संतोषी माता कौन हैं ?

संतोषी माता कौन हैं ?

संतोषी माता कौन हैं – भारतीय संस्कृति में देवी-देवताओं के असंख्य रूपों की पूजा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। मार्क्ण्डेय पुराण में देवी दुर्गा के सहस्रनाम (हजार नामों) का उल्लेख मिलता है, जिससे यह पता चलता है कि प्रत्येक नाम देवी के गुण, स्थान, या किसी विशेष शक्ति का प्रतीक है। जैसे वैष्णो देवी, ज्वाला देवी, कामाख्या देवी, और चिंतपूर्णी देवी, जो अपने स्थान, गुण, या चमत्कारिक कथाओं के कारण पूजनीय हैं।

संतोषी माता भी एक ऐसे ही श्रद्धा के प्रतीक के रूप में हैं। हालांकि शास्त्रों में संतोषी माता का सीधा उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन उनकी पूजा और आराधना करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है और कई लोग इनकी आराधना से लाभांवित हुए हैं ।

सतोषी माता कि जन्म कथा

हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान गणेश का विवाह रिद्धि-सिद्धि से हुआ था और उनके दो पुत्र, शुभ और लाभ, थे। एक बार भगवान गणेश अपनी बहन से रक्षा सूत्र बंधवा रहे थे। उनके बच्चों ने पूछा कि यह अनुष्ठान क्या है। गणेश जी ने उन्हें बताया कि यह केवल धागा नहीं है, बल्कि रक्षा सूत्र आशीर्वाद और भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है। यह सुनकर शुभ-लाभ बहुत उत्साहित हो गए और उन्होंने गणेश जी से कहा कि वे भी एक बहन चाहते हैं ताकि वे भी रक्षा सूत्र बंधवा सकें।

शुभ-लाभ की इस इच्छा को पूरा करने के लिए भगवान गणेश ने अपनी शक्तियों से एक ज्योति उत्पन्न की और उसे अपनी दोनों पत्नियों रिद्धि और सिद्धि की आत्मशक्ति के साथ जोड़ दिया। कुछ समय बाद इस ज्योति ने एक कन्या का रूप धारण कर लिया, जिसे संतोषी माता के नाम से जाना गया।

संतोषी माता का जन्म शुक्रवार को हुआ था, इसलिए उनकी पूजा और व्रत शुक्रवार को ही रखा जाता है। शुक्रवार के दिन माता संतोषी की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। जो भक्त माता संतोषी की विधिवत पूजा करते हैं उनके घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। अगर कुंवारी लड़कियां संतोषी माता का व्रत करती हैं, तो मां की कृपा से उन्हें योग्य वर की प्राप्ति होती है।

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संतोषी माता को बहुत ही शांत और शौम्य स्वभाव की माना जाता है। माना जाता है संतोषी माता का व्रत पूर्ण श्रद्धा भाव से करने से माता आपकी हर मनोकामना पूर्ण करती है।

हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के गुण

हिंदू धर्म में हर देवी किसी विशेष गुण की प्रतीक होती हैं। जैसे भगवद् गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि वे स्त्रियों में यश, सौभाग्य, वाणी, स्मरण शक्ति, बुद्धि, सत्यनिष्ठा और धैर्य हैं। यह श्लोक समझाता है कि हर देवी किसी गुण का प्रतिनिधित्व करती हैं।

गीता का श्लोक (10.34):

“मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्। कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा॥”

अर्थ: “मैं वह मृत्यु हूँ जो सभी को हर लेती है, और जो भी उत्पन्न होते हैं, उनका जन्म भी मैं ही हूँ। स्त्रियों में मैं यश, सौभाग्य, वाणी, स्मरण शक्ति, बुद्धि, धैर्य और क्षमा हूँ।”

संतोष और धैर्य: माँ संतोषी का विशेष गुण

गीता में जिन गुणों का उल्लेख किया गया है, वे सभी किसी देवी का प्रतीक हैं:

  • वाणी: माँ सरस्वती का प्रतीक
  • सौभाग्य: माँ लक्ष्मी का गुण
  • कीर्ति और शक्ति: माँ दुर्गा और माँ कालिका का स्वरूप
  • धैर्य और संतोष: माँ संतोषी का मुख्य गुण

माँ संतोषी अपने भक्तों को यही सिखाती हैं कि जीवन में संतोष और धैर्य सबसे बड़ी शक्तियाँ हैं। उनके व्रत और पूजा से भक्त यह गुण अपने जीवन में अपनाते हैं।

संतोषी माता के मंदिर

भारत के विभिन्न हिस्सों में संतोषी माता के मंदिर स्थापित हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां उनकी पूजा और व्रत अधिक प्रचलित हैं। संतोषी माता मुख्य रूप से श्रद्धा और लोक आस्था पर आधारित देवी हैं, और उनके मंदिर हाल के समय में भक्तों की पहल से बनाए गए हैं। यहां कुछ प्रमुख स्थानों पर संतोषी माता के मंदिरों का विवरण दिया गया है:

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  1. झुंझुनू, राजस्थान: यह मंदिर संतोषी माता के भक्तों के लिए एक प्रसिद्ध स्थान है। हर शुक्रवार यहाँ विशेष भीड़ होती है, और भक्त गुड़-चना चढ़ाकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
  2. विंध्याचल, उत्तर प्रदेश: विंध्याचल में संतोषी माता का एक मंदिर स्थित है, जो माँ विंध्यवासिनी मंदिर के पास है। यहाँ भक्त विशेष रूप से शुक्रवार के दिन आते हैं।
  3. जोधपुर, राजस्थान: जोधपुर में भी संतोषी माता का एक प्राचीन मंदिर है। यहाँ की मान्यता है कि माता की कृपा से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।
  4. हरिद्वार, उत्तराखंड: गंगा नदी के किनारे स्थित इस मंदिर में भक्त माता के दर्शन के साथ गंगा स्नान भी करते हैं।
  5. नागपुर, महाराष्ट्र: यह मंदिर भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ शुक्रवार को विशेष सजावट होती है और व्रत कथा सुनाने की परंपरा है।
  6. पोरबंदर, गुजरात: यह मंदिर एक शांतिपूर्ण स्थल है जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं।
  7. पुणे, महाराष्ट्र: पुणे में कई छोटे-बड़े संतोषी माता के मंदिर हैं, जहाँ हर शुक्रवार भक्त गुड़-चना और कथा के साथ व्रत का पालन करते हैं।
  8. दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र: यहाँ भी कई मंदिर हैं, जो स्थानीय भक्तों द्वारा बनाए गए हैं। शुक्रवार के दिन विशेष पूजा और कथा का आयोजन होता है।
  9. वैशाली, बिहार: बिहार के वैशाली जिले में यह प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। यहाँ भक्त विशेष रूप से शुक्रवार के दिन माता का आशीर्वाद लेने आते हैं।
  10. भारत के अन्य भाग: अन्य हिस्सों में भी संतोषी माता के मंदिर स्थानीय भक्तों द्वारा स्थापित किए गए हैं। यहाँ पूजा विधि समान रहती है।
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मंदिरों की मान्यता

संतोषी माता के मंदिरों में शुक्रवार को पूजा का विशेष महत्व है। भक्त गुड़ और चने का भोग लगाते हैं और माता की कथा सुनते हैं। यह विश्वास है कि माता की पूजा से जीवन के संकट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

निष्कर्ष – संतोषी माता कौन हैं ?

माँ संतोषी न केवल संतोष की देवी हैं, बल्कि भक्तों के जीवन में धैर्य, शांति और समृद्धि भी लाती हैं। गीता का श्लोक यह बताता है कि देवियों के गुण हमारे जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए हैं। चाहे वह माँ सरस्वती की वाणी हो, माँ लक्ष्मी का सौभाग्य, या माँ संतोषी का धैर्य—हर देवी हमें जीवन के किसी न किसी पहलू में श्रेष्ठता प्रदान करती हैं।

गीता और माँ संतोषी की शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि सच्चा सुख भीतर से आता है और इसके लिए संतोष और धैर्य सबसे महत्वपूर्ण गुण हैं।

जय संतोषी माता!

आचार्य दिवाकर जी महाराज ।Team Praysure संतोषी माता कौन हैं ?

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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