श्री बटुक भैरव चालीसा –

श्री बटुक भैरव चालीसा

श्री बटुक भैरव चालीसा –श्री बटुक भैरव चालीसा का पाठ करने से अनेक आध्यात्मिक, मानसिक, और भौतिक लाभ प्राप्त होते हैं। बटुक भैरव भगवान शिव के रुद्र स्वरूप माने जाते हैं और इनका पूजन जीवन में सकारात्मकता, भय से मुक्ति और सुख-समृद्धि प्रदान करता है। आइए जानते हैं इसके पाठ के प्रमुख लाभ:

1. भय और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति

  • बटुक भैरव चालीसा का नियमित पाठ करने से सभी प्रकार के भय, नकारात्मक ऊर्जा, भूत-प्रेत बाधा और बुरी शक्तियों से रक्षा होती है।
  • यह पाठ बुरी नजर, टोने-टोटके और काले जादू के प्रभाव को भी नष्ट करता है।

2. शत्रु बाधा से रक्षा

  • यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं से परेशान है या जीवन में बार-बार विवादों का सामना कर रहा है, तो बटुक भैरव चालीसा का पाठ अत्यंत प्रभावी होता है।
  • यह पाठ शत्रुओं के बुरे प्रभाव को समाप्त कर व्यक्ति को विजय दिलाने में सहायक होता है।

3. आर्थिक समृद्धि और व्यवसाय में सफलता

  • बटुक भैरव की कृपा से व्यापार और नौकरी में उन्नति होती है।
  • यदि किसी के जीवन में धन संबंधी समस्याएँ चल रही हैं, तो इस चालीसा का पाठ करने से आर्थिक संकट दूर होते हैं।

4. रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ

  • बटुक भैरव चालीसा का पाठ करने से विभिन्न प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
  • यह पाठ मानसिक शांति, आत्मविश्वास और सकारात्मकता को बढ़ाने में सहायक होता है।

5. न्याय और कानूनी मामलों में सफलता

  • जो लोग किसी कानूनी विवाद या मुकदमे में फंसे हैं, उनके लिए यह पाठ बहुत प्रभावी होता है।
  • भगवान भैरव की कृपा से न्याय की प्राप्ति होती है और मुकदमों में सफलता मिलती है।

6. कार्यों में सफलता और बाधाओं का निवारण

  • यदि किसी कार्य में बार-बार बाधाएँ आ रही हैं, तो बटुक भैरव चालीसा का पाठ करने से सभी प्रकार की अड़चनें दूर होती हैं।
  • किसी भी नए कार्य की शुरुआत से पहले इस चालीसा का पाठ करने से सफलता प्राप्त होती है।
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7. आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति

  • यह पाठ व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से उन्नत बनाता है और भक्ति मार्ग में आगे बढ़ने में सहायता करता है।
  • भगवान भैरव के आशीर्वाद से व्यक्ति के पाप कटते हैं और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

पाठ करने की विधि

  • सुबह या रात में स्नान करके साफ वस्त्र पहनकर श्री बटुक भैरव चालीसा का पाठ करें।
  • पाठ के दौरान दीपक जलाएं और भैरव जी को गुड़, नारियल, और काले तिल का भोग लगाएं।
  • शनिवार या रविवार को इस चालीसा का विशेष रूप से पाठ करना अत्यंत शुभ होता है।

|| श्री बटुक भैरव चालीसा ||


। श्री गणेशाय नमः ।
श्री स्वामी सामर्थाय नमः ।

॥ दोहा ॥
विश्वनाथ को सुमिर मन । धर गणेश का ध्यान ।
भैरव चालीसा रचूं । कृपा करहु भगवान॥
बटुकनाथ भैरव भजं । श्री काली के लाल ।
छीतरमल पर कर कृपा । काशी के कुतवाल॥

॥ चौपाई ॥
जय जय श्रीकाली के लाला । रहो दास पर सदा दयाला॥
भैरव भीषण भीम कपाली । क्रोधवन्त लोचन में लाली॥

कर त्रिशूल है कठिन कराला । गल में प्रभु मुण्डन की माला॥
कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला । पीकर मद रहता मतवाला॥

रुद्र बटुक भक्तन के संगी । प्रेत नाथ भूतेश भुजंगी॥
त्रैल तेश है नाम तुम्हारा । चक्र तुण्ड अमरेश पियारा॥

शेखरचंद्र कपाल बिराजे । स्वान सवारी पै प्रभु गाजे॥
शिव नकुलेश चण्ड हो स्वामी । बैजनाथ प्रभु नमो नमामी॥

अश्वनाथ क्रोधेश बखाने । भैरों काल जगत ने जाने॥
गायत्री कहैं निमिष दिगम्बर । जगन्नाथ उन्नत आडम्बर॥

क्षेत्रपाल दसपाण कहाये । मंजुल उमानन्द कहलाये॥
चक्रनाथ भक्तन हितकारी । कहैं त्र्यम्बक सब नर नारी॥

संहारक सुनन्द तव नामा । करहु भक्त के पूरण कामा॥
नाथ पिशाचन के हो प्यारे । संकट मेटहु सकल हमारे॥

कृत्यायु सुन्दर आनन्दा । भक्त जनन के काटहु फन्दा॥
कारण लम्ब आप भय भंजन । नमोनाथ जय जनमन रंजन॥

हो तुम देव त्रिलोचन नाथा । भक्त चरण में नावत माथा॥
त्वं अशतांग रुद्र के लाला । महाकाल कालों के काला॥

ताप विमोचन अरि दल नासा । भाल चन्द्रमा करहि प्रकाशा॥
श्वेत काल अरु लाल शरीरा । मस्तक मुकुट शीश पर चीरा॥

काली के लाला बलधारी । कहाँ तक शोभा कहूँ तुम्हारी॥
शंकर के अवतार कृपाला । रहो चकाचक पी मद प्याला॥

कशी के कुतवाल कहाओ । बटुक नाथ चेतक दिखलाओ ॥
रवि के दिन जन भोग लगावें । धूप दीप नैवेद्य चढ़ावें॥

दरशन करके भक्त सिहावें । दारुड़ा की धार पिलावें॥
मठ में सुन्दर लटकत झावा । सिद्ध कार्य कर भैरों बाबा॥

नाथ आपका यश नहीं थोड़ा । करमें सुभग सुशोभित कोड़ा॥
कटि घूँघरा सुरीले बाजत । कंचनमय सिंहासन राजत॥

नर नारी सब तुमको ध्यावहिं । मनवांछित इच्छाफल पावहिं॥
भोपा हैं आपके पुजारी । करें आरती सेवा भारी॥

भैरव भात आपका गाऊँ । बार बार पद शीश नवाऊँ॥
आपहि वारे छीजन धाये । ऐलादी ने रूदन मचाये॥

बहन त्यागि भाई कहाँ जावे । तो बिन को मोहि भात पिन्हावे॥
रोये बटुक नाथ करुणा कर । गये हिवारे मैं तुम जाकर॥

दुखित भई ऐलादी बाला । तब हर का सिंहासन हाला॥
समय व्याह का जिस दिन आया । प्रभु ने तुमको तुरत पठाया॥

विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ । तीन दिवस को भैरव जाओ॥
दल पठान संग लेकर धाया । ऐलादी को भात पिन्हाया॥

पूरन आस बहन की कीनी । सुर्ख चुन्दरी सिर धर दीनी ॥
भात भेरा लौटे गुण ग्रामी । नमो नमामी अन्तर्यामी॥

॥ दोहा ॥
जय जय जय भैरव बटुक । स्वामी संकट टार ।
कृपा दास पर कीजिए । शंकर के अवतार॥
जो यह चालीसा पढे । प्रेम सहित सत बार ।
उस घर सर्वानन्द हों । वैभव बढ़ें अपार॥

। । इति श्री बटुक भैरव चालीसा । ।

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॥ श्रीगुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
|| श्री स्वामी समर्थापर्ण मस्तु||

निष्कर्ष

श्री बटुक भैरव चालीसा का पाठ जीवन में सुख, समृद्धि, सुरक्षा और सफलता प्रदान करता है। भगवान भैरव की कृपा से व्यक्ति हर प्रकार के कष्टों से मुक्त होकर आनंदमय जीवन व्यतीत कर सकता है। यदि नियमित रूप से श्रद्धा और विश्वास के साथ इस चालीसा का पाठ किया जाए, तो निश्चित ही बटुक भैरव महाराज की कृपा प्राप्त होती है।

जय बटुक भैरव!

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने Sanskrit भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।