओं से सर्वथा मुक्त हो जाता है।
शंख ध्वनि से क्षयरोग, हैजा आदि के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार प्रति सैकेण्ड 27 घनफुट वायु शक्ति की तीव्रता से बजाये हुए शंख के प्रभाव से 1200 घनफुट दूरी तक स्थित कीटाणु समाप्त हो जाते हैं जबकि 260 घनफुट दूर तक के कीटाणु का नाश होता हैं।
शंख और ज्योतिष
शंख को ज्योतिष में भी अत्यधिक महत्व दिया गया है। इसे वास्तु दोष को दूर करने, ग्रह दोषों को शांत करने, और परिवार में शांति लाने के लिए उपयोग किया जाता है।
- दक्षिणावर्ती शंख को घर में रखने से धन की वृद्धि होती है।
- नियमित रूप से शंख बजाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- इसे मुख्य रूप से पूजाघर या तिजोरी में रखा जाता है।
उपसंहार
शंख भारतीय संस्कृति, धर्म, और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। इसकी उत्पत्ति से लेकर इसके उपयोग तक, हर पहलू इसे एक पवित्र और विशेष वस्तु बनाता है। चाहे वह पौराणिक कथाओं में वर्णित हो, धार्मिक अनुष्ठानों में इसका महत्व हो, या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसके लाभ हों, शंख हर दृष्टि से मूल्यवान है।
हमारी परंपरा और संस्कृति में शंख न केवल एक प्रतीक है, बल्कि यह जीवन में शांति, समृद्धि, और सकारात्मकता लाने का माध्यम भी है। यह हमें सिखाता है कि पवित्रता, शुद्धता, और ईश्वर के प्रति श्रद्धा ही सच्चे जीवन का मार्ग है।
आचार्य आस्तिक कुमार झा वेद ज्योतिष कर्मकाण्ड विशेषज्ञ https://www.facebook.com/acharyaaastikkumar.jha KB:- शंख की उत्पत्ति कैसे हुई ? | Image Credit – Google
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